









Vanchit Aakanchhaon ki Abhivyakti : Bhojpuri Prakshetra ke Bidesia Natya-Roop ka Parikshan / वंचित आकांक्षाओं की अभिव्यक्ति : भोजपुरी प्रक्षेत्र के बिदेसिया नाट्य-रूप का परीक्षण – Chandrashekhar Prasad, Bhikhari Thakur
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अनुक्रम
- अनुवादक की ओर से
- शहीद चंद्रशेखर प्रसाद : एक परिचय
- शोध-प्रबंध का संक्षिप्त सार
- अध्याय-1 — लोकप्रिय संस्कृति की परिभाषा एवं भोजपुरी भाषी क्षेत्र में इसके सूक्ष्म भेद
- अध्याय-II — ऐतिहासिक प्रमाणिकता की कसौटी पर विषय का अनुसंधान
- अध्याय-III — भिखारी ठाकुर का तमाशा : भिखारी ठाकुर के नाटकों का विश्लेषण
- निष्कर्ष
- ग्रंथ-सूची
- पारिभाषिक शब्दावली
- Description
- Additional information
Description
Description
पुस्तक के बारे में
शहीद चंद्रशेखर प्रसाद वैचारिक क्रान्तिकारी थे, जिन्होंने समाज के दबे-कुचलों की आवाज उठाई और उनके लिए शहादत भी दी। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में प्रस्तुत उनका एम.फिल. का शोध-प्रबंध, ‘वंचित आकांक्षाओं की अभिव्यक्ति : भोजपुरी प्रक्षेत्र के बिदेसिया नाट्य-रूप का परीक्षण’ जो अंग्रेजी में है, का हिन्दी अनुवाद प्रस्तुत किया जा रहा है। चंद्रशेखर के शोध-प्रबंध का एक अनुवाद माननीय गोपाल प्रधान, हिन्दी विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा किया गया है और संकुल, जन संस्कृति मंच, इलाहाबाद द्वारा 2011 में प्रकाशित है। यहाँ पर यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि मेरे इस अनुवाद की क्या आवश्यकता पड़ी। इसके उत्तर में मैं कुछ बातें रखना चाहूँगा। यह अनुवाद मैंने ‘स्वान्तःसुखाय’ किया। मैं सारण जिले का मूल निवासी हूँ और सिवान से मेरा विशेष सम्बन्ध रहा है। मैंने शहीद की माँ को कई बार आते-जाते देखा है और दो-चार बार मिला भी हूँ जिसकी अमिट छाप जीवनपर्यन्त रहेगी।
चंद्रशेखर का यह शोध-प्रबंध सारण पर है जहाँ भिखारी ठाकुर की अमर कृति बिदेसिया का उद्भव हुआ, और साथ ही साथ बिदेसिया पर भी। 2019 में मैंने बिदेसिया का अंग्रेजी अनुवाद प्रकाशित किया, जिस पर प्रसिद्ध लेखक एवं सारण पर गहन शोधकर्ता आनंद ए यांग की टिप्पणी आयी और मुझे सुख प्राप्त हुआ। सारण पर उनके शोधकार्य, द लिमिटेड राज : अग्रेरियन रिलेशन्स इन कोलोनिअल इंडिया, सारण डिस्ट्रिक्ट, 1793-1920, दिल्ली : ओयूपी, 1989, के बारे में चंद्रशेखर ने अपने शोध-प्रबंध में लिखा कि यांग की पुस्तक “देर से ही सही, इस क्षेत्र एवं इसके इतिहास को पुनर्जीवित करने के प्रयास के रूप में दिखी। परन्तु यह पुस्तक भी कोई शुरुआत नहीं है। यह मुख्यतः हथुआ राज की जमींदारी का वर्णन करती है और प्रवास पर आधारित निष्कर्ष निकालती है जो कि सारण के राजनीतिक अर्थशास्त्र से सम्बन्धित है न कि भोजपुरी भाषी क्षेत्र के सामाजिक-सांस्कृतिक विचार संरचना से।”
हमारे जैसे कई पाठकों का मत है कि चंद्रशेखर का शोध-प्रबंध पुस्तक के रूप में दुनिया के पास जाना चाहिए, हालाँकि यह ‘पब्लिक डोमेन’ में उपलब्ध है। हिन्दी भाषी जगत को तो गोपाल प्रधान द्वारा अनुदित पुस्तक उपलब्ध है। मैंने जब गोपाल प्रधान जी के अनुवाद का अध्ययन किया तो लगा कि मूल लेखक के द्वारा प्रयुक्त कुछ राजनीतिक पदों का अनुवाद उसके मूल अर्थ में नहीं किया जा सका है। अतः इसे एक नये अंदाज में प्रस्तुत करना चाहिए। यहाँ पर अंग्रेजी का मूल पाठ भी दिया जा रहा है ताकि अंग्रेजी के पाठक भी इसे पढ़ें तथा हिन्दी के वैसे पाठक जो हमारे अनुवाद से संतुष्ट नहीं हों तो मूल पाठ को देख लें। अपनी राय भी दें। शोध-प्रबंध के शीर्षक, कई पदबंधों (पारिभाषिक शब्दों), जैसे ‘परिहार रूपी प्रतिरोध’, साथ ही साथ कई स्थानों पर अंग्रेजी के वाक्य विन्यासों के सम्बन्ध में मेरी राय एवं समझ भिन्न हैं। गोपाल प्रधान जी के अनुवाद में कहीं-कहीं अनुवाद की कठिनता को सरल बनाने के लिए व्याख्या (हालाँकि बहुत छोटी) प्रस्तुत की गयी है। इसके कारण मूल लेखक कहीं-कहीं गौण हो जाता है।
इसके साथ चंद्रशेखर का एक सामान्य एवं संक्षिप्त जीवन परिचय प्रस्तुत किया गया है जो दिखाता है कि किस तरह उन्होंने समाज में व्याप्त अन्याय एवं हकमारी के खिलाफ अपने सफल ‘कॅरियर’ को छोड़कर क्रान्तिकारी रास्तों का चुनाव किया। सर्वाधिक दुखद बात थी उनकी राजनीतिक हत्या, मात्र 32 साल की उम्र में। यह घटना समाज को झकझोर कर रख देती है। समाज में अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने का यह परिणाम! हत्या के बाद उनकी विधवा माँ की जिन्दगी। न्याय की भीख के लिए दर-दर की ठोकर खाती।
चंद्रशेखर का शोध-प्रबंध बहुत ही अच्छा और स्तरीय अंग्रेजी भाषा में लिखा गया है। उसमें राजनीति विज्ञान एवं समाज विज्ञान के गूढ़ तत्वों का विवेचन अंतरराष्ट्रीय विचारों एवं सिद्धांतों के आलोक में किया गया है जो स्वभावतः अनुवाद में समस्या खड़े करते हैं। शाब्दिक एवं सामान्य अनुवाद मूल पाठ में निहित अर्थों को हमेशा नहीं प्रस्तुत कर पाता। हिन्दी अनुवाद में प्रयोग किये गये तथा कुछ तो स्वयं अंग्रेजी में भी प्रयोग किये गये पदों का परिचय उनके सन्दर्भ के साथ देना आवश्यक है, विषय की सही समझ के लिए। उदाहरण के लिए ऐतिहासिकता, लोकप्रिय संस्कृति, लोक संस्कृति, जन संस्कृति, सामान्य बोध, अच्छा बोध, परिहार रूपी परहेज, निर्मित्ति, व्यवहार प्रक्रिया आदि। इसको ध्यान में रख कर एक पारिभाषिक शब्दावली भी दी गयी है।
… इसी पुस्तक से…
Additional information
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Weight | 400 g |
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Dimensions | 23 × 16 × 1 in |
Product Options / Binding Type |
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