









Kabmakhth — Russian Classical Novel Authored by Maxim Gorky (Abhaga) / कमबख़्त – मकसीम गोरिकी का विश्व प्रसिद्ध उपन्यास (अभागा)
₹299.00 Original price was: ₹299.00.₹280.00Current price is: ₹280.00.
FREE SHIPMENT FOR ORDER ABOVE Rs.149/- FREE BY REGD. BOOK POST
Read eBook in Mobile APP
Amazon : Buy Link
Flipkart : Buy Link
Kindle : Buy Link
NotNul : Buy Link
अनिल जनविजय की भूमिका से…
‘कमबख़्त पाविल’ के नाम से मकसीम गोरिकी ने यह पहली उपन्यासिका 1894 में लिखी थी, जो रूस के नीझनी नोवगरद शहर में छपने वाले अख़बार ‘वलगारी’ के पच्चीस अंकों में धारावाहिक रूप से छपी थी। उसके बाद यह कहानी गुम हो गई और मकसीम गोरिकी के अड़सठ वर्षीय जीवनकाल में फिर कभी नहीं छपी।
07 जनवरी 1910 को मकसीम गोरिकी के एक परिचित डॉक्टर व्लदीमिर निकअलायविच ज़लतअनीत्सकी ने उन्हें पत्र लिखकर यह सूचना दी थी कि नीझनी नोवगरद के उनके दोस्त मिलकर उनकी प्रारम्भिक रचनाओं को एक जिल्द में छापना चाहते हैं। गोरिकी ने उनकी इच्छा का सम्मान करते हुए अपनी सहमति दे दी।
गोरिकी ने 1892 में लिखना शुरू किया था और ‘मकर चुद्रा’ उनकी पहली कहानी थी। इसके बाद 1893 में उनकी तीन और कहानियाँ छपी थीं, जिनके नाम हैं — ‘एक लड़की और मौत’, ‘येमिलियान पिलयाय’ (कहानी के नायक का नाम है) और ‘झूठ बोलने वाली चिड़िया और सत्य के प्रेमी कठफोड़वे के बारे में’। इन चार कहानियों के बाद गोरिकी ने अपनी पहली लम्बी कहानी या उपन्यासिका ‘कमबख़्त पाविल’ लिखी थी। इन सभी रचनाओं को मिलाकर गोरिकी के जन्मनगर नीझनी नोवगरद शहर के दोस्त एक संग्रह छपवाना चाहते थे।
व्लदीमिर ज़लतअनीत्सकी ने गोरिकी को यह भी लिखा था कि किताब छपने से पहले किताब के प्रूफ़ एक बार उन्हें भी भेजे जाएँगे, ताकि वे अपनी रचनाओं पर नज़र डाल लें और फिर अपनी स्वीकृति व सहमति दें। गोरिकी उन दिनों इटली के कापरी द्वीप पर रह रहे थे। गोरिकी ने अपनी प्रारम्भिक सहमति देते हुए डॉक्टर व्लदीमिर ज़लतअनीत्सकी को लिखा कि उनके पास अपनी प्रारम्भिक कहानियाँ नहीं हैं और वे बेहद आभारी होंगे, यदि उनके मित्र इन कहानियों को इकट्ठा कर सकें। उन्होंने यह भी लिखा था कि ’कमबख़्त पाविल’ नामक उनकी उपन्यासिका को इस संग्रह में ज़रूर शामिल किया जाए। इसके साथ-साथ उनकी दो और शानदार कहानियों — ‘बुढ़िया इज़रगिल’ और ‘बाज का गीत’ को भी उनकी कहानियों के इस पहले संग्रह में ज़रूर लिया जाए। व्लदीमिर ज़लतअनीत्सकी से गोरिकी ने यह अनुरोध भी किया था कि उनकी लम्बी कहानी ‘कमबख़्त पाविल’ को टाईप कराकर उसकी एक प्रति उन्हें भी भेज दी जाए। उनके अनुरोध का मान रखते हुए उन्हें उसकी एक प्रति भेज दी गई। गोरिकी की मृत्यु के बाद उनके निजी संग्रह में ‘कमबख़्त पाविल’ की वह प्रति भी मिली, जिसमें शुरू के चार पन्नों में उन्होंने प्रूफ़ की बहुत सारी ग़लतियाँ ठीक कर रखी हैं। उसके बाद बाइसवे पन्ने तक कही-कहीं कोई-कोई निशान ही लगा रखा है और कुछ शब्द बदल दिए हैं। यह माना जाना चाहिए कि गोरिकी इस कहानी का फिर से सम्पादन कर रहे थे। लेकिन यह काम अधूरा ही छूट गया। इसी वजह से यह कहानी भी गुम हो गई।
गोरिकी ने 18 अगस्त 1930 को अपने एक मित्र को लिखे पत्र में यह जानकारी दी थी कि उनकी कहानियों के उस संग्रह के सम्पादक अलिकसेय द्रोबिश-द्रोबिशिव्स्की चूँकि पत्रकार थे, इसलिए उनकी इस लम्बी कहानी का सम्पादन करते हुए उन्होंने कहानी को अपने ढंग से बुरी तरह से तोड़-मरोड़ दिया था। इस वजह से गोरिकी ने उस संग्रह में इस कहानी को छापने की इजाज़त नहीं दी और उस कहानी-संग्रह में गोरिकी की यह कहानी शामिल नहीं की गई। बाद में गोरिकी के जीवन में उनकी जितनी भी रचनावलियाँ छपीं, उनमें से किसी में भी उनकी यह रचना शामिल नहीं है।
‘कमबख़्त पाविल’ एक ऐसे आम आदमी की जीवनगाथा है, जिसने अपने जन्म से लेकर जीवन के अन्त तक सिर्फ़ दुख ही दुख उठाए हैं। हिन्दी के कवि निराला ने भी कहा है — दुख ही जीवन की कथा रही। उस आदमी का पैदा होना ही अपने आप में एक दुखद घटना रही। उसके माँ-बाप ने उसके जन्म के तुरन्त बाद उसे एक अनाथालय में फेंककर उससे छुटकारा पा लिया। इसके बाद उसके जीवन में एक के बाद एक हमेशा ऐसी स्थितियाँ पैदा होती गईं, जिनसे लड़ना नामुमकिन है, जिन्हें सिर्फ़ स्वीकार ही किया जा सकता है। आप चाहें या न चाहें, आपको उनके अनुसार ही जीना पड़ेगा। गोरिकी ने अपनी इस कहानी मे छहवर्षीय एक ऐसे लड़के का चित्रण भी किया है, जो चोरी करके और भीख माँगकर अपनी परिचारिका के जीवन को कठिन बनाए बिना पर्याप्त धन कमा लेता है। लेकिन पाविल, जो बचपन से ही अनाथ है, ऐसा नहीं कर पाता। यह पाविल की परिचारिका का दिल बड़ा था। इसलिए उसके जीवन की परिस्थितियाँ इतनी ख़राब भी नहीं हैं कि वह स्वयं ही अपना अस्तित्त्व नष्ट करने की कोशिश करे।एक को खिलाने के बाद वह दूसरे के पास जाती और फिर तीसरे के पास और अन्त में वह उस कमरे में चली जाती जहाँ ‘गाजर’ लेटा हुआ होता। पहले वह उसे अपनी गोद में ले लेती और खिड़की तक ले जाती। बच्चा आँखें झपकाता और उस पर पड़ती हुई धूप से बचने के लिए मुँह फेर लेता। इसके बाद स्थूलकाय स्त्री कमरे के बाहर निकल आती और आँगन में पहुँच कर एक रेत के सन्दूक पर जा बैठती और बच्चे के मुँह में अपना दूध दे देती। वह उसका पीला सिर और गाल थपथपाती रहती है और बच्चा बड़े आलस्य से दूध पीता रहता। जब वह दूध पी चुकता तो वह उसे सन्दूक में बिठा देती और उसके जीर्ण मुलायम नन्हे बदन को रेत से ढकने लगती। यहाँ तक कि सिर्फ उसका सिर दिखाई देता बाकी सब कुछ रेत में छिप जाता।
जाहिर है इस व्यवहार से ‘गाजर’ बहुत खुश होता क्योंकि इससे उसकी आँखें चमकने लगतीं और उसके चेहरे की निश्चल भाव-भंगिमा अदृश्य हो जाती। उसे देख कर मोटी औरत मुस्कुराने लगती। इस मुस्कान से उसके चेहरे का सौन्दर्य तो क्या बढ़ता हाँ, उससे वह कहीं अधिक चौड़ा अवश्य लगने लगता। वह लगातार घंटों उससे बड़-बड़ करती रहती और जब वह रोने लगता तब कहीं उसे महसूस होता कि बच्चा रेत और धूप से जल रहा है। वह उसे गोद में ले लेती और शान्तिपूर्वक झुलाने लगती। वह कुछ प्रसन्न नज़र आता क्योंकि नींद में भी उस चेहरे पर मुस्कान खेलती होती। वह उसे चूमती और कमरे में ले जाती। फिर वह आँगन में चली आती और रेत पर बैठे बच्चों को देखती– उसका चेहरा वही भावहीन और ठोस चेहरा दिखाई देता। कभी-कभी जब वे सोये नहीं होते थे तो वह उनके साथ खेलती थी, उन्हें दोबारा खाना खिलाती थी और झोंपड़ी के उस छोटे दरवाजे में से लुप्त हो जाती थी जो आँगन में एक दूरस्थ कोने में स्थित था। वहाँ से वह अपने अधखुले दरवाजे में से देखती रहती थी। और अगर रात हो जाती और कितअयेवा अब तक अपनी अचेत अवस्था में होती तब भी स्थूलकाय स्त्री वहाँ से आती और बच्चों को सुला देती थी।
कहीं ऐसा न समझिये कि मैं यहाँ किसी कृपालु अप्सरा का चित्रण कर रहा हूँ। नहीं, साहब हरगिज नहीं! वह तो बस एक औरत थी जिसके चेहरे पर चेचक के दाग थे और जिसकी छातियाँ बड़ी विशाल और भरी-पूरी थीं। और वह गूँगी थी। वह एक शराबी लुहार की पत्नी थी। एक बार उसके पति ने इस बेदर्दी और ऊँटपटाँग तरीके से उसके सिर पर कुछ दे मारा था कि उसने क्रोध में अपनी जीभ के दो टुकड़े कर लिये थे। पहले तो वह इस घटना से दु:खी हुआ पर बाद में वह उसे मूक राक्षसी कहने लगा। और यही बस था।
बूढ़ी कितअयेवा के वहाँ गर्मियों में बच्चों के रहने-सहने का यही अन्दाज़ था। सर्दियों में वे कुछ और ही ढंग से रहते थे– रेत के सन्दूक आँगन में न होकर स्टोव पर रखे जाते थे। बूढ़ी कितअयेवा ने रेत को बच्चों के शारीरिक विकास के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण वस्तु समझा था।
नन्हे पाविल के और उसके साथियों के पालन-पोषण में कोई विशेष अन्तर न था सिवाय इसके कि कभी-कभी एक बड़ी-सी काली दाढ़ी उसके रेत के सन्दूक पर झुकती और काली, गहरी आँखें बड़ी देर तक गौर से उसकी ओर देखती रहतीं।
पहले तो पाविल इस प्रेत से भयभीत हो जाता था लेकिन धीरे-धीरे वह उसका आदी हो गया। यहाँ तक कि वह अपने नन्हे-नन्हे हाथ उसकी छितराने वाली दाढ़ी में भोंक देता जिससे प्रेत को गुदगुदी होने लगती। न वह अब उन मन्द, अस्पष्ट आवाजों से ही डरता था जो उन बड़े-बड़े चमकदार दाँतों में से आती थीं जो उसकी दाढ़ी के बीच में दिखाई देते थे कभी-कभी दो शक्तिशाली हाथ उसे रेत से अलग हटा लेते थे। और उसे हवा में झुला देते थे। नन्हा पाविल अपना चेहरा ऐंठ लेता था और डर के मारे चुप हो जाता था। जब झुलाना बन्द होता तो वह बड़े जोर से चीख मारता। और चीख सुनते ही वह विशालकाय काला व्यक्ति जो उसके सामने खड़ा होता खुद भी चिल्ला पड़ता :
“ऐ औरत! सुनती नहीं हो क्या?”
“सुन रही हूँ भाई, सुन रही हूँ!” कितअयेवा गुस्से में आकर जवाब देती और कहीं से रेंगती हुई निकल आती। “श, शा, शा नहीं, नहीं मुन्ने कुछ नहीं है बेटा, यह तो अपना ही आदमी है मोती! ओह हो हो हो, रोओ नहीं। बस चुप हो जाओ, शाबाश!”
“ये इतने ज़ोर-ज़ोर से क्यों चिल्ला रहे हैं?” प्रेत की धीमी आवाज़ आँगन में गूँज जाती।
“चीख रहे हैं, बुड्ढे बाबा, चीख रहे हैं?” वे सब के सब ही चीखते हैं! लड़खड़ाती ज़ोर की व्यंग्यपूर्ण आवाज़ फिर सब ओर गूँज उठती।
“तुम इन्हें साफ नहीं रखतीं– वे सब गन्दे हैं?”
“हाँ, हाँ भई सब गन्दे हैं। बहुत गन्दे हैं!”
प्रेत की धीमी, असमंजस पूर्ण आवाज़ रुँध-सी जाती और बुढ़िया की चिल्ल-पों वाली आवाज़ खाँस उठती।
“क्यों ये चीजें बेहतर नहीं हो सकती?” धीमी आवाज़ वाले ने भिड़कते हुए पूछा।
- Description
- Additional information
Description
Description
… इसी पुस्तक से…
‘कमबख़्त पाविल’ के नाम से मकसीम गोरिकी ने यह पहली उपन्यासिका 1894 में लिखी थी, जो रूस के नीझनी नोवगरद शहर में छपने वाले अख़बार ‘वलगारी’ के पच्चीस अंकों में धारावाहिक रूप से छपी थी। उसके बाद यह कहानी गुम हो गई और मकसीम गोरिकी के अड़सठ वर्षीय जीवनकाल में फिर कभी नहीं छपी।
07 जनवरी 1910 को मकसीम गोरिकी के एक परिचित डॉक्टर व्लदीमिर निकअलायविच ज़लतअनीत्सकी ने उन्हें पत्र लिखकर यह सूचना दी थी कि नीझनी नोवगरद के उनके दोस्त मिलकर उनकी प्रारम्भिक रचनाओं को एक जिल्द में छापना चाहते हैं। गोरिकी ने उनकी इच्छा का सम्मान करते हुए अपनी सहमति दे दी।
गोरिकी ने 1892 में लिखना शुरू किया था और ‘मकर चुद्रा’ उनकी पहली कहानी थी। इसके बाद 1893 में उनकी तीन और कहानियाँ छपी थीं, जिनके नाम हैं — ‘एक लड़की और मौत’, ‘येमिलियान पिलयाय’ (कहानी के नायक का नाम है) और ‘झूठ बोलने वाली चिड़िया और सत्य के प्रेमी कठफोड़वे के बारे में’। इन चार कहानियों के बाद गोरिकी ने अपनी पहली लम्बी कहानी या उपन्यासिका ‘कमबख़्त पाविल’ लिखी थी। इन सभी रचनाओं को मिलाकर गोरिकी के जन्मनगर नीझनी नोवगरद शहर के दोस्त एक संग्रह छपवाना चाहते थे।
व्लदीमिर ज़लतअनीत्सकी ने गोरिकी को यह भी लिखा था कि किताब छपने से पहले किताब के प्रूफ़ एक बार उन्हें भी भेजे जाएँगे, ताकि वे अपनी रचनाओं पर नज़र डाल लें और फिर अपनी स्वीकृति व सहमति दें। गोरिकी उन दिनों इटली के कापरी द्वीप पर रह रहे थे। गोरिकी ने अपनी प्रारम्भिक सहमति देते हुए डॉक्टर व्लदीमिर ज़लतअनीत्सकी को लिखा कि उनके पास अपनी प्रारम्भिक कहानियाँ नहीं हैं और वे बेहद आभारी होंगे, यदि उनके मित्र इन कहानियों को इकट्ठा कर सकें। उन्होंने यह भी लिखा था कि ’कमबख़्त पाविल’ नामक उनकी उपन्यासिका को इस संग्रह में ज़रूर शामिल किया जाए। इसके साथ-साथ उनकी दो और शानदार कहानियों — ‘बुढ़िया इज़रगिल’ और ‘बाज का गीत’ को भी उनकी कहानियों के इस पहले संग्रह में ज़रूर लिया जाए। व्लदीमिर ज़लतअनीत्सकी से गोरिकी ने यह अनुरोध भी किया था कि उनकी लम्बी कहानी ‘कमबख़्त पाविल’ को टाईप कराकर उसकी एक प्रति उन्हें भी भेज दी जाए। उनके अनुरोध का मान रखते हुए उन्हें उसकी एक प्रति भेज दी गई। गोरिकी की मृत्यु के बाद उनके निजी संग्रह में ‘कमबख़्त पाविल’ की वह प्रति भी मिली, जिसमें शुरू के चार पन्नों में उन्होंने प्रूफ़ की बहुत सारी ग़लतियाँ ठीक कर रखी हैं। उसके बाद बाइसवे पन्ने तक कही-कहीं कोई-कोई निशान ही लगा रखा है और कुछ शब्द बदल दिए हैं। यह माना जाना चाहिए कि गोरिकी इस कहानी का फिर से सम्पादन कर रहे थे। लेकिन यह काम अधूरा ही छूट गया। इसी वजह से यह कहानी भी गुम हो गई।
गोरिकी ने 18 अगस्त 1930 को अपने एक मित्र को लिखे पत्र में यह जानकारी दी थी कि उनकी कहानियों के उस संग्रह के सम्पादक अलिकसेय द्रोबिश-द्रोबिशिव्स्की चूँकि पत्रकार थे, इसलिए उनकी इस लम्बी कहानी का सम्पादन करते हुए उन्होंने कहानी को अपने ढंग से बुरी तरह से तोड़-मरोड़ दिया था। इस वजह से गोरिकी ने उस संग्रह में इस कहानी को छापने की इजाज़त नहीं दी और उस कहानी-संग्रह में गोरिकी की यह कहानी शामिल नहीं की गई। बाद में गोरिकी के जीवन में उनकी जितनी भी रचनावलियाँ छपीं, उनमें से किसी में भी उनकी यह रचना शामिल नहीं है।
‘कमबख़्त पाविल’ एक ऐसे आम आदमी की जीवनगाथा है, जिसने अपने जन्म से लेकर जीवन के अन्त तक सिर्फ़ दुख ही दुख उठाए हैं। हिन्दी के कवि निराला ने भी कहा है — दुख ही जीवन की कथा रही। उस आदमी का पैदा होना ही अपने आप में एक दुखद घटना रही। उसके माँ-बाप ने उसके जन्म के तुरन्त बाद उसे एक अनाथालय में फेंककर उससे छुटकारा पा लिया। इसके बाद उसके जीवन में एक के बाद एक हमेशा ऐसी स्थितियाँ पैदा होती गईं, जिनसे लड़ना नामुमकिन है, जिन्हें सिर्फ़ स्वीकार ही किया जा सकता है। आप चाहें या न चाहें, आपको उनके अनुसार ही जीना पड़ेगा। गोरिकी ने अपनी इस कहानी मे छहवर्षीय एक ऐसे लड़के का चित्रण भी किया है, जो चोरी करके और भीख माँगकर अपनी परिचारिका के जीवन को कठिन बनाए बिना पर्याप्त धन कमा लेता है। लेकिन पाविल, जो बचपन से ही अनाथ है, ऐसा नहीं कर पाता। यह पाविल की परिचारिका का दिल बड़ा था। इसलिए उसके जीवन की परिस्थितियाँ इतनी ख़राब भी नहीं हैं कि वह स्वयं ही अपना अस्तित्त्व नष्ट करने की कोशिश करे।
Additional information
Additional information
Weight | N/A |
---|---|
Dimensions | N/A |
Product Options / Binding Type |
Related Products
-
-8%Select options This product has multiple variants. The options may be chosen on the product pageQuick ViewClassics / क्लासिक्स, Fiction / कपोल -कल्पित, New Releases / नवीनतम, Novel / उपन्यास, Paperback / पेपरबैक, Russian Classics / Raduga / Pragati / उत्कृष्ट रूसी साहित्य, Top Selling, Translation (from English or Foreign) / अंग्रेजी अथवा अन्य विदेशी भाषाओं से अनुदित
Mera Daghestan (Both Vols.) / मेरा दग़िस्तान (दोनों खण्ड)
₹599.00Original price was: ₹599.00.₹550.00Current price is: ₹550.00. -
SaleSelect options This product has multiple variants. The options may be chosen on the product pageQuick View
-
SaleSelect options This product has multiple variants. The options may be chosen on the product pageQuick ViewFiction / कपोल -कल्पित, Hard Bound / सजिल्द, Novel / उपन्यास, Panchayat / Village Milieu / Gramin / पंचायत / ग्रामीण परिप्रेक्ष्य, Paperback / पेपरबैक, Top Selling, Tribal Literature / आदिवासी साहित्य, Women Discourse / Stri Vimarsh / स्त्री विमर्श
Bin Dyodi ka Ghar (Novel) / बिन ड्योढ़ी का घर (उपन्यास) – Tribal Hindi Upanyas
₹200.00 – ₹375.00 -
SaleSelect options This product has multiple variants. The options may be chosen on the product pageQuick ViewArt and Culture / Kala avam Sanskriti / कला एवं संस्कृति, Fiction / कपोल -कल्पित, Hard Bound / सजिल्द, New Releases / नवीनतम, North East ka Sahitya / उत्तर पूर्व का सााहित्य, Novel / उपन्यास, Panchayat / Village Milieu / Gramin / पंचायत / ग्रामीण परिप्रेक्ष्य, Paperback / पेपरबैक, Top Selling, Translation (from Indian Languages) / भारतीय भाषाओं से अनुदित, Tribal Literature / आदिवासी साहित्य
Varsha Devi ka Gatha Geet वर्षा देवी का गाथागीत (असम की जनजातियों पर आधारित उपन्याय, मूल असमिया से हिन्दी में)
₹150.00 – ₹330.00