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Jharkhand kee Samargatha – Shailendra Mahto <br> झारखंड की समरगाथा – शैलेन्द्र महतो
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Author(s) — Shailendra Mahto
लेखक — शैलेन्द्र महतो
| ANUUGYA BOOKS | HINDI | 759 Pages |
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झारखंड आंदोलन का जीवन्त दस्तावेज
शैलेन्द्र महतो को ‘झारखंड का व्यास’ कहा जा सकता है।
‘झारखंड की समरगाथा’ जरूर पढ़ें। झारखंड का असली दर्द समझ में आ जायेगा। शैलेन्द्र महतो (पूर्व सांसद) ने बड़े मनोयोग से लिखा है। इसकी प्रस्तावना डॉ. रामदयाल मुंडा ने लिखी है।
शैलेन्द्र महतो से मेरा पुराना सम्पर्क है। 1972-73 में हम दोनों एन. ई. होरो की झारखंड पार्टी से जुड़े थे। धीरे-धीरे तीव्र होते झारखंड के मुक्ति संघर्ष में हम दोनों ने अपना रास्ता बनाया। जल-जंगल, जमीन आंदोलन के रास्ते वे 1978 में झारखंड मुक्ति मोर्चा में शामिल हुए। मैं झारखंड पार्टी के रास्ते श्री वीर भारत तलवार के साथ झारखंड की सांस्कृतिक मुक्ति के सवालों से जूझने लगा। हाल में जब ‘झारखंड की समरगाथा’ का प्रकाशन हुआ तब मुझे अपने पुराने मित्र की बौद्धिक उपलब्धि का एहसास हुआ। वैसे 1989 में दैनिक ‘प्रभात खबर’ ने इनके ‘झारखंड राज्य और उपनिवेशवाद’ को कई किश्तों में प्रकाशित किया था। ‘झारखंड की समरगाथा’ इसी उदग्र चेतना का उत्तर विकास है। सचमुच यह झारखंड की समरगाथा है। समरगाथा यानी महाभारत। आल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन के संस्थापक महासचिव श्री सूर्य सिंह बेसरा की सहमति से महतोजी ने इस पुस्तक को यह सार्थक नाम दिया है। वैसे शैलेन्द्र महतो को ‘झारखंड का व्यास’ कहा जा सकता है। उन्होंने झारखंड की संघर्ष-गाथा और उसके शहीदों को लगभग उसी तेवर में चित्रांकित किया है। ऐसे प्रसंगों को पूरी प्रामाणिकता के साथ, सुसंगत क्रम में प्रस्तुत करना गहरी निष्ठा और श्रम का अवदान है। कुल मिलाकर झारखंड राज्य गठन होने तक की समरगाथा इसमें बखूबी दर्ज है।
राँची डॉ. विसेश्वर प्रसाद केशरी
15 फरवरी, 2015 झारखंड मामलों के विशेषज्ञ
प्रोफेसर (रि.), जनजाति एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग,
राँची विश्वविद्यालय
झारखंड ज्ञानकोष
‘झारखंड की समरगाथा’ में शैलेन्द्र महतो ने झारखंड के लोगों और झारखंड आंदोलन के बारे में काफी कुछ लिखा है और बहुत-सी जानकारियाँ दी हैं। इससे प्रभावित होकर डॉ. रामदयाल मुंडा ने पुस्तक की प्रस्तावना में पुस्तक को झारखंड ज्ञानकोष की संज्ञा दे दी है।
पुस्तक की एक बड़ी विशेषता यह है कि लेखक खुद झारखंड आंदोलन के साथ सक्रिय रूप से जुड़े रहे हैं और यह जुड़ाव लेखन को धारदार बना देता है। 1969-70 में अपने स्कूली पढ़ाई के दौरान चक्रधरपुर के ग्रामांचल में बीड़ी मजदूर आंदोलन से प्रभावित और प्रेरित होकर श्री महतो जनान्दोलन और फिर राजनीतिक आंदोलन से जुड़े। वे 1978 में झारखंड मुक्ति मोर्चा में शामिल हुए और दो बार जमशेदपुर से झामुमो के सांसद भी रहे। इस पृष्ठभूमि में उनको झारखंड आंदोलन को नजदीक से देखने और महसूस करने का मौका मिला। पेशेवर लेखक नहीं होने पर भी लेखन में उनकी दिलचस्पी शुरू से रही। पुस्तक को देखने से किसी को भी यह जरूर लगेगा कि कितनी मेहनत से इतनी सारी सामग्री जुटाई होगी। झारखंड और झारखंड आंदोलन पर किताबें तो बहुत लिखी गयी हैं, पर इस पुस्तक में कुछ विशेष पहलुओं पर दी गयी विस्तृत जानकारी और आंदोलन से जुड़े व्यक्ति का पूर्वाग्रह इसे दूसरी पुस्तकों से अलग बनाता है।
सरजोम सकम पत्रिका में प्रकाशित (राँची) सीताराम शास्त्री
जनवरी, 2012 झारखंड आंदोलन के चिन्तक एवं बौद्धिक नेता
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