अर्जुमन्द आरा
अर्जुमन्द आरा – उर्दू आलोचक और अनुवादक अर्जुमन्द आरा दिल्ली विश्वविद्यालय में उर्दू साहित्य की प्रोफ़ेसर हैं। उर्दू-हिन्दी में अनूदित उनकी लगभग दो दर्जन पुस्तकें हैं, जिनमें उपन्यास, कहानी-संग्रह और आप-बीतियाँ शामिल हैं। उर्दू में अनूदित पुस्तकों में ये बसारत-कुश अँधेरे (ताहर बिन जल्लून, 2020), लाश की नुमाइश और दीगर इराक़ी कहानियाँ (हसन ब्लासिम, 2019), सूरज का सातवाँ घोड़ा (धर्मवीर भारती, 2019), बेपनाह शादमानी की मम्लिकत (अरुंधति राय, 2018); हाशिमपुरा, 22 मई (विभूति नारायण राय, 2018); अतीक़ रहीमी के तीन उपन्यास संगे-सबूर (2016), ख़ाकिस्तर-ओ-ख़ाक (2017), और ख़ाब और खौफ़ की हज़ार भूल-भुलय्याँ (2021); शुमाल की जानिब हिजरत का मौसम (तय्यब सालिह, 2016), जुइंदा याबिन्दा (राल्फ़ रसल, 2005) इत्यादि शामिल हैं। जबकि हिन्दी में नादिर सिक्कों का बक्स और दूसरी कहानियाँ (सिद्दीक़ आलम, 2022), सारा शगुफ़्ता के दो काव्य-संग्रह आँखें और नींद का रंग (लिप्यांतरण और संपादन, 2022), मजाज़ की प्रतिनिधि शायरी (लिप्यांतरण और संपादन 2011), ख़ेमा (मिस्री लेखिका मीराल तहावी का उपन्यास, 2004) प्रकाशित हुए हैं।
अनुवाद के लिए दिल्ली उर्दू अकादमी ने तर्जुमा इनाम 2013 में, और साहित्य अकादेमी ने अरुंधती रॉय के उपन्यास द मिनिस्ट्री ऑफ़ अटमोस्ट हैपीनेस के उर्दू अनुवाद के लिए 2021 का अनुवाद पुरस्कार प्रदान किया।
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