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Aur Kitne Andhere (Novel based on the tragedy of partition) <br> और कितने अँधरे (देश-विभाजन की त्रासदी को रेखांकित करता सशक्त उपन्यास)

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Language: Hindi
Book Dimension: 5.5″x8.5″

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Author(s) — Deepchandra Nirmohi
लेखक  — दीपचंद्र निर्मोही

| ANUUGYA BOOKS | HINDI | Total 104 Pages | 2022 | 5.5 x 8.5 inches |

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SKU: N/A

Description

पुस्तक के बारे में

“हिन्दू भी कत्ल हुए और सिक्ख भी। हुआ यों कि जिन्ना को पाकिस्तान चाहिए था और बाकी नेता इसका विरोध कर रहे थे। इसलिए जिन्ना और सुहरावर्दी ने मिलकर कलकत्ता में हड़ताल का ऐलान करा दिया। कलकत्ता बड़ा शहर है। वहाँ मुसलमानों का मुख्यमन्त्री था और तादाद भी उन्हीं की ज्यादा थी। हिन्दुओं ने हड़ताल की मुखालफत की और तय कर लिया कि हम अपनी दुकानें खोलेंगे। मुसलमानों ने पूरी तैयार कर ली। वे पूरे कलकत्ता को बन्द करना चाहते थे। उन्होंने हथियार इकट्ठे कर लिये। हिन्दू और सिक्ख यह तो समझ रहे थे कि मुसलमान जबरदस्ती दुकानें बन्द कराने की कोशिश कर सकते हैं, पर यह नहीं समझते थे कि एक मुद्दत साथ-साथ रहने वाले लोग एकदम मार-काट शुरू कर देंगे।
मुसलमान जानते थे कि हिन्दू लोग दुकानें बन्द नहीं करेंगे। इसलिए दंगाई सुबह ही अपने हथियार लेकर हिन्दुओं क ी दुकानों के आस-पास छिप गए। जो भी दुकान खोलता उसे ही लुढ़का दिया जाता। कुछ ही देर में कुहराम मच गया शहर में। दुकानें खोलने वालों के पास तो कोई हथियार था ही नहीं। दंगाई सभी हथियार ले रहे थे। कहते हैं कि उनकी टोलियाँ बल्लम, भाले, गँड़ासे, लाठियाँ और छुरे हाथों में लिये आसमान में लहराते हुए गलियों और बाजारों में घूम रही थीं। जो सामने आया उसे ही कत्ल कर दिया। बाजार में भगदड़ मच गई। घरों के दरवाजे बन्द होते चले गए। कुछ देर में शहर की तस्वीर ही बदल गई। नालियाँ लाशों से भर गई थीं। गाएँ भी कत्ल की गई थीं। नालियाँ लाशों से रुक गई तो खून मिला गन्दा पानी सड़कों पर आ गया। सड़कें और गलियाँ खून से तर हो गईं। बताते हैं कि पूरे चार दिन तक शहर पर गिद्धें और चीलें मँडराती रहीं। किसी में हिम्मत नहीं थी कि अपने लोगों की लाशों को ठिकाने लगा दे। यह खौफनाक काम 16 अगस्त, सन् 1946 की सुबह शुरू हुआ। पूरा दिन शहर में मौत मँडराती रही। दंगाइयों ने पहले कत्ल किया, फिर सामान लूटा और आग लगा दी।”

…इसी पुस्तक से…

लड़ नहीं रहे, सुखजिन्दर। इन्हें लड़ाने की कोशिश की जा रही है, जिससे देश कमजोर हो और टूट जाए। सरकार में जो लोग आ जाते हैं वे अपनी कुर्सी नहीं छोडऩा चाहते। उनकी तरफ से आग बुझ जाए या लगी रहे। उनकी कुर्सी बची रहनी चाहिए। सरकार को चाहिए कि वह सभी को रोजगार दे। सबके रहने का इन्तजाम करे। गरीब-अमीर की खाई कम करने की कोशिश करे। जाति-पाँति के भेदभाव को मिटाए। सभी अपने-अपने धर्म को, मजहब को मानें, पर धर्म के नाम पर दूसरे को छोटा न समझें। धर्म के नाम पर दूसरों पर जुल्म न करें, नफरत न फैलाएँ। जो देश को तोडऩे की साजिश करे, सरकार को चाहिए कि उसे माफ न करे। अगर आदमी भूखा रहेगा, नंगा होगा, उसके पास घर नहीं होगा, काम करने को धन्धा नहीं होगा, छोटी जाति का होने के कारण समाज में उसे हिकारत की नजर से देखा जाए, अछूत समझा जाए, तो सीधी-सी बात है बेटी कि एक दिन वह ऐसा सोचने पर मजबूर होगा कि भूखा और नंगा रहकर मरने से बेहतर वह लड़कर मरे। देश में अमन के लिए जरूरी है कि सरकार सबसे पहले इन कारणों को दूर करे। रोजगार की गारंटी करे और महँगाई पर रोक लगाए। पर यह सियासतवाले देश में अमन चाहते ही नहीं हैं। ये तो देश में अपनी सरकार चाहते हैं, बस।

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