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Katha Samay — Dastaveji Laghukathain / कथा समय — दस्तावेजी लघुकथाएँ

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Language: Hindi
Pages: 223
Book Dimension: 6.25 x 9.25

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SKU: 9789389341102

Description

पुस्तक के बारे में

“अवैज्ञानिक कर्मकांडों, रूढ़ियों, परम्पराओं को बदलने के लिए लेखक वैचारिक भूमि बनाते हैं। समाज की प्रगतिशील शक्तियाँ जो शोषण, भेदभाव, दमन और अत्याचार के खिलाफ हैं, जो धर्मनिरपेक्षता, समाजवाद और व्यक्ति की स्वतन्त्रता और निजता को अहमियत देते हैं। उन शक्तियों को आगे बढ़ाने में अपरोक्ष ही सही, साहित्य मदद करता है। वे इसलिए लिखते हैं, ताकि वे मनुष्य के हित में समाज में बदलाव ला सकें।”
–भगीरथ

“अपनी अनुभूतियों और मंतव्य को उपयुक्त शब्द देने और सम्प्रेषित करने की दिशा में ‘लघुकथा’ मुझे उतनी ही सक्षम विधा लगती है, जितनी सक्षम विधा बिरजू महाराज को नृत्य की, एम.एफ. हुसैन को चित्रांकन की और बिस्मिल्ला खाँ को शहनाई बजाने की विधा लगती होगी। ‘सन्तुष्टि’ का अर्थ पूर्ण क्षमता, शक्ति और ईमानदारी से अपने कार्य में लगे रहना होता है; सो, मैं अपने-आप से एक-तिहाई ही सन्तुष्ट हूँ क्योंकि आलस्य के चलते अपनी पूरी क्षमता और शक्ति का उपयोग लेखन में मैं नहीं कर पाया।”
–बलराम अग्रवाल

“यश और धन को प्राथमिक मानकार लिखा गया साहित्य विलास और स्वार्थ की सन्तान है। दरअसल किसी भी युग में साहित्य का सबसे बड़ा लक्ष्य न्याय, समता और स्वतंत्रता-युक्त समाज की स्थापना ही होगा। ऐसी सोच व दृष्टि से प्रेरित साहित्य पाठक को मुग्ध करने की अपेक्षा सजग व संवेदनशील बनाने की कवायद करेगा, इसलिए बेहतर और समाजोपयोगी होगा।”
–अशोक भाटिया

“मेरा लघुकथा लेखन कभी भी तुरत-फुरत नहीं हुआ। मेरा मानना है कि साहित्य की दूसरी विधाओं की तरह लघुकथा का जन्म लम्बी सृजन-प्रक्रिया के बाद ही सम्भव है। मेरी अधिकतर लघुकथाएँ इस सृजन-प्रक्रिया से गुज़री हैं। मेरे पात्र कभी मेरे हाथों की कठपुतली नहीं रहे। मैंने लघुकथा-लेखन में कथ्य विकास हेतु वास्तविक जीवन में सम्बन्धित पात्रों की तलाश की, जिसके लिए बहुत धैर्यपूर्वक प्रतीक्षा करनी पड़ती है। मेरी किसी भी लघुकथा के सृजन के बारे में पूछा जाए, तो मेरे पास सुनाने को एक रोचक कहानी होगी।”
–सुकेश साहनी

“मानव-मात्र की बेहतरी के लिए समय के समक्ष खड़ी समस्याओं के मूल स्रोतों को उत्पन्न करने वाले कारणों को तलाशने और परिवर्तन की सहायक शक्ति के रूप में लघुकथा का उपयोग अधिक कारगर सिद्ध हो सकता है। कोई भी स्थिति या प्रसंग मेरे लिए तभी कथावस्तु योग्य बनता है, यदि उसमें बृहत्तर सामाजिक आयाम जुड़ते दिखाई दे रहे हों, कथावस्तु आंतरिक और बाह्य संभावनाओं को समेटने और बृहतर मानवीय संवेदना को जगाने में सक्षम हो। उच्च मानवीय मूल्यों को बचाये-बचाये रखने के लिए प्रेरित करने वाली रचना ही श्रेष्ठ और साहित्यिक हो सकती है।”
–कमल चोपड़ा

“मेरी यह दृढ़ मान्यता है कि लघुकथा विधा के द्वारा समकालीन सामाजिक यथार्थ और इसकी विरूपताओं, विसंगतियों, विशेषताओं तथा आम आदमी के संघर्ष, सपने तथा जुझारूपन को विश्वसनीय और प्रभावशाली ढंग से अभिव्यक्त किया जा सकता है। आज देश जिन विषम परिस्थितियों से गुज़र रहा है उसे देखते हुए ऐसी साहित्यिक विधा की जरूरत है जो एक साथ लोकप्रिय हो और मनुष्य की चेतना को भी प्रभावित करती हो। लघुकथा वही विधा है।”
–माधव नागदा

“मैं समझता हूँ कि यदि सामाजिक बदलाव के प्रति लेखकों को प्रतिबद्ध होना है तो लघुकथा एक उचित माध्यम है। लघुकथा लेखन आसान नहीं, स्थितियों पर गूढ़ चिंतन के बाद उचित रचना का प्रतिफल प्राप्त होता है। सावन में हरा-हरा लिखने में बुराई नहीं लेकिन सावन में बिलों में पानी भर आने से कीड़े, साँप आदि बेघर हो जाते हैं, उसे भी दृष्टिगत करना है। सत्य के अनावरण के लिए भी लघुकथा एक सशक्त माध्यम है। यही कारण है कि लघुकथा लेखन मेरा पसन्दीदा लेखन है।”
–चन्द्रेश कुमार छतलानी

“व्यक्ति को उतावला बनाती तकनीक के इस युग में जहाँ एक ओर लेखक अपनी रचना को स्वयं ही लघुकथा घोषित कर लोगों के सामने लाता है वहीं दूसरी ओर आलोचक के पास भी समयाभाव है और वह हर रचना को दुरुस्त करने का ज़िम्मा नहीं ले सकता। हाँ, यह कहना कि ‘पढ़ते रहिए और कोशिश करते रहिए’ ग़लत नहीं लगता क्योंकि लिखने की विधा पढ़ते-लिखते ही सधती है और अच्छे लेखन हेतु निरंतर अच्छे साहित्य के अध्ययन से बेहतर कोई दूसरा उपाय नहीं।”
–दीपक मशाल

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