







Uttar Adhunikta aur kathar Nirala ka Stri Vimarsh / उत्तर आधुनिकता और कथाकार निराला का स्त्री विमर्श
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अनुकम
भूमिका – कथाकार निराला स्त्री और उत्तर-आधुनिकता
- स्त्री-विमर्श कितने सच : समकालीन स्त्री के सपने
- निराला के उपन्यासों में स्त्री : जीवन के प्रतिमान
- निराला की कहानियों में स्त्री-जीवन के प्रतिमान
- उत्तर-आधुनिकता और कथाकार निराला का स्त्री-विमर्श
- स्त्री वस्तु नहीं, व्यक्ति है; अन्धकार नहीं, प्रकाश है
पुस्तक के बारे में
निराला संस्कृति पुरुष हैं; निराला जागृति पुरुष हैं, उन अर्थों में संस्कृति पुरुष हैं, जिसमें दीपक तले अँधेरा नहीं है। उन अर्थों में जागृति पुरुष हैं, जो सम्पर्क समाज का, सम्पूर्ण समय में इस समाज को केवल समानतावादी दृष्टिकोण से देखा है। लोक चिन्तन, जनता का पक्ष, स्त्री का पक्ष, स्त्री की जागृति, दलित का जागरण, दलित का सम्मान और अधिकार के प्रति सजगता, हमेशा ही उनमें रही है। और यही कारण है कि जिन अर्थों में पूर्व में निराला संस्कृति पुरुष थे। उन्ही अर्थों में आज भी संस्कृति पुरुष हैं। और उनकी संस्कृति चेतना, उनकी भारतीयता आज के उत्तर-आधुनिक दौर में समय के साथ-साथ ही कन्धा मिलाकर चलती है।
‘उत्तर-आधुनिकता और कथाकार निराला का स्त्री-विमर्श’ की दृष्टि से देखा जाय तो मुझे निराला का एक वाक्य याद आता है विचारोत्तेजक होकर के वह लिखते हैं कि ‘आज स्त्री पर ऐसे कार्य आ पड़े हैं कि उसे हवा की तरह मुक्त रहने की आवश्यकता है’ अर्थात् अब स्त्री को सुन्दर, कोमल, मनमोहक मन्द समीर की तरह तो रहना ही है। लेकिन समय आने पर स्त्री को आँधी-तूफान में भी बदलना होगा। यह स्त्री-विमर्श के सन्दर्भ में निराला का आदिवाक्य है और कालजयी है।
निराला ने एक स्थान पर लिखा है कि ज्ञान संस्कृति को बिगाड़कर के ही बिगड़ा हूँ; और यदि चाहूँ तो पुस्तकों की खाक छानकर, वनिता, विनोद या ऐसी ही पुस्तकें लिख सकता हूँ, पर ऐसा मैं करना नहीं चाहता हूँ। अर्थात् कथाकार निराला के स्त्री-प्रतिमान अलग हैं; सती, सावित्री मर्यादित, शोषण पीडि़त, स्त्री का प्रतिमान वह गढऩा नहीं चाहते हैं। बल्कि अपने उपन्यासों, कहानियों में उन्होंने उन्मुक्त स्त्री का प्रतिमान निर्मित किया है। निराला का कथा-साहित्य पूर्ण रूप से स्त्री संवेदना को, स्त्री-विमर्श को समर्पित है। उनके समय में स्त्री-विमर्श नाम प्रचलित नहीं था। लेकिन एक कथाकार के रूप में उन्होंने केवल स्त्री की जागृति का ही सृजन वह अपनी रचनाधर्मिता से करते हैं। स्त्री के लिए ही उन्होंने कहा है–’तोड़ो-तोड़ो कारा… निकलो जलधारा; यह बात समकालीन समय ही नहीं बल्कि अनन्त काल के लिए महत्त्वपूर्ण है।
स्त्री-चिन्तन, स्त्री-विमर्श के रूप में निराला अपने उपन्यासों में क्रान्तिकारी हैं; ‘अप्सरा’, अलका’, ‘निरुपमा’, ‘प्रभावती’ में वह समाज में स्त्री की जगह को तलाशते हैं। वह जगह जो नवयुवक, क्रान्तिकारी चेतना से निर्मित करते हैं। और ‘प्रभावती’ तक आते-आते वह दिखा देते हैं कि समाज संचालन में यदि पुरुष स्त्री का साथ न दे तो भी स्त्री समाज का संचालन कर सकती है। इस दृष्टि से देखा जाय तो पुरुष स्त्री पर अपने विचार नहीं लादता बल्कि निराला की दृष्टि से समन्वय करके आगे बढ़ता है।
कहानियों में स्त्री की शारीरिक पवित्रता, नैतिकता, निर्णय लेने की स्वतन्त्रता; आदि अनेक विषयों पर उन्होंने विचार किया है। और इन सभी विचारों के समक्ष जो भारतीय प्रतिमान स्त्री के निर्मित थे उन्हें निराला ने महाक्रान्तिकारी होकर के तोड़ दिया है। ‘देवी’, ‘चतुरी चमार’ और ‘दो दाने’ ऐसी कहानियाँ हैं, जो भारतीय समाज के पाखण्ड का विखण्डन कर देती हैं। और स्त्री को उसकी चेतना, उसकी अस्मिता और नवीनता के साथ प्रस्तुत करती हैं। ‘दो दाने’ कहानी में वह स्पष्ट दिखाते हैं कि अपने शरीर के प्रति स्त्री अपना स्वयं निर्णय ले। क्योंकि यह बाजार है, यहाँ सब कुछ बिकता है; और पैसा है तो जीवन है; और नैतिकता-भारतीयता- मर्यादा चाहे जो कुछ हो पर जिन्दगी से बड़ा कुछ भी नहीं होता है। अत: इस कहानी में स्त्री ने सारी ही मर्यादाएँ तोड़ दी हैं। वास्तव में वह हवा की तरह मुक्त हो गयी है।
निराला का अधूरा उपन्यास ‘चमेली’ हमें ‘समकालीन दलित स्त्री-विमर्श’ की विचारधारा से ओत-प्रोत दिखाई पड़ता है। चमेली जो विधवा है; और चमारिन है, गाँव के ठाकुर द्वारा सताए जाने पर उसकी पिटाई कर देती है, और जब उसके पिता द्वारा इसका विरोध किया जाता है, तो उसको भी डाँटती है। वह अपनी अस्मिता और प्रगति सम्मान और अधिकार के प्रति सचेत है। वह उस सामाजिक चेतना का निर्माण करना चाहती है, जो समान है; और गाँव में सबकी बहू-बेटी को समान मानता है।
कथाकार निराला का स्त्री-चिन्तन, स्त्री-विमर्श, वस्तु हो चुकी स्त्री को व्यक्ति का स्तर प्रदान करता है, बल्कि इससे आगे बढ़कर, उसके सम्मान, अधिकार, संघर्ष, और समाज में स्त्री की मान्य सम्मानित जगह की स्थापना करता है। और समकालीन स्त्री-विमर्श स्त्री को इसी स्तर पर ले जाने के लिए संघर्षरत है। इस दृष्टि से यदि हम निराला का दर्शन करते हैं तो उन्हें इक्कीसवीं सदी के समक्ष खड़ा हुआ पाते हैं। और इतना ही नहीं बल्कि अपने साथ चलता हुआ पाते हैं।
कथाकार निराला के यहाँ स्त्री जीवन का उपाय है, जीवन का सम्बल है; जीवन की शक्ति है; जीवन का प्रकाश है; जीवन का गौरव है, सहयात्री है, हमसाया है; वह बने-बनाये सभी स्त्री-प्रतिमानों को खण्डित करते हैं। उनका सम्पूर्ण कथा-साहित्य स्त्री की दृष्टि से यही कहता है– ‘है शक्ति, शक्ति, बस शक्ति है नारी; है सबल सृष्टि करता जीवन की, अधिकारी’ अत: जब भी हम उत्तर-आधुनिकता और कथाकार निराला को देखते हैं तो उन्हें उत्तर-आधुनिकता के दौर में अपने साथ चलता हुआ। संघर्ष करता हुआ, पाते हैं। उत्तर-आधुनिकता ने पूर्व की सदियों सें सर्वाधिक ज्ञानोदय किया है और निराला के स्त्री-सम्बन्धी विचार आधुनिकता के समय से ही हमारा ज्ञानोदय करते रहे हैं, और आज भी कर रहे हैं।
प्रस्तुत पुस्तक ‘उत्तर-आधुनिकता और कथाकार निराला का स्त्री-विमर्श’ भारतीय एवं वैश्विक जीवन के स्त्री-प्रतिमान, वर्तमान भारतीय एवं वैश्विक स्त्री-विमर्श के समक्ष निराला को स्थापित करती है। उनके उपन्यासों-कहानियों में जनवादी, लोकवादी, स्त्री विचारधारा को समकालीन समय के समक्ष प्रस्तुत कर; हाथ में क्रान्ति की मशाल लिये हुए दिखाती हैं। यही मेरा प्रयास रहा है कि निराला का समकालीन स्त्री-चिन्तन को योगदान, विषय को रेखांकित करूँ। इस पर मैं कहाँ तक सफल हुआ हूँ; यह तो आप सब बतायेंगे।
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डॉ. विनोद विश्वकर्मा
जन्म: 05 जुलाई, 1980, ग्राम – कोटरा खुर्द, तहसील-पोस्ट त्योंथर, जिला-रीवा, (म.प्र.) मेें।
शिक्षा: एम.ए. (हिन्दी), एम.फिल.- ‘लघुशोध’ ‘दलित आत्मकथाएँ सामाजिक एवं पाराम्परिक संदर्भ’,
पी-एच.डी.-शोध प्रबंध-‘निराला के कथा साहित्य में स्त्री: जीवन संघर्ष और मुक्ति की भावना’, एम.पी. स्लेट-2004, यू.जी.सी. नेट-2005।
कृतित्व: कविताएँ हिन्दी की पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित, आकाशवाणी रीवा से-कहानी एवं कविता का प्रसारण, लम्बी कविता-‘राम का पितृ शोक’ (432 पंक्ति) राष्ट्रीय पत्रिका ‘आजकल’ के सितम्बर -2011 अंक में प्रकाशित। 1. ‘प्रतिरोध की संस्कृति और उत्तर आधुनिकता’ पुस्तक का लेखन। बेबाक, ‘उत्तर आधुनिक समय और लोक जागृति के लिए कार्य।
सम्पादन: 1. ‘लोकजागरण और हिन्दी साहित्य (साहित्य का समकालीनजनपक्ष)
2. ‘उत्तर-आधुनिकता की सामाजिकता’
3. ‘उत्तर आधुनिकता: भूमिका के बाद’
4. ‘दलित विमर्श और आज की हिन्दी कहानी’ (सदियों के शोषण से मुक्ति और नव जीवन के रास्ते)’
5. ‘उत्तर समय मे प्रतिरोध के स्वर’
6. ‘हिंदी उपन्यास और समकालीन आदिवासी विमर्श’
6. ‘हिन्दी उपन्यास और आदिवासी चिन्तन: संघर्ष, सपने और चुनौतियाँ एवं 21 वीं सदी’
7. आदिवासी विमर्श: संस्कृति, संघर्ष और नए जीवन के सपने
8. उत्तर आधुनिकता और आदिवासी विमर्श पुस्तकों का सम्पादन।
चयन: 1. मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग से सन् – 2008 में सहायक प्राध्यापक हिन्दी, पद के लिए चयन, प्रवीण सूची में चतुर्थ स्थान। 2. सहअध्येता (एसोसिएट) भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, राष्ट्रपति निवास शिमला, हिमाचल प्रदेश में वर्ष-2014, 2015, 2016, के लिए। यू.जी.सी. शोध परियोजना: विश्वविद्यालय अनुदान आयोग दिल्ली के सहयोग से-माइनर रिसर्च प्रोजेक्ट ‘उत्तर आधुनिकता लोकमंगल’ के क्षेत्र में कार्य।
सम्प्रति: सहायक प्राध्यापक, हिन्दी, शासकीय स्वशासी स्नातकोत्तर महाविद्यालय एवं शोध अध्ययन केन्द्र सतना (म.प्र.) पिन-485001
संपर्क: dr.vinod.vishwakarma@gmail.com
dr.vinod_vishwakarma@yahoo.com
Mobile: 09424733246, 07415827975
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