







Uday Pratap Singh : Anubhav ka Aakash / उदय प्रताप सिंह : अनुभव का आकाश
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पुस्तक के बारे में
वर्तमान हिंदी साहित्य में कविता को लेकर एक विभाजन साफ दिखता है। एक कोटि में वे लोग हैं जिनकी कविताएं हिंदी कविता के विकास के साथ कदम ताल करती हुई आगे बढ़ी हैं। कविता के विकास के साथ पाठकों की संख्या कम होती गयी है। जिस तरह कविता विकसित होती गयी, पाठकों का बोध विकसित होता तो ऐसी हालत नहीं होती। दूसरी कोटि में वे लोग हैं जिनके श्रोताओं-पाठकों की संख्या आनुपातिक तौर पर अत्यधिक हैं। मंच से कविता पढ़ने वाले कवियों की संख्या काफी बढ़ी है, पर इनमें से ज्यादातर वे हैं जो कविता के नाम पर श्रोताओं का मनोरंजन करते हैं, उनके भीतर मौजूद हेय भाव को सहलाकर वाहवाही कराना ही अपना प्रेय समझते हैं। ऐसे लोगों ने कविता की चारण परम्परा का भी ह्रास किया है। यही कारण है कि जिस तरह पहली कोटि के कवियों ने काव्य-परम्परा का विस्तार और विकास किया है, वैसा दूसरी कोटि के ज्यादातर कवियों के लिए नहीं कहा जा सकता। मंचीय कविता में जिन थोड़े से कवियों ने हिंदी की श्रेष्ठ मंचीय काव्य-परम्परा से अपना रिश्ता कायम रखा है, उदय प्रताप सिंह का नाम उनमें शुमार है। इनकी कविताएं महज मनोरंजन के लिए नहीं हैं बल्कि देश-काल का अहसास कराती हैं। कविता का उद्देश्य मनुष्य के मनोभावों का परिष्कार करना, श्रेष्ठ भावों को जगाना है। उदय प्रताप सिंह की कविताएं इसी मकसद से रची गई प्रतीत होती हैं। इस लिहाज से इनकी कविता हिंदी की श्रेष्ठ मंचीय कविता और श्रोताओं- पाठकों की व्यापकता के बीच संतुलन का प्रमाण है और परिणाम भी।
— डॉ राजीव रंजन गिरि, राजधानी कॉलेज, (दिल्ली विश्वविद्यालय)
आदरणीय उदय प्रताप सिंह जी अमन, अदब और आदमियत के शायर हैं। साहित्य, समाज और सियासत तीनों में उनकी भूमिका प्रशंसनीय रही। हिन्दुस्तान को ये लघु वृत्त-‘ये मेरा है, यह तेरा है’ की जगह व्यापकता की परिधि में देखते हैं–
‘अनेकों रंग खुशबू नस्ल के फल-फूल पौधे हैं
मगर उपवन की इज्जत-आबरू ईमान सबका है।’
इनकी पारखी निगाह आदमी को बखूबी पहचानती है–
‘न हीरे हमने देखे, न उनकी परख हमें
हाँ! आदमी पहचानते हैं पहली नजर में।’
उनकी चाहत है मुल्क में अमन, शान्ति, प्रेम, सद्भाव बना रहे, इसीलिए कभी-कभी कलमकार बिरादरी पर गरम भी हो जाते हैं–
घृणा को प्यार का अन्दाज तुम सिखला नहीं सकते
कलम को तोड़ दो/जला दो अपनी किताबों को/
अगर तुम आदमी को रास्ते पर ला नहीं सकते।’
इनकी शायरी की अलग अदा है। इन्होंने निराला से नीरज तक, कवियों के काव्य-पाठ में मंच साझा किया है। अँग्रेजी के अध्यापक से कवि, राजनीतिक चिन्तक और राजनेता बने। सियासत में भी सृजन-श्रम से जुड़े रहे। इनकी शायरी भाषाई-एकता, प्रेम-प्यार, प्रकृति, परिवार, देश की परिस्थिति, युवाओं की पीड़ा, समाज की ज्वलंत समस्याओं को बड़ी संजीदगी से उठाती है। आज भी इनको बड़े अदब से काव्य गोष्ठियों में सुना जाता है। इन पर लिखी गई यह किताब मानव-मन के इन्द्रधनुषी भावों की अभिव्यक्ति के साथ ही सियासत पर सटीक व्यंग्य भी है।
‘सियासी हो गए बादल ये कितनी बेईमानी है
कहीं पर खेत सूखे हैं कहीं पानी ही पानी है।’
–डॉ. रणजीत यादव, (दिल्ली विश्वविद्यालय)
अनुक्रम
- भूमिका
- परिचय
खंड-1 : अनुभव का आकाश
- यह हिन्दुस्तान सबका है
- परमार्थ या स्वार्थ
- पेड़ की पत्ती और परिवर्तन
- फनकार की सार्थकता
- दौलत और मेहनत
- सत्यमेव जयते
- स्त्री-शक्ति
- दुनिया : बाहर-भीतर
- जीवन
- आदमी
- अनुभव
- पलायन और पुरुषार्थ
- सुख-दुःख
खंड-2 : सियासत और समस्याएँ
- एक मुट्ठी धान
- आदमी या गाय
- सत्ता से सवाल
- अयोध्या
- नेता
- बादल की सियायत
- विषमता
- सियासत और संवाद
- भ्रूण-हत्या : आधुनिकता पर अभिशाप
- अतीत और आज
- माली से प्रश्न
- देश : तब और अब
- मन की बात
खंड-3 : काव्य और कवि
- उसका प्यार
- युवा
- देश-प्रेम
- साहिबे किरदार
- भाषा
- कविता की केन्द्रीयता
- काव्य कला
- महादेव
- शारदे
- उपसंहार
उदय प्रताप सिंह की कविताएँ
- फूल और कली
- ऐसे नहीं जागकर बैठो तुम हो पहरेदार चमन के
- शारदे
- चाँदनी
- अयोध्या विवाद
- एक मुट्ठी धान में
- महादेव के लिए
- भगत सिंह
- प्यार तुम्हें दे सकता हूँ
- याहया खान के नाम खत
- गलती हुई होगी
- नहीं जी रहे अगर देश के लिए
- माली तुम्हीं फैसला कर दो
- भ्रूण-हत्या
- यह वह भारतवर्ष नहीं है
- बाहर खेती-बारी रख
- एक वक्त की रोटी खाते आधे हिन्दुस्तानी लोग
- ना तीर से न तलवार से मरती है सच्चाई
- बैसाखी पर चलते लोग
- फूलों का काँटों-सा होना
- बंजारे बंजारों में
- ज़माने वालो
- गलत कहानी नहीं चलेगी
- नाम पर मज़हब के ठेकेदारियाँ इतनी कि बस
- ये रोज कोई पूछता है मेरे कान में
- कुछ सिखलाती हैं हमें पेड़ों की हिलती पत्तियाँ
- न मेरा है न तेरा है ये हिन्दुस्तान सबका है
- एक मेरा दोस्त फासला रखने लगा
- दौलत के आगे-पीछे जब मेहनत नहीं होती
- हरगिज वो शख्स साहिबे किरदार नहीं है
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Description
Description
डॉ. धीरज कुमार
जन्म: 07 जुलाई 1982, गाँव हविलिया, जिला-मैनपुरी (उ.प्र.)
शिक्षा: पीएच.डी. (फिजिक्स)
प्रकाशन: विभिन्न अन्तर्राष्ट्रीय शोध् पत्रिकाओं में शोध् पत्र प्रकाशित, अमेरिका, जापान और कनाडा में आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में शोध् पत्र प्रस्तुति
पुरस्कार: इंटरनेशनल यूनियन फॉर रेडियो साइंस (URSI) द्वारा यंग साइंटिस्ट अवार्ड
सदस्य: इंडियन एसोसिएशन ऑफ फिजिक्स टीचर्स (IAPT)
रूचि: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, पर्यावरण, साहित्य और कला
संप्रति: असिस्टेंट प्रोफेसर फिजिक्स एण्ड इलेक्ट्रानिक्स डिपार्टमेंट, राजधानी कॉलेज (दिल्ली विश्वविद्यालय) नई दिल्ली
संपर्क: kdheeraj_7@yahoo.co.in फोन: 9411061468
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