Shyamali – श्यामली – उपन्यास

200.00

FREE SHIPMENT FOR ORDER ABOVE Rs.149/- FREE BY REGD. BOOK POST

Language: Hindi
Pages: 192
Book Dimension: 5.5″x8.5″

Amazon : Buy Link

Flipkart : Buy Link

Kindle : Buy Link

NotNul : Buy Link

SKU: N/A

Description

पुस्तक के बारे में

* स्त्री विमर्श का आह्वान करती सामाजिक जीवन की औपन्यासिक प्रस्तुति
स्त्री-जीवन हमेशा से ही कौतूहल का विषय रहा है। हिन्दी साहित्य में स्त्री विषयों पर कविता, कहानी, उपन्यास, निबन्ध आदि विभिन्‍न विधाओं में बहुत कुछ लिखा गया है और लिखा जा रहा है। मेरा स्वयं स्त्री विमर्श साहित्य से सरोकार है इसलिए मैं साहित्य में उन विषयों का हमेशा स्वागत करती हूँ जो स्त्री-जीवन से जुड़े हुए हैं किन्तु अछूते रह गये हैं अथवा जो समय के साथ अनदेखे होते जा रहे हैं, साहित्यिक द‍‍ृष्‍टि से भी इन सभी पर विचार करना आवश्यक है। साहित्य ही तो वह आईना है जो समाज की अच्छाई और बुराई को खुलकर सामने रखता है। आज स्त्री विषयक लेखन को ‘स्त्री विमर्श’ के नाम से जाना जाता है। यद्यपि यह सच है की स्त्री विमर्श के रूप में स्त्री चिन्तन की शुरुआत हिन्दी से पहले अन्य भारतीय भाषाओं, मुख्य रूप से मराठी में हो चुकी थी हिन्दी साहित्य में स्त्री विमर्श का लम्बा इतिहास भले ही ना हो लेकिन इसमें स्त्री चिन्तन की गहराई बहुत अधिक है। स्त्री विमर्श के स्वरूप को लेकर विविध विचार हमेशा गतिमान रहे हैं कुछ लोग स्त्री की दैहिक स्वतंत्रता को स्त्री विमर्श का मूल मुद्दा मानते हैं तो कुछ स्त्री के आत्म सम्मान भरे जीवन और सामाजिक अधिकारों को स्त्री विमर्श का आधार मानते हैं। दोनों ही विचारों में एक आधारभूत समानता है वह यह कि दोनों अपने विमर्श में स्त्री के अधिकारों की बात करते हैं। स्त्री विमर्श मात्र स्त्रियों की थाती नहीं है किन्तु जब स्त्रियों के जीवन के बारे में कोई लेखिका अपनी क़लम चलाती है तो उसमें स्त्री के यथार्थ और उसकी जीवन की विसंगतियाँ का बारीकी से चित्रण मिलता है। भले ही लेखिका ने उन विसंगतियों, उन विडम्बनाओं को ना जिया हो, किन्तु एक स्त्री होने के नाते वह सभी स्त्रियों की पीड़ा को अपनी संवेदनाओं के सहारे बाखूबी समझ सकती है।
हिन्दी साहित्य में ऐसे कई उपन्यास हैं जिनमें मुख्य पात्र नायिका है अर्थात एक स्त्री मुख्य पात्र है। कथाकार सुनीला सराफ का प्रथम उपन्यास ‘श्यामली’ स्त्री-जीवन पर आधारित है और उसकी प्रमुख पात्र उपन्यास की नायिका ‘श्यामली’ ही है। एक पारम्परिक परिवेश में स्त्री को एक साथ बहुत सारी जिम्मेदारियों को निभाना पड़ता है। विवाह पूर्व जब वह मायके में रहती है तो उसे माता-पिता की आज्ञा का सम्मान करना होता है। उसे अपने मायके की परम्पराओं का पालन करना होता है। किन्तु जब एक लड़की का विवाह हो जाता है और वह नववधू बन कर अपनी ससुराल आती है तो उसे ससुराल की परम्पराओं को आत्मसात करना पड़ता है। अब यह उसका दायित्व होता है कि वह ससुराल की परम्पराओं को सहेजे और आगे बढ़ाए। उसके लिए यह एक चुनौती भरी स्थिति होती है, क्योंकि यह आवश्यक नहीं है कि जो परम्पराएँ उसके मायके में संचालित थीं वही परम्पराएँ ससुराल में भी उसे मिलें। कई बार आचार-व्यवहार-संस्कार का अंतर मिलता है जिसके साथ तालमेल बिठाना सिर्फ उसे नव विवाहिता का दायित्व होता है और किसी का नहीं। इससे भी बड़ी विडम्बना का विषय भारतीय समाज में यह है कि सभी को गोरी, सुन्दर, सुघढ़ वधू चाहिए, चाहे वर में कितने भी ऐब क्यों न हों। श्यामली के माध्यम से लेखिका ने समाज में व्याप्त इन्हीं विसंगतियों को सामने रखा है। यदि लड़की की रंगत साँवली है तो इसका मतलब यह नहीं है कि वह किसी भी द‍‍ृष्‍टि से अयोग्य है। एक साँवली लड़की भी किसी साफ रंगत वाली लड़की की भाँति पूर्णतया योग्य होती है फिर भी साँवली रंगत वाली लड़की को उपेक्षा का शिकार होना पड़ता है। पहले तो उसके विवाह में दिक्‍कत आती है। विवाह तय होता भी है तो दहेज की मोटी रकम और दया-भावना के प्रदर्शन के साथ। यदि उसके कुशल-व्यवहार से उसके सास-ससुर उसे स्वीकार कर भी ले तो भी उसे अपने पति की उपेक्षा झेलनी पड़ती है क्योंकि वह पति की आकांक्षा के अनुरूप गोरी-चिट्टी जो नहीं होती। यूँ भी यदि पति में ऐब है यानी वह शराबी है, जुआरी है या घर से विमुख है तो उसे सुधारने का दायित्व भी नवविवाहिता पर होता है मानो उसके पास कोई जादू की छड़ी हो जिसे वह घुमाएगी और उसका पति जो अपने माता-पिता के कहने से भी नहीं सुधरा उसके कहने पर एक रात में सुधर जाएगा। या फिर उसके पास कोई गोया वशीकरण मंत्र हो जिससे वह अपने पति को वश में करके सुधार सकेगी।

…इसी पुस्तक से…

Additional information

Weight N/A
Dimensions N/A
Product Options / Binding Type