







Osho : Hashiye par Mukhprastha <br> ओशो : हाशिए पे मुखपृष्ठ
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Author(s) — Saroj Kumar Verma
लेखक — सरोज कुमार वर्मा
| ANUUGYA BOOKS | HINDI | 143 Pages | 6.25 x 9.25 inches |
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Description
पुस्तक के बारे में
ओशो स्वातंत्र्योत्तर भारतीय दर्शन के आकाश में जगमगाता हुआ ऐसा नक्षत्र हैं, जिसके प्रकाश में दर्शन न केवल बाहर व्यापक विस्तार लेता है, बल्कि अंदर तलीय गहराई भी स्पर्श करता है। वह इस मायने में कि जहाँ ओशो अर्थ, काम, नीति, शिक्षा, समाज, विज्ञान और राजनीति जैसे जीवन के बाह्य विविध प्रसंगों में अपने विचार प्रस्तुत करते हैं, वहीं अपने भीतर जाकर धर्म धारण करने, आत्मा का बोध प्राप्त करने तथा स्वयं के साक्षात्कार की ओर उन्मुख होने की अनिवार्यता भी प्रतिपादित करते हैं। इस प्रकार ओशो का दर्शन उस संपूर्ण-समन्वित जीवन का प्रस्ताव है, जिसमें अंदर और बाहर दोनों दिशाओं की समृद्धि होती है, दोनों आयामों का समन्वय होता है। ओशो अपने इस प्रस्ताव को वैचारिक स्थापना की उर्वर जमीन देकर भाषा-सरणी के जल से सींचते हैं, फिर उसमें वक्तृत्व-कला का रसायन डालकर तर्क की भित्ति पर तर्कातीत बोध की ऐसी मादक सुगंध बिखेर देते हैं कि उन्हें हर पढ़ने-सुनने वाला मदहोशी में डूब जाता है। यह मदहोशी होश का ऐसा स्वाद दे जाती है, जो चेतना को तृप्त कर अनंत की यात्रा पर निकलने के लिए तैयार कर देता है। इसीलिए सुश्री उर्मिल सत्य भूषण यह लिखती हैं कि–“एक युगपुरुष की भाँति ओशो रजनीश जीवन और जगत के स्थूल से स्थूल और सूक्ष्म में सूक्ष्म पक्षों को अपनी आत्मा का स्पर्श देकर, गहरे पैठकर व्याख्या करते हैं। दर्शन जैसे श्रेष्ठ विषयों में भी प्राण फूँककर उन्हें नई अर्थवत्ता के आलोक में प्रस्तुत करते हैं। राजनीति, अर्थशास्त्र, मनोविज्ञान, ध्यान, योग, दर्शन, काम, अध्यात्म– सभी विषयों को अपनी अमृत वाणी से सींच-सींचकर, रसप्लावित कर हृदय के तार-तार तथा मस्तिष्क की शिराओं तक पहुँचाते हैं। उनकी साधना और साहित्य को अलग नहीं किया जा सकता।
उनके प्रवचनों में बहती हुई कल-कल निनाद करती काव्य-सरणी, उनके दृष्टांतों में गुँथी कथा-यात्राएँ, उनकी वाणी में से झरते हास्य-व्यंग, उन्हें एक उच्च कोटि का साहित्यकार घोषित करते हैं। वे साधक, कवि, कलाकार, मनीषी सब कुछ हैं। पृथ्वी और जीवन से जुड़ी उनकी मधुर, सरल, प्रवाहमान वाणी में अथक संप्रेषणीयता है। वे साधना, दर्शन और साहित्य के अनूठे संगम में विलक्षण प्रभाव पैदा किये हैं।”1 इस प्रभाव के कारण ही खुशवंत सिंह भी यह कहते हैं कि– “भारत ने अब तक जितने विचारक पैदा किये हैं, वे उनमें से सबसे मौलिक, सबसे उर्वर, सबसे स्पष्ट और सर्वाधिक सृजनशील विचारक थे।”2
परंतु कई लोग उन्हें विचारक नहीं मानते। उनकी दलील होती है कि ओशो ने नया कुछ नहीं कहा है, इसलिए उन्हें मौलिक दार्शनिक की संज्ञा नहीं दी जा सकती, उस श्रेणी में नहीं रखा जा सकता।
इसी पुस्तक से
जन्म : 20 अगस्त, 1961; शिवहर (बिहार), जिला का बसहिया (पिपराही) गाँ
अनुक्रम
स्थापना खंड
ओशो : व्यापक सरोकार के दार्शनिक
अद्वैतवाद की परंपरा में ओशो
हिन्दी भाषा में ओशो का दार्शनिक चिंतन
अवधारणा खंड
जोरबा दि बुद्धा : ओशो की मुकम्मल मनुष्य की परिकल्पना
ओशो दर्शन में पुरुषार्थ विवेचन
ओशो का शिक्षा-दर्शन : संपूर्ण शिक्षा-पद्धति का प्रस्ताव
ओशो दर्शन में ध्यान की अवधारणा
तुलना खंड
फ्रायड और ओशो के चिंतन में काम : एक तुलनात्मक अध्ययन
श्री अरविन्द और ओशो का नया मनुष्य : एक तुलनात्मक अध्ययन
कृष्णमूर्ति और ओशो का धर्म-दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन
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