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Rashtriyata sai Antarrashtriyata<br>राष्ट्रीयता से अन्तर्राष्ट्रीयता

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Language: Hindi
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Author(s) — Vishwanath Roy, Freedom Fighter & Former Minister, Govt of India
लेखक — विश्वनाथ रॉय, स्वतंत्रता सैनानी एवं पूर्व मन्त्री भारत सरकार

Compiler — Col. Pramod Sharma
संकलन — कर्नल प्रमोद शर्मा

| ANUUGYA BOOKS | HINDI | 312 Pages | 5.5 x 8.5 Inches | 2020 |

| avilable in PAPER & HARD BOUND both |

SKU: 9789389341126

Description

…विश्वनाथ रॉय, स्वतन्त्रता सैनानी एवं पूर्व मन्त्री भारत सरकार…

राष्ट्रीयता से अन्तर्राष्ट्रीयता एक विप्लवी द्वारा लिखी गई पुस्तक है। विश्वनाथ रॉय का जन्म गाँव खुखुन्दू जिला देवरिया, उत्तर प्रदेश के एक सम्पन्न जमींदार परिवार में सन् 1906 में हुआ था। जमींदार परिवार में जन्म लेने के बावजूद उनमें राष्ट्र की स्वाधीनता, किसानों, श्रमिकों, समान शिक्षा इत्यादि के प्रति जबरजस्त ललक थी।
सन् 1931 में इलाहबाद से लॉ की पढ़ाई के दौरान ही घंटाघर पर तिरंगा फहराने के जुर्म में उन्हें कठोर कारावास भोगना पड़ा। उनके दो साथी पुलिस फायरिंग में शहीद हो गए | आगे चलकर वे महान विप्लवियों, चंद्रशेखर आजाद और शहीदे आज़म भगत सिंह के दल “हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी” के सक्रिय सदस्य के रूप में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह में शामिल हो गए| जिसके परिणाम स्वरूप उन्हें लगभग आठ वर्षों तक कठोर कारावास झेलना पड़ा जिसमें ‘देओली डीटेंशन कैम्प’ भी शामिल था। जेल के प्रवास के दौरान पंडित जवाहर लाल नेहरू के सुझाव पर विश्वनाथ रॉय ने हिंसात्मक विद्रोह को छोड़कर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की विचारधारा से जुड़ गए। आजादी के बाद वे पच्चीस वर्षों तक लगातार लोकसभा के सदस्य चुने गए। उन्होंने अपने जीवनकाल में कई स्कूल और कॉलेजों की स्थापना की और मानव जाति के गुलामी के विरोध में पुस्तकें भी लिखीं।

…कर्नल प्रमोद शर्मा…

इस पुस्तक का संकलन कर्नल प्रमोद शर्मा द्वारा किया गया है जिनका आर्मी, DRDO और ऑर्डनेन्स फैक्ट्री में अनुभव रहा है। आई.आई.टी. मद्रास के छात्र रहे कर्नल शर्मा फिलहाल पूर्वी उत्तर प्रदेश और कुमाऊं क्षेत्र के किसानों, श्रमिकों व जनजातियों के बीच सक्रिय होकर उनके आर्थिक स्थिति को उठाने के लिए प्रयासरत हैं। राष्ट्रीयता के बारे उनके अपने विचार हैं जिसे वह समय समय पर मुखर हो के प्रकट भी करते हैं।

…पुस्तक के बारे में…

आज के दौर में जब राष्ट्रों के अपने हितों, सीमाओं, आर्थिक स्वार्थों में टकराव की स्थिति उतपन्न हो रही है,उस दौर में राष्ट्रीयता,अंतर्राष्ट्रीयता, और राष्ट्र प्रेम को सही परिपेक्ष्य में समझना अति आवयश्क हो गया है। यह पुस्तक एक क्रांतिकारी और सांसद विश्वनाथ रॉय द्वारा राष्ट्र और विश्व को ध्यान में रखते हुए लिखी गई है।
शुभ कामनाओं सहित।

जनरल संजय कुलकर्णी, 1984 में सियाचिन ग्लेशियर पर सबसे पहले कदम रखने वाले भारतीय सेना के जांबाज।

Nationality, Nationalism and Patriotism has a very wide connotation. This has become all the more relevant in today’s milieu. This book has been authored by a person who actively participated in India’s epic freedom struggle and has successfully portrayed India’s cosmopolitan philosophy of ‘vasudhev kutumbkam’ and values of freedom and dignity of life…worth reading.

BP Singh, Former Governor of Sikkim and Home Secretary

स्वर्गीय विश्वनाथ राय ने पचीस वर्षों तक लोकसभा के सदस्य के रूप में राष्ट्र की सेवा की है। स्व राय की किसानों और कृषि के क्षेत्र में गहरी रूचि थी और वे किसानों और खाद्यानों की कमी के लिए लगातार संघर्षरत रहे।

अजय भट्ट, संसद सदस्य, नैनीताल, उत्तराखंड

वर्तमान परिवेश में यह अति आवयश्क है कि स्वाधीनता आंदोलन से जुड़े नायकों, उनके योगदान और आहुति देने वाले महापुरुषों के बारे में नई पीढ़ी को अवगत कराया जाए।

हरीश रावत, महासचिव आ.भा. कांग्रेस पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं पूर्व मुख्य मंत्री

The contents of the book are very liberal and not confined to the national boundaries. The objective of the book is to understand the nationality in its global perspective. This book will prove to be very useful for all nations as well as to the humanity.

Bhupinder Hooda, Former Chief Minister of Haryana

विश्वनाथ राय, स्वतंत्रता सेनानी एवम सांसद द्वारा रचित पुस्तक “राष्ट्रीयता से अंतर्राष्ट्रीयता” निश्चित रूप से बेहद अहम और सामयिक प्रकाशन है। यह पुस्तक एक स्वतंत्रता सेनानी के वर्षों के चिंतन और मेहनत के परिणाम है। आशा है यह पुस्तक ना सिर्फ भारत के लिए बल्कि विश्व के राजनायिकों, नेताओं और शोधकर्ताओं के लिये अत्यंत सहायक सिद्ध होगी।

रीता बहुगुणा, सांसद एवं पूर्व राज्य कबीना मंत्री

…भूमिका…

किसी व्यक्ति और किसी सम्प्रभु राज्य या राष्ट्र के बीच के वैधानिक सम्बन्धों को हम राष्ट्रीयता कह सकते है। राष्ट्रीयता उस राष्ट्र को उस व्यक्ति के ऊपर कुछ अधिकार देती है और बदले में उस व्यक्ति को राष्ट्र सुरक्षा व अन्य सुविधाएँ लेने का अधिकार देती है। राष्ट्र की परिभाषा एक एेसे जन समूह के रूप में की जा सकती है जो एक भाैगोलिक सीमाओं मे एक निश्चित देश या राष्ट्र में रहता है और समान परंपरा, समान हितों तथा समान भावनाओं से बंधा हो साथ ही जिसको एकता के सूत्र में बंधने की उत्सुक्ता होती है तथा समान राजनैतिक आकांक्षाएँ पाई जाती हों। मानव इतिहास के शुरूआती वर्षों में एक परिवार ही सुरक्षा और भोजन के आवश्यकताओं के कारण इकाई के रूप मे विकसित हुआ। यह इकाई आगे चल कर समूह, ग्राम, कबीलों, राज्य और फिर आज के राष्ट्र के रूप में परिवर्तित हो गया। विश्व के अन्य राज्यों की भाति, भारत राष्ट्र के उदय की प्रक्रिया भी अत्यन्त जटिल और बहुमुखी रही है। हम निश्चित रूप से यह कह सकते हैं की विश्व के राष्ट्रों का उदय अपने अपने राज्यों के नागरिकों को सुरक्षा, वाणीज्य, विज्ञान, वित्तीय, साहित्य, कला इत्यादि में एक बहुत बड़ा योगदान किया है। लेकिन इस के साथ साथ यह भी सत्य है की बीसवीं शताब्दी आते आते अति राष्ट्रीयता के नाम पर जितना मानवों का नरसंहार हुआ उतना शायद मानव इतिहास कभी भी नहीं हुआ। यही कारण है की दुनिया के विप्लवियों नें राष्ट्रीयता के साथ साथ अन्तर्राष्ट्रीयता की परीकल्पना शुरू कर दिया जो धीरे-धीरे एक सशक्त रूप लेते जा रही है। राष्ट्रीयता के बारे में भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री के विचार इस बात की उद्धत करते हैं।
नेहरू– राष्ट्रवाद के उस संकीर्ण घेरे से अपने आपको जरा बाहर निकालिये और दुनिया की बात सोचिए जो अब काम कर रही है। हिंदुस्तान से अलग ना कोई एकांश आज है न कभी हो सकता है। यह विश्व योजना के अंग के रूप मे विकसित होता है, होता चला जाता है। आप दुनिया में आइये जो एक दूसरे के से सम्पर्क में हैं तो आप देखेंगे की व्यवसाय, वाणिज्य, विज्ञान और संस्कृति क्षेत्र में उनका एक दुसरे से घनिष्ठ सम्बन्ध है। अठारहवीं शताब्दी के शुरूआती दौर में विश्व के राष्ट्रों के उदय का दौर शुरू हुआ जो आज एक सशक्त संवैधानिक रूप ले चुके हैं। संसार के बीसवीं सदी के कुछ महान चिन्तकों और युद्ध नायकों की अतिराष्ट्रवाद पर कुछ पंक्तियाँ।

The difference between Patriotism and Nationalism is that the patriot is proud of his country for what it does and natiionalist is proud of his country no matter what it does.

Sydney J. Harris

Patriotism is when love of your own people comes first; nationalism when hate for people other than your own comes first.

–Charles de Gaulle

Nationalism is power hunger tempered by self-deception.

–George Orwell

My idea of nationalism is that my country should be free, so that if need be, the whole country may die, so that human race may live.

–Gandhi

इस पुस्तक को स्व. विश्वनाथ राय ने सतर और अस्सी के दशक में लिखा था।

कर्नल प्रमोद शर्मा
पुत्र विश्वनाथ रॉय, स्वतंत्रता सेनानी,
पूर्व मन्त्री भारत सरकार।
देवरिया, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9899057661
8938869973

…अनुक्रम…

  • सहयोग
  • भूमिका
  • राष्ट्रीयता का अर्थ
  • राष्ट्र एवं राष्ट्रीयता की उत्पत्ति
  • राष्ट्र की मनोवैज्ञानिक व्याख्या
  • राष्ट्र-निर्माण
  • राष्ट्र का चिन्तन एवं अनुभूति
  • राष्ट्रीय आदर्श
  • राष्ट्र तथा राज
  • राष्ट्रीयता की ऐतिहासिक देन
  • राष्ट्रीयता, लोकतन्त्र एवं विप्लव
  • राष्ट्रीयता से अन्तर्राष्ट्रीयता
  • भारतीय राष्ट्रीयता से अन्तर्राष्ट्रीयता
  • छायाचित्र

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