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Guru Nanak Krit ‘Aasa Di Vaar : Ek Adhyyan <br> गुरु नानक कृत ‘आसा दी वार’ : एक अध्ययन
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Author(s) — Ravindra Gasso
लेखक — रविन्द्र गासो
| ANUUGYA BOOKS | HINDI | Total 128 Pages | 2022 | 6 x 9 inches |
| available in HARD BOUND & PAPER BACK |
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पुस्तक के बारे में
ईश्वर की भक्ति के पथ पर धार्मिक सुधार आवश्यक हैं। गुरु नानक जी धार्मिक अवस्था में सुधार के लिए जो नवीन उद्भावना दे रहे थे, उसमें एक ईश्वर के प्रति अटूट आस्था थी। यह भी कि उसकी कृपा के बिना जीवात्मा को सही रास्ता नहीं मिलता और उसकी कृपा से ही सच्चे गुरु से भेंट होती है। प्रभु-भक्ति के लिए मनमुख नहीं गुरुमुख होना प्राथमिक है। मेहनत, ईमानदारी से नेक कमाई करते हुए ही भक्ति हो सकती है। कर्मों का फल दरगाह में अवश्य मिलता है। ‘नाम’ का आधार पवित्र आचरण और कर्मों से ही मिलेगा। ‘शब्द गुरु’ का अद्भुत, अपूर्व संकल्प दिया। धर्मों, मतों के साथ गुरु नानक देव जी की संवाद-गोष्ठी और संसार में सबसे बड़ी यात्रओं (उदासियों) के अनुभवों के आधार पर उन्होंने युगान्तरकारी नवीन धर्म-दर्शन प्रतिपादित किया। लेकिन यह काफी नहीं था।
क्योंकि समाज अगर पिछड़ा है तो धर्म में गतिशीलता, धर्म में क्रान्ति नहीं आ सकती। समाज की दशा भी धर्म की ऊँचाई के बराबर ऊँची नहीं है तो धर्म जड़ हो जाता है। धर्म में मिथ्यावादिता और रूढि़वादिता का बोलबाला हो जाता है। धर्म के ठेकेदार मनुष्य की आस्था और भक्ति का अपने स्वार्थों के लिए इस्तेमाल करने लगते हैं। शोषण, अन्याय, अनाचार सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक व्यवस्था के स्थायी भाव बन जाते हैं। गुरु नानक देव जी के समकाल में समाज अमानवीय, अतार्किक, अवैज्ञानिक जाति-वर्ण में विभाजित था। तथाकथित निम्न जातियों की दारुण-दशा थी। गरीबी और अस्पृश्यता ने उनका जीवन नरक बना दिया था। ‘शारीरिक श्रम’ और मेहनतकश दोनों को हेय दृष्टि से देखा जाता था।
‘स्त्री’ की स्थिति उस समय के सामन्ती-समाज में दोयम दर्जे की थी। सामाजिक संरचना के दोषों और धर्म की निर्मम अमानवीय व्यवस्थाओं ने स्त्री-जाति की मानवोचित अस्मिता का गला घोंट दिया था। स्त्री की भर्त्सना करना, निन्दा करना या उस पर अन्य अनेक प्रकार की निर्योग्यताएँ थोपना पुरुष-प्रधान पितृ-सत्तात्मक विचारधारा के वर्चस्ववादी कृत्य थे।
…इसी पुस्तक से…
गुरु नानक देव जी (1469-1539) की वाणी में कुल 974 शब्द हैं। उनकी सारी वाणी 19 रागों में निबद्ध है। सर्वोच्च व सर्वश्रेष्ठ ‘जपुजी साहिब’ के उपरान्त ‘आसा दी वार’ गुरु नानक देव जी की दूसरी सबसे महत्त्वपूर्ण वाणी है।
‘जपुजी साहिब’ की आध्यात्मिक ऊँचाई ‘आसा दी वार’ में यथावत् विद्यमान है लेकिन इसमें धार्मिक व सामाजिक-क्रान्ति का महान फलसफा भी है। कोई कवि-चित्रकार-चिन्तक-विचारक-ज्ञान-पुरुष कितने विशाल अनुभव वाला, कितनी विशाल कल्पनाओं वाला, कितनी विशाल दृष्टि वाला, कितनी विशाल मानवीयता वाला, कितनी सकारात्मक ऊर्जा वाला, कितनी सृजनात्मकता-कितनी नैतिकता वाला, कितना मुक्ति-अभिलाषी, कितनी बड़ी मुक्त-चेतना, सच्चाई, कविताई वाला, कितना बड़ा दार्शनिक-सिद्धान्तकार हो सकता है– अगर आपने इन सभी सर्वोत्कृष्ट विशेषताओं के अन्तिम छोर तक जाना है तो ‘जपुजी साहिब’ और ‘आसा दी वार’ के अर्थों को सही सन्दर्भों में समझना होगा।
इस पुस्तक में ‘आसा दी वार’ का अध्ययन गुरु नानक देव जी की उपर्युक्त खूबसूरत खूबियों को समझने की दृष्टि से किया गया है।
…इसी पुस्तक से….
Additional information
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Weight | 400 g |
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Dimensions | 9 × 6 × 0.5 in |
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