Sale

Bagheli Katha Sahitya aur Pratinidhi Kathein / बघेली कथा-साहित्य और प्रतिनिधि कथाएँ – Hindi Stories

Original price was: ₹249.00.Current price is: ₹240.00.

FREE SHIPMENT FOR ORDER ABOVE Rs.149/- FREE BY REGD. BOOK POST

Language: Hindi
Pages: 160
Book Dimension: 5.5″ x 8.5″
Format: Hard Back

Amazon : Buy Link

Flipkart : Buy Link

Kindle : Buy Link

NotNul : Buy Link

SKU: N/A

Description

पुस्तक के बारे में

लंका पर विजय प्राप्त करने और विभीषण का राज्याभिषेक करने के पश्चात, युद्ध की आपाधापी से मुक्त लक्ष्मण जब लंकापुरी के वैभव को देखते हैं, तो मुग्ध हो जाते हैं। अपने मनोभावों को व्यक्त किये बिना नहीं रह पाते। उनकी बातें सुनकर भ्राता भगवान राम मुस्कुराकर कहते हैं–
‘नेयं स्वर्णमयी लंका, रोचते मम लक्ष्मण।
जननी जन्मभूमिश्च, स्वर्गादपि गरीयसी।।’
तात्पर्य यह, कि हे लक्ष्मण! यह लंका भले ही स्वर्णमयी हो, कितना भी वैभव हो, किन्तु यह सब मुझे प्रिय नहीं लगता। अपनी जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी महान है।
रामकथा के सन्दर्भ से इस कथन को देखें, या जीवन-व्यवहार में अनुकरणीय आचरण हेतु इसका अर्थ ग्रहण करें, अर्थ एक ही ध्वनित होगा– अपनी माता और मातृभूमि स्वर्ग से भी महान है।
कोई बच्चा माँ के आँचल की छाँव में जो सुरक्षा, जो सुकून अनुभव करता है, उसकी और कहीं भी कल्पना नहीं की जा सकती। हम बड़े होने पर रोज़ी-रोटी की तलाश में दर-दर भटकते हुए, कहीं भी रहे आयें, किन्तु जिस मिट्टी पर हमने जन्म लिया, घुटनों के बल चलना सीखा, दौड़ना सीखा, उसका मोह आजीवन हमारे अन्दर से नहीं जाता। इसी प्रकार हम जिस भाषा या बोली में बोलना सीखते हैं, वह माँ द्वारा दी हुई भाषा होती है। इसीलिए उसे मातृभाषा कहा जाता है।
अपनी शिक्षा, देशाटन और अध्यवसाय के द्वारा हम अनेक भाषाओं में पारंगत हो सकते हैं, किन्तु यह भी एक सत्य है कि हम स्वप्न देखते हुए जो वार्तालाप करते हैं, अपनी मातृभाषा में ही करते हैं। इसका सीधा सा अर्थ है, कि हम चाह कर भी अपनी मातृभाषा के संस्कारों से मुक्त नहीं हो सकते।
मेरी मातृभाषा या मातृबोली बघेली है और मुझे इस पर गर्व है। जैसे-जैसे मैंने साहित्य की गलियों-पगडंडियों पर अपने पैर रखने शुरू किये, दो-चार कदम चलने की कोशिश की, तो मैंने देखा कि हमारे इर्द-गिर्द बघेली की घुट्टी पिये हुए लोग भी, बघेली बोलने में लज्जा का अनुभव करते हैं। बघेली बोलने में हीनता का भाव उन्हें नज़र आता है। यह शायद उनकी शिक्षा, उनकी डिग्रियों और उनके ओहदों का प्रभाव है। यह स्थिति मात्र बघेली की नहीं है। अन्य बोलियाँ भी इसी तरह का त्रास झेल रही हैं।
बीते दिनों विश्व की भाषाओं के बारे में कुछ पढ़ने-समझने की कोशिश में पाया, कि दुनिया की अनेक भाषाएँ-बोलियाँ लुप्त हो चुकी हैं, तो अनेक विलुप्ति के मुहाने पर खड़ी हैं। यह चिन्ता का विषय है। दुनिया की किसी भी भाषा का अस्तित्व उसकी बोलियों से होता है। यदि हम हिन्दी के सन्दर्भ में बात करें, तो मध्यकालीन बोलियों के जायसी, सूर, तुलसी, कबीर, मीरा आदि कवियों को हिन्दी से पृथक करते ही, वह रेत के महल की तरह भरभराकर धराशायी हो जायेगी। अतः यदि हिन्दी को समृद्ध करना है, विश्व की भाषाओं में उसे स्थापित रखना है, तो हमें उसकी बोलियों को समृद्ध करना ही होगा।
बघेली के सन्दर्भ में केवल नकारात्मकता ही नहीं है, कुछ सकारात्मक पहलू भी हैं। अनेक उत्साही रचनाकार बघेली के साहित्य को समृद्ध करने हेतु अनवरत प्रयास कर रहे हैं। बघेली का साहित्यिक इतिहास भले बहुत पुराना न हो, इसके बावजूद अभी तक साहित्य की विविध विधाओं के साहित्य की उपलब्धि को नकारा नहीं जा सकता। बघेली के शुभचिन्तकों के यह प्रयास निश्चित ही सराहनीय और उल्लेखनीय हैं, किन्तु इस बात को भी नकारा नहीं जा सकता, कि यह सभी प्रयास ‘एकल’ या वैयक्तिक स्तर पर हो रहे हैं। यही कारण है, कि पड़ोसी बोलियों अवधी, भोजपुरी, बुन्देली, छत्तीसगढ़ी के दिवस मनाये जा रहे हैं और हम अकेले-अकेले शक्ति प्रदर्शन करने में लगे हैं। लकड़ी के बड़े गट्ठर को अकेले-अकेले उठाने की कोशिश वाली बोधकथा को याद करें, तो हम पायेंगे कि इस तरह तो वह गट्ठर कभी नहीं उठने वाला। इसके लिए सामूहिक और योजनाबद्ध प्रयास करने की आवश्यकता है।
बघेली के गद्य साहित्य के बारे में अनेक बार सवाल उठाये जाते रहे हैं। बघेली में गद्य साहित्य अभी भी है, किन्तु इतने पर सन्तोष कर बैठ जाना उचित प्रतीत नहीं होता। अन्य बोलियों के समकक्ष इसे गौरवशाली बनाने के लिए योजनाबद्ध, विधावार इसके विकास के लिए काम करना होगा और इसके लिए किसी का वैयक्तिक प्रयास कभी सफल नहीं होगा। इसके लिए सामूहिक प्रयास ही करना होगा।

— डॉ. राम गरीब पाण्डेय ‘विकल’

 

Additional information

Product Options / Binding Type

Related Products