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Bans ka Kila (Storis of Aadivasi Perspective) <br>बाँस का किला (आदिवासी परिप्रेक्ष्य की कहानियाँ)

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Language: Hindi
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Author(s)Narmedshwar
लेखक — नर्मदेश्वर

| ANUUGYA BOOKS | HINDI |

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Description

पुस्तक के बारे में

नर्मदेश्वर यथार्थ को अपनी कल्पना से लैस कर आंचलिक शब्दावली को सुगमतर करने और यथार्थ की बारीक पहचान करने वाले महीन शिल्प के कुशल कथाकार हैं। शिल्प की सादगी अपनी जगह, लेकिन पात्रों और उनके आस-पास के परिवेश को जिन्दा रखने की कारीगरी के धनी कथाकार हैं नर्मदेश्वर। ‘बाँस का किला’ आदिवासी जीवन और परिदृश्य पर आधारित उनकी तेरह कहानियों का एक महत्त्वपूर्ण संग्रह है। मनरेगा के आते ही मजदूरों के जीवन में रोशनी आयी (आषाढ़ का पहला दिन), उनके तेवर बदले, अब वे मालिक की नहीं सुनते लेकिन उनकी फसल को बारिश से बर्बाद होते भी नहीं देख सकते। नर्मदेश्वर के कहानी का यथार्थ भी बहुत निर्दयी है और पलक के ठहर जाने जैसा है। एक दिन बछड़ा गाय का दूध पी गया (बड़ा खाना), गाम के मालिक ने अपने नौकर को इतना पीटा कि वह बेजान पड़ा रहा, फिर मालिक ने उसे रातभर भैंसों के गोहार में बन्द कर दिया। ऐसा निष्ठुर यथार्थ आज की कहानियों में विरले मिलता है। नर्मदेश्वर की कहानियों में पशुधन पर आश्रितों की गाथा है (‘बाँस का किला’ और ‘बड़ा खाना’)। मुर्गे-मुर्गियों और सूअरों पर आश्रितों के सहारे छिन जाने के बाद उनके जीवन में रहता ही क्या है? असंगठित क्षेत्रों के अधिकांश मजदूरों की कथा में कहीं टिरंगा है तो कहीं साँझू। इसलिये इनकी पीड़ा को इनके वर्तमान से ही नहीं समझा जा सकता है। इनके अतीत की भी पूरी दास्तान नर्मदेश्वर के रचना संसार में रचा-बसा है। नर्मदेश्वर के कथा-संसार में दूरदर्शी यथार्थ के कई संकेत मिलते हैं। इस कथाकार की नजर बड़ी पैनी और आगे की ओर असर करने वाली है। ‘बाँस का किला’ की कहानियाँ देखे-जानेवाले परिवेश का अखबार नामा प्रस्तुत नहीं करती। यह कथाकार की कुशलता भी है और प्रचलित यथार्थ के भीतर उसका हस्तक्षेप भी।

अरुण कुमार, आलोचक, राँची

नर्मदेश्वर हिन्दी कहानी का एक महत्त्वपूर्ण नाम है। ‘बाँस का किला’ आदिवासी जीवन और परिदृश्य पर आधारित उनकी तेरह कहानियों का संग्रह है। नर्मदेश्वर बिहार के रोहतास और कैमूर जिलों और छत्तीसगढ़ के जशपुर और सरगुजा जिलों के आदिवासी जीवन से बचपन से परिचित रहे हैं। ‘जुर्म’ कहानी रोहतास जिले के वनाश्रित लकड़हारों की व्यथा-कथा है और ‘हल-जुआठ’ कुछ मुंडा लोककथाओं का पुनर्सृजन है। शेष कहानियाँ छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले के एक गाँव पर केन्द्रित हैं जिसकी गतिविधियों का साक्षी बूढ़ा पहाड़ है। ‘बाँस का किला’ की सोमा, ‘बिजली चट्टान’ की रूपा, ‘पेड़’ की पेची एवं ‘धूप’ के साँफू, ‘मोर नाम जिन्दाबाद’ के रूँगटू और ‘बड़ा खाना’ के टिरंगा जैसे चरित्रों का सृजन उसी कथाकार के लिए सम्भव है जो आदिवासी जीवन के प्रसंगों और परिदृश्य से पूरी तरह परिचित हो और उनकी संस्कृति से आत्मीय सम्बन्ध रखता हो। ‘बाँस का किला’ की कहानियाँ आदिवासी जीवन के विविध पक्षों को उद्घाटित करती हैं और समकालीन आदिवासी लेखन की चुनौती को पूरा कर

अनुक्रम

  • बाँस का किला
  • आषाढ़ का पहला दिन
  • बीज
  • बिजली चट्टान
  • धूप
  • जुर्म
  • पेड़
  • मोर नाम जिन्दाबाद
  • बड़ा खाना
  • सूप का संगीत
  • हल-जुआठ
  • मंजिल-माटी
  • पहाड़

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