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Uttar ki or Gaman ka Mausam (Sudani Novel) / उत्तर की ओर गमन का मौसम – Novel

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Language: Hindi
Pages: 144
Book Dimension: 5.5″x8.5″

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पुस्तक के बारे में

महजूब ने शराब का गिलास उसकी ओर बढ़ाया, उसे थामने से पहले उसने क्षण भर को संकोच किया और फिर बिना पिए अपने पास रख लिया। महजूब ने फिर से क़सम दी और मुस्तफ़ा पीने लगा। मैं जानता था कि महजूब बड़ा विवेकहीन है, और मेरे दिल में ख़याल आया कि उसे मना करूँ कि इस व्यक्ति को तंग न करे क्योंकि स्पष्‍ट देखा जा सकता था कि इस महफ़िल में उसकी रुचि नहीं, लेकिन फिर कुछ सोचकर रुक गया। मुस्तफ़ा ने पहला जाम खुले वैमनस्य के साथ कुछ यूँ जल्दी से पिया जैसे वह ना-गवार दवा हो। लेकिन जब तीसरे जाम की बारी आयी तो उसकी गति धीमी पड़ गयी और वह आनन्द के साथ चुस्कियाँ लेने लगा। उसके चेहरे की मांसपेशियाँ ढीली पड़ गयीं, उसके होंठों के गोशों का तनाव ग़ायब हो गया और उसकी आँखें पहले से भी अधिक स्वप्‍निल और उदासीन हो गयीं। उसके सिर, माथे और नाक से ज़ाहिर होने वाली दृढ़ता, जिसके विषय में आप जानते हैं, उस दुर्बलता में विलीन हो गयी जो शराब के साथ उसकी आँखों और मुँह पर प्रकट होने लगी थी। मुस्तफ़ा ने चौथा जाम पिया और फिर पाँचवाँ भी। अब उसको और शह देने की ज़रूरत नहीं थी, लेकिन महजूब था कि अब भी क़समें खाये जा रहा था कि अगर नहीं पियोगे तो तलाक़ दे दूँगा। मुस्तफ़ा कुर्सी में धँस गया, उसने पैर फैला लिये और जाम को दोनों हाथों में थाम लिया। उसकी आँखों से यह लगता था जैसे वे कहीं दूर क्षितिज में भटक रही हैं। तभी, अचानक मैंने सुना कि वह अँग्रेज़ी की कोई कविता पढ़ रहा है। उसकी आवाज़ स्पष्‍ट और भाषा त्रुटिहीन थी।
…इसी पुस्तक से…

 

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Description

तय्यब सालिह

एक मशहूर सूडानी लेखक और उपन्यासकार हैं। आधुनिक अरबी उपन्यास लेखन में उन्हें एक प्रबुद्ध लेखक माना जाता है। वे 1929 में सूडान के उत्तरी क्षेत्र में नील नदी के किनारे बसे एक गाँव में छोटे किसानों और मज़हबी उस्तादों के घराने में पैदा हुए। ख़रतूम यूनीवर्सिटी से तालीम हासिल करने के बाद उन्होंने उच्च शिक्षा के लिए लंदन यूनीवर्सिटी में दाख़िला लिया। लंदन आने से पहले उन्होंने कुछ समय एक स्कूल में पढ़ाया लेकिन इसके बाद उनका सारा जीवन ब्रॉडकास्टर के तौर पर बीता। पहले वे बीबीसी की अरबी सर्विस से वाबस्ता रहे और बाद में क़तर के सूचना मंत्रालय के डायरेक्टर जनरल बन गए। लंदन में प्रवास के दौरान उन्होंने वहां से छपने वाली एक अरबी पर्त्रिका अल-मुजल्ला के लिए दस वर्ष तक साप्ताहिक कॉलम लिखा जो साहित्यिक विषयों पर होता था। अपनी ज़िंदगी के दस साल उन्होंने यूनेस्को से वाबस्ता रह कर पैरिस में गुज़ारे। 2009 में अस्सी वर्ष की उम्र में लंदन में उनका निधन हुआ।
तय्यब सालिह का लेखन सूडानी देहात के सामूहिक जीवन और संस्कृति के अनुभवों पर आधारित है और वहां के बाशिंदों की मनोदशा का गहरा विश्लेषण करता और उनके परस्पर पेचीदा रिश्तों का हाल सुनाता है। पश्चिमी देशों की संस्कृति के साथ टकराव और तालमेल के रिश्तों की जटिलताएं भी उनका प्रिय विषय हैं। उनकी मुख्य कृतियाँ हैं: नख़्ला अलल-जदवल (नहर के किनारे खजूर का पेड़ 1953), दूमा वद हामिद (वद हामिद का दूमा वृक्ष 1960), हुफ़्ना समर (मुट्ठी भर खजूरें, 1964), उर्स-उज़-ज़ैन (उर्स की शादी, 1966), मौसिम-उल-हिज्रा इलश-शमाल (उत्तर की ओर गमन का मौसम, 1966), बन्दरशाह-I ज़ुवल-बैत (1971), बन्दरशाह-II मरयूद. समस्त रचनाओं पर आधारित संकलन 1984 में प्रकाशित हुआ। इनकी अधिकतर रचनाओं का अंग्रेज़ी अनुवाद डेनिस जॉनसन डेवीज़ ने किया है।

अर्जुमन्द आरा

उर्दू आलोचक और अनुवादक अर्जुमन्द आरा दिल्ली विश्‍वविद्यालय में उर्दू साहित्य की प्रोफ़ेसर हैं। उर्दू-हिन्दी में अनूदित उनकी लगभग दो दर्जन पुस्तकें हैं, जिनमें उपन्यास, कहानी-संग्रह और आप-बीतियाँ शामिल हैं। उर्दू में अनूदित पुस्तकों में ये बसारत-कुश अँधेरे (ताहर बिन जल्लून, 2020), लाश की नुमाइश और दीगर इराक़ी कहानियाँ (हसन ब्लासिम, 2019), सूरज का सातवाँ घोड़ा (धर्मवीर भारती, 2019), बेपनाह शादमानी की मम्लिकत (अरुंधति राय, 2018); हाशिमपुरा, 22 मई (विभूति नारायण राय, 2018); अतीक़ रहीमी के तीन उपन्यास संगे-सबूर (2016), ख़ाकिस्तर-ओ-ख़ाक (2017), और ख़ाब और खौफ़ की हज़ार भूल-भुलय्याँ (2021); शुमाल की जानिब हिजरत का मौसम (तय्यब सालिह, 2016), जुइंदा याबिन्दा (राल्फ़ रसल, 2005) इत्यादि शामिल हैं। जबकि हिन्दी में नादिर सिक्‍कों का बक्स और दूसरी कहानियाँ (सिद्दीक़ आलम, 2022), सारा शगुफ़्ता के दो काव्य-संग्रह आँखें और नींद का रंग (लिप्यांतरण और संपादन, 2022), मजाज़ की प्रतिनिधि शायरी (लिप्यांतरण और संपादन 2011), ख़ेमा (मिस्री लेखिका मीराल तहावी का उपन्यास, 2004) प्रकाशित हुए हैं।
अनुवाद के लिए दिल्ली उर्दू अकादमी ने तर्जुमा इनाम 2013 में, और साहित्य अकादेमी ने अरुंधती रॉय के उपन्यास द मिनिस्ट्री ऑफ़ अटमोस्ट हैपीनेस के उर्दू अनुवाद के लिए 2021 का अनुवाद पुरस्कार प्रदान किया।

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