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Balatkar, Samlaingikta Avam Anya Sahityik Alekhबलात्कार, समलैंगिकता एवं अन्य साहित्यिक आलेख
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Language: Hindi
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Author(s) — Vijay Sharma
लेखिका — विजय शर्मा
| ANUUGYA BOOKS | HINDI| 256 Pages | HARD BOUND | 2019 |
| 5.5 x 8.5 Inches | 400 grams | ISBN : 978-93-86835-21-5 |
SKU: 9789386835215
- Description
Description
Description
मनुष्य ने समाज का निर्माण किया ताकि वह अपनी चिंता, समस्याओं, परेशानियों से निश्चिंत हो सके। ताकि जिम्मेदारियाँ सामूहिक रूप से उठाई जा सकें। आदमी अपनी सुरक्षा के प्रति आश्वस्त हो कर अपना विकास कर सके। उसने समाज अपने भले के लिए बनाया था। लेकिन ज्यों-ज्यों मनुष्य सभ्य होता गया त्यों-त्यों समाज के नियम, निषेध बढ़ते गए और समाज के नियम-निषेधों ने अपनी जकड़ में आदमी को लेना शुरु किया। आज स्थिति यह है कि इंसान समाज के लिए है, समाज इंसान के लिए नहीं। आदमी सांस भी लेता है तो उसे चिंता होती है, पता नहीं उसकी इस हरकत को समाज किस रूप में लेगा। कई बार समाज आदमी को जकड़ कर उसकी संभावनाओं, उसकी कुशलताओं, उसकी प्रतिभा को नष्ट कर डालता है। समाज चाहता है, उसका हर व्यक्ति उसी के अनुसार चले, उसका गुलाम बना रहे। कोई लीक से हट कर चलने की कोशिश करता है, तो समाज इसे सहन नहीं करता है। आदिम समाज आज भी मनुष्य को सहारा देने का काम करता है। लेकिन जितना सभ्य समाज, उतनी अधिक जकड़न। समाज के अनुसार चलना जीवन को सहज बनाता है, धारा के साथ बहना आसान है। साथ ही यह भी सत्य है कि हर व्यक्ति धारा के साथ नहीं बह सकता है। कुछ लोग धारा के विपरीत तैरते हैं, धारा के विपरीत तैरने के लिए ही बने होते हैं। उनके लिए यही व्यवहार प्राकृतिक होता है। कैसा सलूक करता है समाज अपने ऐसे लोगों के साथ?
– इसी पुस्तक से
सत्ता और सरकार के कारनामों को उजागर करने का खामियाजा भुगतना पड़ता है। सत्य अपनी कीमत माँगता है। डारिओ फ़ो और फ़्रेंका रामे ने यह खामियाजा भुगता और भरपूर भुगता। इन सब में स्त्री को अधिक कष्ट उठाना होता है। उसी पर कठमुल्लाओं की गाज़ सबसे अधिक गिरती है। इनके नाटक रुकवा देना, नाटक के बीच उत्पात करना सामान्य बात हो गई थी, रेडियो और टेलीविजन शो प्रतिबंधित हुए। छोटे ताबूतों में रख कर धमकी भरे खत मिलते। इन्हें पुलिस की सुरक्षा लेनी पड़ी। कई मुकदमे हुए, हर्जाना भरना पड़ा। मगर एक बार हद हो गई। फ़ासिस्टों के कारनामों का कच्चा चिट्ठा इन लोगों ने खोला था। दुष्टों ने काली करतूत का दिन भी चुना तो अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस। 8 मार्च 1974 को फ़्रेंका रामे स्टेज पर नाटक कर रही थीं नियो-फ़ासिस्ट समूह ने उन्हें स्टेज से बंदूक के बल पर उठा लिया। इस अपहरण का जम कर विरोध हुआ। पूरी इटली में कोहराम मच गया। फ़्रेंका को उन लोगों ने सताया, मगर छूट कर दो महीने के अंदर वे पुन: अपने काम पर डट गई। छूटते उन्होंने प्रार्थमिकी दर्ज कराई। यह उनकी जिजीविषा, कर्मठता और लगन तथा प्रतिबद्धता का ही नतीजा था कि वे इस जघन्य अनुभव के बावजूद फ़िर से अपने काम पर लग गई। सत्ता, शोषणकर्ताओं के मुँह पर इससे बड़ा करारा तमाचा नहीं हो सकता है। अपहरणकर्ताओं ने उनके साथ जो किया था उसकी चर्चा फ़्रेंका ने किसी से न की। यहाँ तक कि डारिओ फ़ो से भी नहीं, जबकि वे उनसे कुछ नहीं छिपाती थीं। बलात्कार जैसी जघन्य बात स्त्री कैसे किसी से कहे। कुछ सालों के
बाद एक दिन वे मंच पर एकल नाट्य प्रस्तुति दे रही थीं। वहाँ उन्होंने बताया कि न केवल उनका बलात्कार किया गया था वरन उन्हें ब्लेड से काटा गया था और सिगरेट से जलाया गया था। 1998 में जुडिशियल इंक्वायरी हुई तो पता चला कि उनके अपहरण और बलात्कार में इटली की पुलिस का हाथ था। रक्षक ही भक्षक थे। शोचनीय और शर्मनाक बात यह है कि अपराधी कानूनी दाँव-पेंच से बच निकले।
– इसी पुस्तक से
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