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Vishwa Vedna ke Udgata : Janardan Prasad Jha ‘Dvij’ / विश्‍व वेदना के उद्‍गाता जनार्दन प्रसाद झा ‘द्विज’ -An Anthology, Criticism

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Language: Hindi
Pages: 188
Book Dimension: 5.5″x8.5″

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Description

पुस्तक के बारे में

‘द्विज’ जी की ‘अनुभूति’ और श्री लक्ष्मीनारायण मिश्र का ‘अन्तर्जगत‍्’ छायावादी युग की बड़ी देन है। जिस समय छायावाद को लेकर हिन्दी में घनघोर आन्दोलन छिड़ा हुआ था, उस समय नये स्कूल को स्थापित करने के लिए जितने भी लेख प्रकाशित किये जाते थे, उनमें ‘अनुभूति’ की कविताओं का उद्धरण अनिवार्य रूप से रहता था। वैयक्तिकता छायावाद की सबसे बड़ी स्वभावगत विशेषता थी और उसका रसमय परिपाक द्विज जी की कविताओं में बहुत आरम्भ में ही हो चुका था। नयी चेतनाओं को सबसे पहले हृदयंगम कर लेनेवालों में ‘अनुभूति’ के कवि का प्रमुख स्थान था। पन्त जी की ‘मौन निमन्त्रण’ और द्विज जी की ‘अयि अमर शान्ति की जननि जलन’ कविताएँ हिन्दी में कितनी बार और कितने प्रसंगों पर उद्धृत हुईं, यह गिनती के बाहर है। ‘अन्तर्जगत‍्’ और ‘अनुभूति’ की कविताओं के पढ़ने से यह साफ़ ज़ाहिर होता है कि प्रेम का घाव संसार में सबसे सुन्दर और सबसे भयानक चीज़ है। इस घाव से मनुष्य का हृदय ही नहीं, उसकी आत्मा भी फट जाती है और ज्यों-ज्यों इसका विस्तार बढ़ता है, त्यों-त्यों मनुष्य भी गहरा और विस्तीर्ण होता जाता है।

– रामधारी सिंह ‘दिनकर’

श्रद्धेय ‘द्विज’ जी अपने समय के एक श्रेठ विद्वान थे। अँग्रेजी, बांग्ला, मैथिली और हिन्दी के पंडित तो थे ही, जहाँ तक मैंने सुना है, वह संस्कृत के भी अच्छे विद्वान थे। उनकी कहानियों ने अपने समय में ख़ूब प्रतिष्‍ठा पायी थी। मुझे याद आता है कि हिन्दी के प्रथम कहानी संकलन ‘मधुकरी’ के लिए स्वर्गीय पंडित विनोद शंकर जी व्यास ने उनकी भी एक कहानी चुनी थी। किसलय, मृदुल, मालिका, मधुमयी, अनुभूति और अन्तर्ध्वनि आदि उनकी रचनाओं ने अपने समय में यथेष्‍ट कीर्ति प्राप्त की थी।
‘द्विज’ जी शायद पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने प्रेमचन्द की कहानी और उपन्यास-कला पर शोध-प्रबन्ध लिखा था। इसे संयोग ही कहा जा सकता है कि श्रद्धेय द्विज जी के दर्शन मैं प्राप्त न कर सका, किन्तु मैंने सुना है कि वे बड़े ही प्रभावशाली वक़्ता भी थे। प्रतिभावान महापुरुषों की स्मृति को जगाये रखकर हम अपनी परम्पराओं की स्वस्थ गति को पहचान सकते हैं।

– अमृतलाल नागर

‘द्विज’ जी ने अबकी हिन्दू विश्‍वविद्यालय से हिन्दी में बड़े गौरव के साथ एम.ए. की डिग्री ली। आप प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुए। अँग्रेजी में आप पहले ही एम.ए. हो चुके थे। भावुकता के सागर में डुबकियाँ लगानेवाला कवि और कल्पना के आकाश में उड़नेवाला गल्पकार और चरित्र-लेखक परीक्षा भवन में बैठकर ऐसी असाधारण सफलता प्राप्त कर ले, यह साधारण बात नहीं है… कल्पना वालों को भाषा-विज्ञान और भाषा के प्राचीन इतिहास से क्या प्रयोजन, लेकिन ‘द्विज’ ने यह पाला जीतकर साबित कर दिया कि वह शाक-भाजी की दुकान खोलकर बैठ जायें, तो वहाँ भी सफल हो सकते हैं। हम इस सफलता पर आपको हृदय से बधाई देते हैं।

– प्रेमचन्द/हंस, मई 1933

‘द्विज’ जी मूर्तिमान साहित्यकार हैं। उनके व्यक्तित्व में जो असामान्य माधुर्य है, उनके रहन-सहन में जो कलापूर्ण सौन्दर्य है, उनके स्वभाव में जो स्वयंप्रभ स्वाभिमान है, उनकी वाणी में जो अतुल ओजस्विता है, उनके आचरण में जो संयत अनुशासन-प्रियता है, वह बिहार की बड़ी अमूल्य सम्पत्ति है। हिन्दी संसार में भी दृष्‍टि दौड़ाकर हम ऐसे आदर्श गुणों की समष्‍टि अत्यल्प ही एकत्र पाते हैं। उनका कुन्दन-सा दमकता हुआ चरित्र उन्हें कितना ऊँचा उठा ले जायेगा, सहसा कहा नहीं जा सकता।

– शिवपूजन सहाय/1944 ई.

‘द्विज’ जी अवस्था में मुझसे छोटे थे और जब मैं हिन्दू स्कूल में अध्यापक था, तब वे छात्र थे और छात्रावास में रहते थे। मुझसे बड़ी आत्मीयता थी और कई बार मेरी अध्यक्षता में होनेवाले कवि-सम्मेलनों में उन्होंने कविता-पाठ किया था। हरिऔध जी, लाला भगवान ‘दीन’ जी और रत्‍नाकर जी के बड़े प्रिय पात्र थे। जयशंकर प्रसाद जी के यहाँ भी कभी-कभी आते-जाते थे। जिन दिनों प्रेमचन्द जी ने काशी से ‘जागरण’ निकाला था, उसमें धाराप्रवाह तत्कालीन हिन्दी के दिग्गज साहित्य- स्रष्‍टाओं पर उन्होंने अत्यन्त प्रभावशील रेखाचित्र लिखे थे।

– पं. सीताराम चतुर्वेदी

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