

Ghunghat Haryane ka (Haryanvi Ragni Sanghara) <br> घूँघट हरियाणे का (हरियाणवी रागणी संग्रह)
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Author(s) — Raj Bir Verma
लेखक — राजबीर वर्मा
| ANUUGYA BOOKS | HINDI | 120 Pages | 2021 | 6 x 9 inches |
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Description
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पुस्तक के बारे में
दुख मैं तू किलकारी मारै, सुख मैं करै मरोड़।
हरि भजन मैं लाग ज्या, सारे झगड़े छोड़।।
मेरा तेरी मैं फँस कै, होरया रेलम पेल।
खाली हाथाँ जाणा सबनै, थोड़ी देर का खेल।।
धन माया नै जोड़ कै, पूरा होजै खुश।
फँस रिश्ते के जाल मैं, सारी पूँजि फुस।।
राजबीर इस दुनियाँ मैं, कदे ना छोड़ो प्यार।
नफरत कर कै खून फूकणाँ, नरक बणै संसार।।
राजबीर संसार मैं, सत्संग का नी मोल।
सुणैं तो मिठे बोल मिलैं, छोड़ै बणै मखोल।।
छोटा बड़ा ना देखिये, सारा गुण का खेल।
कैंची अलग करै कपड़े नै, सूई देवै मेल।।
सुख दुख तेरा न्यूँ बणैं, जैसा तेरा विचार।
अच्छा सोच कै सुखी बणैं, बुरा सोच लाचार।।
हक पराया छीन कै, कदे ना पावै चैन।
भेद खुले पै देखिये, रात दिन बेचैन।।
गुरु जनों की पूजा कर, गुरु लगावै पार।
गुरु की वाणी के आगे, फिक्के सब हथियार।।
मात-पिता और गुरु का कर्जा, तेरे सिर पै जाय।
मूल की तो बात छोड़ दे, ब्याज चुका नी पाय।।
कदे नशे मैं आण कै, अापे नै ना खोय।
नशा ढलै तेरा एक दिन, अकेला बैठ कै रोय।।
यू भी मेरा यू भी मेरा, क्याँ पै करै मरोड़
एक पल के झटके मैं, तू सारी जावै छोड़।।
ऐसी बात भूल ज्या, जिसमैं हो अलगाव
हिन्दू मुस्लिम के चक्कर मैं, डुब्बै तेरी नाव।।
… इसी पुस्तक से…
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