







Swatantrata Sangram ka Romanchak Sach <br> स्वतन्त्रता-संग्राम का रोमांचक सच
₹200.00 – ₹350.00
FREE SHIPMENT FOR ORDER ABOVE Rs.149/- FREE BY REGD. BOOK POST
Amazon : Buy Link
Flipkart : Buy Link
Kindle : Buy Link
NotNul : Buy Link
Author(s) — Deepchandra Nirmohi
लेखक — दीपचंद्र निर्मोही
| ANUUGYA BOOKS | HINDI | Total 104 Pages | 2022 | 5.5 x 8.5 inches |
| Book is available in PAPER BACK & HARD BOUND |
Choose Paper Back or Hard Bound from the Binding type to place order
अपनी पसंद पेपर बैक या हार्ड बाउंड चुनने के लिये नीचे दिये Binding type से चुने
- Description
- Additional information
Description
Description
पुस्तक के बारे में
अतर कौर को अपने पति और नत्थूराम को अपने भाई की लाश मिल गयी थी। बिना साधन अकेले लाश को घर तक ले जाने की कोई सम्भावना नहीं थी। वहाँ सभी विपत्ति के मारे घूम रहे थे। सभी में एक-दूसरे के प्रति सहानुभूति थी। उन दोनों को सहायक मिल गये तो वे लाशों को लेकर अपने-अपने घर की तरफ़ चल दिये कि तभी दो महिलाओं के साथ रत्न देवी ने बिलखते हुए बाग की चारदीवारी में प्रवेश किया। यद्यपि महिलाएँ भी दु:खी थीं, पर उन्होंने धीरज से काम लिया और रत्न देवी को समझाया कि इस समय हौसला रखने से ही काम चलेगा, मन को कमज़ोर मत पड़ने दे। रत्न देवी सँभल गयी। उसने हिम्मत की और पति को तलाशना आरम्भ किया। उसका मन दुविधा में उथल-पुथल हो रहा था। चीखने और सिसकने की आवाज़ें उसे बेचैन कर रही थीं। इन्हीं आवाज़ों में से वह पति की परिचित आवाज़ को पहचानने की असफल कोशिश कर रही थी। कहीं-कहीं कई-कई लाशें ऊपर-नीचे पड़ी थीं खून से लथपथ। जी कड़ा करके वह उन्हें उलट-पलटकर देख रही थी कि उसकी चीख निकल गयी, उसे पति के शव को पहचानने में देर नहीं लगी। पति को गोली कहाँ लगी, पता नहीं, पर उसके कपड़े खून से तर हो गये थे। कमर पूरी भीग गयी थी। रत्न देवी ने अपने को फिर सँभाला। साड़ी के पल्लू से आँसू पोंछे और किसी सहायक की तलाश में इधर-उधर देखने लगी। पड़ोसिन महिलाओं के सहयोग से शव घर तक ले जाना उसे सम्भव नहीं लग रहा था, तभी दो युवा पड़ोसी दिखे तो उसे कुछ आशा बँधी। वह सोच रही थी कि चारपाई के बिना काम नहीं चलेगा। उसने उन युवकों से निवेदन किया कि घर से चारपाई ले आयें। युवक घर की ओर चले तो रत्न देवी ने पड़ोसिन महिलाओं को भी उन्हीं के साथ घर भेज दिया।
रात का पहला पहर आरम्भ हो गया था। प्रतीक्षा की घड़ियाँ वैसे ही लम्बी होती हैं, काफ़ी देर के बाद भी युवक नहीं लौटे तो उसने खुद घर जाने की सोच ली। शव के पास बैठ जाने की कोई जगह नहीं थी। वैसे भी आस-पास खून से जमीन तर हुई पड़ी थी। उसकी चप्पलें उसमें धँस गयी थीं।
…इसी पुस्तक से…
Additional information
Additional information
Weight | N/A |
---|---|
Dimensions | N/A |
Product Options / Binding Type |
Related Products
-
SALESelect options This product has multiple variants. The options may be chosen on the product pageQuick View
-
Select options This product has multiple variants. The options may be chosen on the product pageQuick ViewCriticism / Aalochana, Hard Bound, New Releases, Paperback, Top Selling
Media ka Manchitra
₹250.00 – ₹400.00
मीडिया का मानचित्र -
Select options This product has multiple variants. The options may be chosen on the product pageQuick View