







Kaimpus katha — Vishwavidyalaya ki kahaniyan – कैम्पस कथा (विश्वविद्यालय की कहानियाँ) – Laghu Kathain
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अनुक्रम
- पूर्वकथन
- राम सजीवन की प्रेम कथा –उदय प्रकाश
- ज्ञानगढ़ की लड़ाई –बलराज पाण्डेय
- अनुपस्थित –देवेन्द्र
- गड्ढे में गुरुजी –सुरेश्वर त्रिपाठी
- हराम की नहीं –शिवशंकर मिश्र
- कैम्पस कोरस –रजनी गुप्त
- लड्डू बाबू मरने वाले हैं –अल्पना मिश्र
- ताबूत की पहली कील –प्रज्ञा
- तक्षशिला में आग –राकेश मिश्र
- हेडशिप का ऑर्डर –शशांक शुक्ला
- सर्द तल्खियाँ –हुस्न तबस्सुम निहाँ
- रामबहोरन की अनात्मकथा –आशुतोष
- लेखक परिचय
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Description
Description
पुस्तक के बारे में
…यह बहुत कठिन मसला था। न चाहते हुए भी रामबहोरन इस प्रश्न से टूट गये। इस बात पर उनके लिये कोई राहत नहीं थी। वे अपना माथा पकड़कर बैठ गये। दिमाग में जैसे हथौड़ा चल रहा हो। देह पसीने से नहा गयी। आंखों के सामने कई तरह के दृश्य और छवियां आने जाने लगीं। थोड़ी देर में कान भी बजने लगे……
“संस्कृति का क्या अर्थ लिया है आपने?”
गंभीर से दिखने वाले सदस्य ने रामबहोरन के बायोडेटा को उलटते हुए पूछा था। रामबहोरन छूटते ही टेपरिकॉर्डर की तरह बजने लगे, “सर, रेमंड विलियम ने अपने की वर्ड्स में संस्कृति के चार भाग बताते हैं, उनमें से एक है ‘द होल वे ऑफ लाइफ’। यहां मैंने संस्कृति का यही अर्थ लिया है।” रामबहोरन अभी कुछ और कहते तब तक महात्मा जैसे दिखने वाले सदस्य ने टोका, “संस्कृति के बारे में अपने देश में किसी ने कुछ नहीं कहा है क्या? कि आप विदेशी आदमी को कोट कर रहे हैं।” रामबहोरन स्थिर होकर बोले, “कहा है सर, अज्ञेय ने, हजारी प्रसाद द्विवेदी ने, दिनकर ने, रामविलास शर्मा ने और भी तमाम विद्वानों ने संस्कृति के संदर्भ में अपने विचार प्रकट किये हैं?”
महात्मा सदस्य ने कुपित स्वर में पूछा, “आसाराम बाबू को आप विद्वान नहीं मानते हैं क्या?”
रामबहोरन ने विनम्रतापूर्वक कहा, “सॉरी सर, मैं प्रश्न नहीं समझ पाया।” तभी एक दूसरे सदस्य ने पान से भरे अपने मुंह को सीधे, छत की ओर उठाया, जैसे बांग दे रहे हों, और कहा, “भाड़तीय संस्कृति की मूल टेटना क्या है?”
रामबहोरन उस अलाप के बोल समझ नहीं पाते किंतु प्रसंग और धुन के हिसाब से उन्होंने जवाब दिया, “भारतीय संस्कृति की मूल चेतना धर्म है।” सदस्य ने हाथ से रामबहोरन को रूकने का इशारा किया और कुर्सी के पास ही रखे पीकदान में अपना मुंह खाली कर लगभग भाषण दे दिया, “भारतीय संस्कृति की मूल चेतना धर्म नहीं त्याग है…भारतीय संस्कृति विश्व की महान संस्कृति है….।” और भी तमाम बातें वे आंख बंदकर उच्च स्वर में बताते रहे। रामबहोरन का मन किया कि मुस्कराएं पर साक्षात्कार का ख्यालकर मुस्कराने की जगह पर बोल पड़े, “त्याग तो सबसे बड़ा धर्म है।”
रामबहोरन ने सोचना चाहा कि वे अगर ऐन वक्त पर बोले नहीं होते तो क्या मुस्कराये होते। तब तक भाषण वाले सदस्य ने दूसरा पान मुंह में लिया और उन्हें टोका, “मान्यवड़ ढयान नहीं डे रहे हैं मेरी बातों पर, औड़ आपके बोलने में भी टमाम भाषाई अशुड्ढियां हैं।” रामबहोरन घबरा गये, सफाई देते हुए कुछ कहना चाह रहे थे पर एक अन्य सदस्य ने उन्हें टोका, “खामोश रहिए और ध्यान दीजिए…साक्षात्कार चालू है।”
…इसी पुस्तक से…
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