







Karamjala (Novel by Shiromani Mahto)<br>करमजला (उपन्यास — शिरोमणि महतो))
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Author(s) — Shiromani Mahto
लेखक — शिरोमणि महतो
| ANUUGYA BOOKS | HINDI| 125 Pages
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पुस्तक के बारे में
….. विभा राघव से मिलना चाहती थी। उसने अपने बगल की लड़की रंजना से राघव के बारे में पूछा। रंजना ने बताया कि उसने कभी-कभार राघव को देखा है। उसने यह भी बताया कि राघव ने जहर खा लिया था। विभा अन्दर से सिहर उठी थी। विभा ने एक पत्र लिखा और रंजना को राघव तक पहुँचाने के लिए कहा। साथ में यह भी कहा कि राघव को ही देना किसी दूसरे को नहीं। और यदि राघव न मिले तो तुम मुझे पत्र वापस लौटा देना। न ही पत्र को फाडऩा और न ही फेंकना। रंजना समझदार थी, उसने विभा की हिदायतों का अक्षरश: पालन किया। उसने अकेले में पाकर राघव को पत्र दिया। राघव ने चुपचाप पत्र ले लिया और बिना खोले अपनी जेब में डाल लिया।
क्वार्टर आकर राघव सीधा खटिया पर लेट गया। फिर जेब से कागज का टुकड़ा निकालकर पढऩे लगा। बिना किसी सम्बोधन के सीधे शब्दों में विषय-वस्तु लिखी हुई थी।
”राघव मैं तुमसे मिलना चाहती हूँ, हो सके तो सन्ध्या के समय क्वार्टर आ जाना। तब बाबूजी नहीं रहेंगे। और कोई देख भी नहीं सकेगा। तब तक अँधेरा हो जायेगा। आज भी तुम्हारी निशानी मेरी कोख में जीवित है।”
—इसी पुस्तक से…
विभा जो अब तक काठ की भाँति चुप थी। यकायक बोल पड़ी, माँ, मैं अब और कुछ नहीं करूँगी–… मुझे अब मेरी चिन्ता नहीं है… मेरे जीने के लिए दिव्या काफी है… मुझे अब दिव्या के लिए अपना सब कुछ लुटाना… कम-से-कम दिव्या को सम्मान से पिता का नाम तो मिलेगा… यही मेरे लिए काफी है… और यही मेरा सौभाग्य है–…। विभा की आँखों से आँसू छलक पड़े थे और उसकी कुछ बूँदें दिव्या के चेहरे पर पड़कर चमकने लगी थीं।
”बेटा कपिल…।” नन्दनी देवी ने दीर्घ नि:श्वास लिया, ठीक है तुम विभा से ब्याह नहीं कर सकते हो… लेकिन इससे मिलते-जुलते रहना… एक दोस्त बनकर इसका मन बहलाते रहना…। किसी तरह का डर-भय मत करना। जो कुछ होगा मैं सब सँभाल लूँगी।
— इसी पुस्तक से…
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