Katha-Ek Yatra (कथा-एक यात्रा)
कथाकार की रचना दृष्टि और समाज से उसके रिश्ते मिलकर कथा की भूमि का निर्माण करते हैं .इन्हीं रिश्तों के तहत कथाकार अपनी प्राथमिकताएँ तय करता है। अपने समय में सामाजिक न्याय के लिये होने वाले संघर्षों के प्रति कथाकार का नजरिया उसकी सहभागिता, सामाजिक न्याय के प्रति उसकी समझ, यह सभी मिलकर कथाकार के समाज के प्रति रिश्ते के स्वरूप को निर्धारित करते हैं।
कहानी में महत्वपूर्ण है देखना, आप किस बिंदु पर खड़े होकर अपने समय की धड़कनों को देखते हैं। कहानीकार की दृष्टि ही कहानी की दिशा तय करती है। कहानी की समझ, कहानी की परम्परा का बोध, कहानीकार की अपनी विचारधारा, उसके अनुभव, उसका अध्ययन सब मिलकर कहानीकार का विवेक निर्मित करते है और अपने इस विवेक से कहानीकार अपने समय की अनुगूँज को सुनता है।
हरियश राय की यह किताब कृष्ण सोबती, भीष्म साहनी, काशीनाथ सिंह, मुक्तिबोध, दूधनाथ सिंह, संजीव, असग़र वजाहत, राकेश तिवारी, ज्ञानप्रकाश विवेक, स्वयं प्रकाश, सूर्यनाथ सिंह की रचनाओं के माध्यम से हमारे समय के बुनियादी सवालों से हमें रूबरू कराती है।