Description
पुस्तक के बारे में
ख़ेमा मिस्र के रेगिस्तान में रहने वाले बद्दू क़बीले के एक कुलीन परिवार में जन्मी फ़ातिमा की कहानी है। फ़ातिमा दम घोंटने वाली परम्पराओं की क़ैदी और चारदीवारी के अन्दर साँस लेने वाले महिला संसार का अंग है– ऐसी चारदीवारी का हिस्सा है जहाँ औरत या तो शादी-ब्याह जैसे ख़ास अवसरों पर ही बाहर निकलती या अन्दर जाती है या फिर मृत्योपरान्त। इस वातावरण में बचपन ही से ‘बाहर’ की दुनिया को देखने की लालसा रखने वाली नन्ही फ़ातिमा पेड़ों की फुलंगों पर चढ़-चढ़ कर बाहर की दुनिया को झाँकती रहती है, और ख़ानाबदोश क़बीलों की या ग्रामीण महिलाओं को आज़ादी के साथ दिनचर्या में व्यस्त आते-जाते देखा करती है और विचलित होकर अपने यथार्थ का आभास करते-करते अपने ही अन्दर ऐसा संसार रचने लगती है जो उसे कल्पना के पंखों पर बिठा कर विशाल मरुभूमि में स्वतन्त्र विचरण के लिए छोड़ देता है। फ़ातिमा की कल्पना से जन्म लेने वाले क़िस्से-कहानियाँ इस उपन्यास के ताने-बाने के वे अनुपम और प्रभावी अंग हैं जो विभिन्न पात्रों और प्रतीकों की सहायता से बार-बार स्वतंत्रता की अभिलाषा को इंगित करते हैं। आज़ादी की स्वाभाविक लालसा क्या फ़ातिमा को एक नया जीवन देगी?