







Sabhyata ke Gunsutra (Collection of Peotry) / सभ्यता के गुणसूत्र (कविता संग्रह)
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हिन्दी के प्रख्यात कवि श्री शिरोमणि महतो का यह नया संग्रह ‘सभ्यता के गुणसूत्र’ नवाचार और नव सभ्यता समीक्षा का अनुपम उदाहरण है। उन्होंने न केवल नयी ज़मीन तोड़ी है बल्कि पहले से जुते हुए खेतों में भी नयी फसल उगायी है। सुदूर गाँवों, जंगलों, आदिवासी समाज के अब तक अप्राप्य रहे जीवन प्रसंगों को शिरोमणि महतो ने यहाँ काव्य में बदलने का यत्न किया है। ‘कटोरा में चाँद’, कुंदा और पैदल चल रहे लोग ऐसी ही निर्मम स्थितियाँ हैं। कवि की भाषा भी सबसे भिन्न है। स्वयं कवि के पहले संग्रहों से भिन्न और परिपक्व। कहन की शैली लोककथाओं की याद दिलाती है। लेकिन कवि की मुख्य चिंता सामान्य जन हैं और उनका निरंतर क्षरित होता जीवन। फिर भी उनमें जीवटता है, जैसे कि ‘जो पदक से चूक गयी’ कविता में। सबसे प्रभावशाली कविता है ‘गुणसूत्र’ जो निश्चय ही आज की सर्वाधिक क्रांतिकारी कविताओं में शुमार की जाएगी। ‘पानी में इंद्रधनुष’ भी ऐसी विलक्षण कविता है। जैसे कि ‘ढीला हेरना’ विस्मित कर देने वाली रचना है।
–अरुण कमल, पटना
शिरोमणि महतो हिंदी के उन कवियों में हैं जिनकी कविता में आमजन और जनजातीय समाज की संस्कृति, उनके संघर्ष और जिजीविषा अभिव्यक्त होती है। उनकी कविताओं में गहरी स्थानीयता है। वे जिस परिक्षेत्र के कवि हैं, उस इलाके में कविता की आवाजाही बहुत कम है। वहां की शब्दावलियां, बिम्ब और मिथक हिंदी कविता में विरल हैं। जब से कविता का शहरीकरण हुआ है, इस तरफ कम कवियों ने ध्यान दिया है। शिरोमणि अपने ग्रामीण समाज के पक्ष में जो कुछ लिखते हैं उसमें तकलीफ के साथ सम्वेदना भी है। उन्होंने उस क्षेत्र की ध्वनियों और भाषा को शिद्दत के साथ प्रस्तुत किया है।
वे अपनी कविता में कोई वितान नही बांधते बल्कि उसे सहजता के साथ लिखते हैं। यह सहजता उनकी कविता का प्राण तत्व है।
वे अपनी कविता में कोई मोहक बिम्ब नही रचते वरन यथार्थ के साथ रूबरू होते हैं। आधुनिक सभ्यता ने जिस तरह से लोकसमाज को विच्छिन्न किया है, वह उनकी कविता में जहां तहां दिखाई देता है। वे अपनी कविता ‘सभ्यता के गुणसूत्र’ में लिखते है – ‘धरती के शरीर में / शिराओं की तरह / बहती नदियों में बहता हुआ जल / शिराओं का लहू है / नदियां सभ्यताओं की जननी हैं / उनके बहते जल में सभ्यताएं संचरण करती हैं।’ इससे अलग उनकी कविता ‘चाहना’ का एक अंश देखे – ‘गौरैया जैसे चहकती है घर की मुंडेर पर / वैसे तुम चमको मेरे दुखों के ढेर पर।’
– स्वप्निल श्रीवास्तव, फैजाबाद, उत्तर प्रदेश
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शिरोमणि राम महतो
जन्म तिथि : 29 जुलाई 1973; शिक्षा : एम.ए. (अपूर्ण); संप्रति : अध्यापन तथा “महुआ” पत्रिका का संपादन। प्रकाशन : कथादेश, हंस, कादम्बिनी, पाखी, नया ज्ञानोदय वागर्थ, आजकल, परिकथा, तहलका, समकालीन भारतीय साहित्य, द पब्लिक एजेन्डा, परिंदे, यथावत, सूत्र, वीणा, माटी, सर्वनाम, जनपथ, युद्धरत आम आदमी, शब्दयोग, अक्षर पर्व, लमही, प्रसंग, नई धारा, पाठ, सूत्र, बहुमत, अनहद, अंतिम जन, दैनिक जागरण ‘पुनर्नवा’ विशेषांक, दैनिक हिंदुस्तान, जनसत्ता विशेषांक, दैनिक भास्कर, छपते छपते विशेषांक, रांची एक्सप्रेस, प्रभात खबर एंव अन्य दर्जनो पत्र-पत्रिकाओ में रचनाएँ प्रकाशित। प्रकाशित पुस्तके : धूल में फूल (बाल कविता-संग्रह) 1993; पतझड़ का फूल (काव्य पुस्तिका) 1996; उपेक्षिता (उपन्यास) 2000; कभी अकेले नही (कविता-संग्रह) 2007; संकेत–3 (कविताओं पर केंद्रित पत्रिका) 2009; भात का भूगोल (कविता-संग्रह) 2012; करमजला (उपन्यास) 2018; चाँद से पानी (कविता-संग्रह) 2018; झारखण्ड की समकालीन कविता (संपादन) 2021; समकाल की आवाज़ (चयनित कविताएँ) 2022; सम्मान : कुछ संस्थाओं द्वारा सम्मानित। नागार्जुन स्मृति राष्ट्रीय सम्मान, बिहार। सव्यसाची सम्मान, इलाहाबाद। परिवर्तन लिटेरचर अचीवर्स आवार्ड, नई दिल्ली। जयशंकर प्रसाद स्मृति सम्मान, रांची। विशेष : कुछ भारतीय भाषाओं – मराठी, सिंधी, ऊर्दू, उड़िया, गुजराती सहित अंग्रेजी, नेपाली में रचनाओं के अनुवाद प्रकाशित। उपन्यास “करमजला” पर रीता देवी वीमेन्स यूनिवर्सिटी भुवनेश्वर तथा वर्द्धमान यूनिवर्सिटी में लघु-शोध कार्य किया गया। रचना-कर्म पर केन्द्रित इलाहाबाद का साप्ताहिक अखबार शहर समता का विशेषांक। संपादन : “महुआ” एवं पंख पत्रिका। इधर कुछ सालों से महुआ पत्रिका का नि:शुल्क वितरण। दो सौ से अधिक साहित्यिक-सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन एवं संचालन। मोबाइल नम्बर – 9931552982
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