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कविता के प्रदेश में पिछले कुछ वर्षों में जिन युवाओं ने कदम रखा है उनमें प्रभात प्रणीत भी शामिल हैं। स्वभाव से विनम्र, संकोची और संवेदनशील लेकिन अपने सोच और सृजन में स्पष्ट। कविता उनके लिए अपने समय के सवालों और विडंबनाओं से जिरह का जरिया है। एक बेहतर दुनिया की कामना उनको निश्चित नींद नहीं लेने देती : मेरी गहरी नींद हर रात तीन बजे टूट जाती है और मुझे चन्द लम्हे मिलते हैं खुली आँखों वाले ख्वाब देखने के लिए ये पंक्तियाँ एक कवि के रूप में उनकी चिन्ताओं का संकेत करती हैं। जिस कविता की ये पँक्तियाँ हैं उसके शीर्षक ‘पृथ्वी सिकुड़ कर एक मुट्ठी में कैद हो रही है’ को ध्यान में रखें तो एक कवि के रूप में प्रणीत की चिन्ताएँ बिल्कुल स्पष्ट हो जाती हैं। यह विशेषता उनकी अन्य कविताओं में भी सहज ही देखी जा सकती है। मसलन, ‘देश की बात’ कविता में वह लिखते हैं : बारिश बहुत तेज है लेकिन पानी गुम हो जा रहा है। कहना न होगा कि ऐसी सजग-सचेत दृष्टि से सम्पन्न प्रणीत काफी सम्भावनाएँ जागते हैं। उन्हीं के शब्दों में कहें तो उनकी कविता वर्तमान के ‘सन्नाटे’ को चीरने वाली ‘नई आवाज’ है।
— धर्मेंद्र सुशांत
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प्रभात प्रणीत
जन्म : 7 अगस्त 1977 को वैशाली, बिहार
शिक्षा : बी.टेक.
किताब : विद यू विदाउट यू, उपन्यास (2017)
सम्पर्क : prabhatpraneet@gmail.com
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