

Natak Bhartary Kath (Lok Naty Shaliyon par Aadharit) / नाटक भरतरी कथा (लोक नाट्य शैलियों पर आधारित)
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पुस्तक के बारे में
नकलची-एक : (रौब से बीच में टोकते हुए) बस करो…बस…वो देखो (संकेत करके समझाते हुए)…वो…वो…देखो मालवा नरेश महाराजा भरतरी का महल…आप सब को राजा ने कल दरबार में तलब किया है… समझे (लौटता है) गुरु-वुरु सब को आना है। (दोनों नकलची जाते हैं)
साधू-दो : (भय से काँपता हुआ) अब जाने क्या हो…
साधू-एक : (शान्त होने का संकेत करते हुए) हो सकता है राजा बाबा से शंकर-पार्वती-विवाह की कथा सुनना चाहते हों!
गुरुजी : (गुरुजी का प्रवेश) क्या हुआ बच्चा क्या चर्चा…
साधू-दो : (भयभीत-सा गुरु को देखकर उनकी ओर लपकता हुआ) गुरुजी…गुरुजी…बचा लो गुरुजी!! …
गुरुजी : क्या हुआ बेटा इतना भयभीत क्यों? …
साधू-एक : महाराज… राजा भरतरी का आदेश आया है, कल राजा ने अपनी सभा में बुलाया है।
साधू-दो : मुफ्त में फँस गए गुरुजी… (गुरु जाता है जैसे कोई काम याद आ गया हो।)
साधू-एक : (गुरु के पीछे से) कितनी बार कहा गुरुदेव कोई मठ-वठ बनाओ, आप भी मौज उड़ाओ और हमें भी ऐश कराओ।
साधू-दो : (काँपता हुआ भयभीत-सा) …ओम शिव…शिव ओम…
साधू-एक : उमर का असर है सठिया गए हैं गुरुदेव…समझने-समझाने की हद से आगे (गुरु लौटता है बात बदलते हुए) जय गुरुदेव…जय गुरुदेव…
साधू-दो : (भयभीत) अब तो सारे गए मारे… गुरुदेव रख्या करो महाराज…
साधू-एक : बाबा कुछ करो।
साधू-दो : करो कृपा गुरुदेव।
दोनों-साधू : हे प्रभु…हे शिव शंकर तेरी लीला अपरम्पार, अब करो हमारा उद्धार …!
गुरुजी : बिन पानी की मछरिया से तड़प रहे हो क्यों? राजा यहाँ का नहीं है कोई सिद्ध वीर पुरुष… जो शासक शुद्ध-सिद्ध साधू नहीं वो स्वादु ही होता है। जो राजा स्वादु है, भोगी है, लम्पट है और जो लम्पट है बच्चा वो भयभीत होता है भीतर से… किसी का कुछ बिगाड़ नहीं पाता वो… (दोनों साधू गुरु की बात सुनकर आश्वस्त से)
समवेत : जय गुरु देव …जय गुरु देव…(बोलते हुए मंच का एक चक्कर लगाते हैं।)
चोबदार : (चोबदार के अन्दाज में हाथ का लट्ठ बजाते हुए साधू मंडली के पास आकर)…ओ… तो आप हो बाबा की चौकड़ी।
साधू-एक : (टोकता हुआ हाथ के इशारे से तीन उँगलियाँ दिखाता हुआ) चौकड़ी नहीं तिगड़ी।
चोबदार : हाँ… हाँ तिगड़ी… तो आप हो साधू-तिगड़ी जो उज्जैनी राजधानी में देवों के देव कामदेव की निन्दा करते घूमते हो और शमशान वासी भँगेड़ी की अलख निरंजन… अलख निरंजन जगाते घूमते हो।
तीनों साधू : (समवेत, तीखी आवाज में) अलख निरंजन; अलख निरंजन जय-जय बाबा शंकर, काँटा लगे ना कंकर!
चोबदार : कंकड़ नहीं पहाड़ टूटेगा तुम पर …राजा के आराध्य देव कामदेव के विरुद्ध चलने वालों का महाराज भरतरी कभी क्षमा नहीं करते…चलो मेरे साथ राजा के सामने…
गुरुजी : बेटा हम तो इस नगरी में आए ही तुम्हारे राजा से भेंट करने। बम भोले ने सारा काम पहले ही कर दिया (साधू-एक साधू-दो को खींचकर एक तरफ ले जाता है और भयभीत काँपते स्वर में कहता है।)
साधू-एक : अब तो तय है मौत भैय्या, अब तुम्हीं पार लगाओ नैय्या!
साधू-दो : अलख निरंजन…अलख निरंजन…
गुरुजी : (उद्घोष करते हुए) अलख निरंजन…अलख निरंजन। (दोनों साधू तत्परता से लौटते हैं। साधू-दो जोर से साधू-एक काँपता हुआ ‘अलख निरंजन’ करते हैं गुरु की बगल में खड़े हो जाते हैं।)
चोबदार : चलो-चलो विलम्ब ना करो!
गुरुजी : चलो…दो कदम चलकर (रुककर साधू एक से) बेटा! कुटिया से राजा के लिए भेंट वो अमर फल ले आओ। (साधू एक तत्परता से जाता है…लाल कपड़े में लिपटा नारियल लाकर देता है। चोबदार को छुपाकर रिश्वत देता है। गुरु दोनों हाथों में भेंट लेकर आगे-आगे चोबदार के संग चलता है शेष भयभीत से पीछे-पीछे।)
गुरुजी : बेटा राजा और उसकी महान नगरी के बारे में कुछ चर्चा करोगे… (तत्परता से तोते की तरह पढऩे लगता है।)
चोबदार : ये है मालवा देस बाबा जी। राजधानी है उज्जैन, चारों ओर सुन्दरता बिखरी फैला है सुख-चैन। भरतरी और विक्रमादित्य जैसे लक्ष्मण-राम, आनन्द-ही-आनन्द चहुँ ओर सबको है आराम। सबको है आराम मगर एक खास बात है बाबा, इस नगर में अप्सराओं ने कर रखा खून खराबा। (साधू मंडली अलख निरंजन का उद्घोष करती हुई, साधू-एक भयभीत-सा, जय शिव … जय शिव …का जाप करते चक्कर काटते आगे बढ़ते हैं। आगे एक और चोबदार (नकलची-दो) मिलता है। दोनों चोबदार धरती पर लाठी बजाकर अभिवादन करते हैं। लाठी इस अन्दाज में बजाते हैं जैसे पर सन्देश दे रहे हों।)
चोबदार-दो : लो पहुँच गए राज सभा …(चोबदार-एक से) भाई इनकी भेंट महाराज से करा दो (चोबदार-दो लौट जाता है।) (गुरु को छोड़कर दोनों साधू चोबदार को लेकर मंच के एक ओर जाकर अपनी थैली से निकाल रिश्वत देते हैं)
साधू-एक : तुम्हें महाराज ने बुलाया है…
चोबदार-दो : असम्भव…नितान्त असम्भव, हमारा प्रिय राजा तो साधू-सन्तों से कोसों दूर रहता है उसे …
साधू-एक : उसे क्या प्रिय है…..
चोबदार-दो : उसे प्रिय है भोग-विलास, उसे प्रिय है सुन्दरता और खूबसूरती, उसे प्रिय है कामनियाँ, उसे प्रिय हैं अप्सरायें प्यारी-प्यारी….
साधू-एक : तभी तो हमारे प्राण कँपकँपा रहे हैं।
साधू-दो : और एक हमारा यह गुरुदेव हैं, इन्हें ना अपने प्राण प्यारे हैं और ना हमारे। (साधू दो थरथर कांपता है)
साधू-एक : मित्र कोई ऐसा उपाय बताओ कि प्राण बच…
चोबदार-दो : है! उपाय है एक …विक्रमादित्य है राजा का छोटा भाई अति चतुर और न्यायकारी…(बताने के अन्दाज में) जितना कुछ शुभ है, अच्छा है, देश में सबका कारण है राजा का छोटा भाई, अन्यथा…(चुप हो जाता है।)
साधू-एक : (रहस्य पूछते हुए) अन्यथा?
चोबदार-दो : (पास बुलाकर रहस्य बताता है) …यहाँ …यहाँ राजा से लेकर प्यादा तक सब भोग-विलास में डूबे हैं और आम लोग डूबे हैं गरीबी में, राज्य की सारी कमाई गर्क हो जाती है, ऐशो-आराम और शानो-शौकत के आयोजनों में…
साधू-दो : (घबराता हुआ) पर राजा ने हमेंक्यों तलब किया है महाराज… (चोबदार-दो जाता है, काँपता, भयभीत गुरु के पास जाकर) गुरुजी निकल चलो कहीं दूर नगर से!
गुरुजी : (प्रेम से समझाते हुए) भोले की लीला देखते चलो बच्चा! भयभीत होने की जरूरत नहीं।
चोबदार-दो : (चोबदार लौटकर आता है)…आओ बाबा जी इधर सभा मंडल में।
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डॉ. कँवज नयन कपूर
एक नाम जो अनेक कला-माध्यमों एवं साहित्यिक विधाओं में सक्रिय है…कवि, समीक्षक, स्थापत्य-विज्ञ, चित्रकार, नाट्य-लेखन और नाटक मंचन में नये-नये प्रयोगों के साथ गतिमान रंग संकल्पी। …एकल पात्रीय नाट्य लेखन-मंचन और लम्बी-कविताओं की रचना एवं ‘रंग पाठ’ (मंचन) में समसामयिक सरोकारों, साक्षात्कारों और मौजूदा रचनात्मक संवेदनाओं के साथ प्रतिबद्ध रंगकर्मी…पुराणों, इतिहासों, मिथकों में वर्तमान को खंगालता और वर्तमान में शाश्वत्तता रेखांकित करता रचनाधर्मी… इनके नाट्कों के लगभग एक हज़ार से अधिक मंचन…इन के द्वारा लम्बी कविताओं और एकल पात्रीय नाटकों की सौ से अधिक प्रस्तुतियाँ।
लेखन– नाटक : यात्रा और यात्रा, कथा लंका दहन की, जल घर पंछीतीर्थम्, रक्त जीवी, आओ मेरे साथ, शव पूजा प्रकृति पर्व, छाया पुरुष, हाशिया और किस्सागाई, पाँच नाटक, एकल अभिनय, मेरी रंग यात्रा (दो खण्ड)। कविता : बौणियाँ किरणां उदास गुलमोहर, एक समन्दर मेरे अन्दर, किस्सा कमली दा (पंजाबी, हिन्दी), बोधि सत्व, मूर्ख होने का सुख, शब्दों के पार, अजब काल खण्ड है, उपनिषद् श्री (नौ उपनिषदों का काव्य-रूपान्तरण) इदम शरीरं, (श्रीमदभगवत गीता का काव्य रूपान्तर) श्री दुर्गा (श्रीदुर्गा सप्तशती का काव्य रूपान्तरण) दस से अधिक पुस्तकों का सम्पादन।
सम्प्रति : सेवा-निवृत्त, पूर्ण कालिक पठन-लेखन।
सम्पर्क सूत्र : 6 प्रोफैसर कालोनी, यमुना नगर–135001
फोन : 01732-22633, 98960-33903
e-mail : knkapoor44@mail.com
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