सुमन माला ठाकुर का जन्म बिहार भागलपुर में हुआ। एस.एम. कॉलेज भागलपुर से अँग्रेजी विषय में बी.ए. ऑनर्स किया। तत्पश्चात भागलपुर विश्वविद्यालय से ही अँग्रेजी विषय में एम.ए. किया। इसी विश्वविद्यालय में उन्होंने अपनी पहली नौकरी की शुरुआत भी की, वह अँग्रेजी की व्याख्याता (1981-1984) रहीं। नौकरी के सिलसिले में दिल्ली का रुख। भारतीय संसद भवन में लम्बे अर्से तक नौकरी। राज्य सभा के भाषान्तर सेवा अनुभाग से निदेशक के रूप में सेवा निवृत्त हुईं।
सुमन माला ठाकुर एक विदुषी, यायावर एवं देश-दुनिया के साहित्य की अध्येत्ता होने के नाते हिन्दी पाठक समुदाय के लिए देश-दुनिया की खिड़की अपने अनुवाद के माध्यम से खोलती रहीं। देश के विभिन्न समाचार पत्रों, पत्र-पत्रिकाओं में उनके अनुवाद प्रकाशित होते रहे। सुमन माला ठाकुर अनुवादक होने के साथ एक कवयित्री एवं संगीत, कला दर्शन में विचरण करने वाली उर्जावान उदात्त मना मनुष्य थी। खगोल, दर्शन एवं देश-दुनिया में होने वाले साहित्यिक-सांस्कृतिक एवं वैचारिक बहस-मुबाहिसों पर उनकी बारीक नज़र रहती थी। जब आज वह अपने लिखे को फलीभूत होते हुए देखने के लिए हमारे बीच नहीं हैं मगर वह अपने रचे शब्दों में पाठकों के बीच हमेशा रहेंगी। यही एक लेखक होने का सार है। इस फ़ानी दुनिया से कोविड काल में असमय रुखसत होने पर यह उनकी पहली और अन्तिम किताब भी बन गयी।
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