

Rilke ka Aatmiye Sansar / रिल्के का आत्मीय संसार
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अनुक्रम
- ‘लेटर्स टू ए यंग पोएट’ के बारे में
- रेनर मारिया रिल्के (1875-1926)
- दो शब्द – फ्रैंज़ ज़ेवियर कापस
- पहला पत्र
- दूसरा पत्र
- तीसरा पत्र
- चौथा पत्र
- पाँचवा पत्र
- छठा पत्र
- सातवाँ पत्र
- आठवाँ पत्र
- नौवाँ पत्र
- दसवाँ पत्र
- रिल्के के साहित्य में अस्तित्ववादी दर्शन – प्रोफेसर जी.बी. सैडलर
- रेनर मारिया रिल्के के साहित्य में एकाकीपन की कठिनाइयाँ एवं सुन्दरता – अनाम
- ‘लेटर्स टू ए यंग पोएट’ पारम्परिक जीवन जीने के ख़तरे एवं समाज में व्याप्त सतहीपन पर रिल्के के विचार – डाॅ. ग्रेगरी सैडलर
- रिल्के की स्मृति में – डेविड टटल
- ‘वी आर बिल्डिंग गॉड’: करें हम ईश्वर का निर्माण ईश्वरीय सत्ता पर रिल्के के विचार – डाॅ. जी.बी. सैडलर
- रिल्के और रूमी : तड़प एवं अभिलाषा के कवि – रेवरेंड लिबी स्मिथ, यूनिटेरियन यूनिवर्सलिस्ट चर्च प्रेम, यौन-सम्बन्धों एवं विकास पर रेनर मारिया रिल्के के विचार – जी.बी. सैडलर
- मुहब्बत और ब़ाकी दुश्वारियाँ ‘ऑन लव एँड अदर डिफिकल्टीज़’ से – रेनर मारिया रिल्के
- ‘लेटर्स टू ए यंग पोएट’ पर एक सामूहिक चर्चा
- रेनर मारिया रिल्के (1875-1926)– रिचर्ड एगेनबर्गर
- रेनर मारिया रिल्के की दो कविताएँ
- रिल्के के साहित्यिक संसार के इर्द-गिर्द – प्रोफेसर जी.बी. सैडलर
- 20वीं सदी की कविता – प्रोफेसर रेनर शुल्त, निदेशक, सेंटर फॉर ट्रांसलेशन स्टडीज़
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Description
Description
पुस्तक के बारे में
सुमन माला ठाकुर ने रेनर मारिया रिल्के के काव्य संसार में अपने इस अनुवाद के माध्यम से बेहद सलीके से प्रवेश किया है। यह पुस्तक निरे रेनर मारिया रिल्के द्वारा एक युवा कवि फ्रैंज जेवियर कापस को लिखे ख़तों का तर्ज़ुमा भर नहीं है बल्कि यह एक संसार से परिचित होना है जो अनूठा और ओंस से भींगी किसी फूल की पंखुड़ी जैसा निष्कलुष है, मगर जिन्दगी के रोज-मर्रा के संघर्ष जितना जटिल भी। इसमें रेनर के लिखे पत्रों का ही लेखा-जोखा नहीं है, बल्कि रिल्के की रचना प्रक्रिया के बारे में भी बहुत कुछ है। यह किताब रिल्के के बारे में आलोचकों और बुद्धिजीवियों की राय को भी हमारे सामने रखती है। इस किताब को पश्चिम के साहित्य-संस्कृति सम्बन्धी विचार को समझने के लिए भी पढ़ा जाना चाहिए। अनुवादक की गहरी पोएटिक सेंस और व्यापक नज़रिया रिल्के के आन्तरिक संसार को हमारे सामने सघनता से खोलता है। एकाकीपन का उत्सव रेनर की कविता और संसार में गहरे तक बसा है। इस एकाकीपन में वह खुद को खोजते हैं। कवि का गहरा आत्मीय ताप हम तक पहुँचता है, यही अनुवादक की विशेषता है। यदि गहरी आध्यात्मिक चेतना और निवड़ एकान्त में निज का संधान रेनर का काम्य रहा है तो अनुवाद में रिल्के के एशेंस को शिद्दत से ग्रहण करना इन अनुवादों की विशेषता है। युद्ध की विभीषिका और आम मनुष्य की नियति के द्वन्द्व और मनुष्यता पर सघन विश्वास इस किताब से उम्मीद की मानिंद झाँकता प्रतीत होगा।
पुस्तक का एक अंश
…यौन-सम्बन्धों, सेक्शुएलिटी, मैथुन वगैरह पर भी उनकी सोच बेहद गम्भीर है। इस क्षेत्र से जुड़े हमारे व्यवहार से कितना सही हो पाता है, कहाँ ग़ल्तियाँ होती हैं, और सेक्स का विषय कितना पेंचीदा है– इन मुद्दों पर उन्होंने विस्तार से बातें कही हैं। प्रेम के बारे में बहुत-सी गूढ़, सूक्ष्म मगर व्यावहारिक बातें इन पत्रों में लिखा है उन्होंने।
जीवन की कई महत्वपूर्ण स्थितियों को रिल्के सामान्य रूप से ‘चीजें’ (थिंग्स- जर्मन से अँग्रेजी अनुवाद) कहते हैं। मूल जर्मन भाषा में उन्होंने इसे ‘संज्ञा’ के रूप में प्रयुक्त किया है। रिल्के जीवन, प्रेम, सुख, दु:ख वगैरह को ‘चीजें’ या ‘थिंग्स’ के रूप में व्यक्त करते हैं। रिल्के के अनुसार ज़िन्दगी हमसे जिस तरह मुख़ातिब होती है उसी से बनते हैं हमारे सारे अनुभव। इन अनुभवों को रिल्के एक-एक बात या एक-एक चीज़ की तरह देखते हैं– ख़ासकर बचपन की बातें। उनके अनुसार बचपन की अनुभूतियों का असर गहरा होता है। बचपन के दिनों के कपड़े-खिलौने नहीं बल्कि आकृतियाँ, शिल्प वगैरह बचपन के कोमल मन पर जो छाप छोड़ जाते हैं उन बातों को रिल्के किसी गहरे अनुभव की तरह देखते हैं।
जो लोग रिल्के की रचनाओं से परिचित हैं वे जानते ही होंगे कि रिल्के नास्तिक थे। वे मूल रूप से ग़ैर-रूढ़िवादी थे। इसके बावजूद फ्रैंज कापस को लिखे इन पत्रों में ईश्वर की सत्ता से सम्बन्धित गहन विचार भरे हुए हैं। यानी जीवन में ईश्वर की उपस्थिति का तत्व रिल्के के लिखे इन पत्रों में स्पष्ट देखा जा सकता है।
रिल्के एक प्रयोगवादी कवि थे। अपनी कविताओं में जिन नयी थीम, नयी शैली और रचना-पद्धति का वे प्रयोग कर रहे थे उनके बारे में रिल्के से पहले के कविगण उन प्रयोगों का केवल ज़िक्र ही किया करते थे। केवल शैली की बात नहीं, रिल्के ने अपनी कविताओं में दिखलाया कि नये किस्म की कविताओं के विषय भी नये-नये, गहरे और सूक्ष्म हो सकते हैं। अलग-अलग समय में लिखी अपनी तमाम कविताओं में रिल्के कविता-लेखन को ज़रिया बनाकर वह सब कर रहे थे जो एक शुद्ध दार्शनिक करता है।
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