







Jung Jaari Hai (Novel) <br> जंग जारी है (उपन्यास )
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Author(s) — Ahmed Sagheer
लेखक — अहमद सगीर
| ANUUGYA BOOKS | HINDI | Total 108 Pages | 2022 | 5.5 x 8.5 inches |
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Description
Description
#अहमद सगीर
अहमद सग़ीर पुत्र स्व. मो. हनीफ; जन्म–21 नवम्बर 1963; शिक्षा–एम.ए. (उर्दू), पीएच.डी.। प्रकाशित कृतियां (उर्दू) : मुंडेर पर बैठा परिंदा (कहानी संग्रह), 1995; अन्ना को आने दो (कहानी संग्रह), 2001; जंग जारी है (उपन्यास), 2002; आधूनिक उर्दू कहानियों में विरोध की आवाज़ (शोद्यालोचना), 2003; एक बून्द उजाला (उपन्यास), 2013; कहानी अभी ख़त्म नहीं हुई है (कहानी संग्रह), 2015। प्रकाशित कृतियां (हिन्दी) : चिंगारियों के दरम्यान (ग़ज़लें) 2002; घर वापसी (कहानी संग्रह), 2019; दरवाज़ा अभी बन्द है (उपन्यास), 2019। अनुवाद (उर्दू से हिन्दी) : बेशिनाख़्त (कहानी संग्रह) नासिर बुग़दाददी, पाकिस्तानी कथाकार, 2000; तलाशे बहाराँ (शायरी), किशोरी लाल नसीम, 2000; प्रतिनिधि शायरी (शायरी), अकबर इलाहाबादी, 2001; प्रतिनिधि शायरी (शायरी), ख़्वाजा मीर दर्द, 2004; प्रतिनिधि शायरी (शायरी), शकेब जलाली, 2004। पुरस्कार : मुंडेर पर बैठा परिंदा (बिहार उर्दू अकादमी), 1995; अन्ना को आने दो (पश्चिम बंगाल उर्दू अकादमी), 2001; आधूनिक उर्दू कहानियों में विरोध की आवाज़ (दिल्ली उर्दू अकादमी), 2003; एक बून्द उजाला (बिहार उर्दू अकादमी), 2013; कहानी अभी ख़त्म नहीं हुई है (उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी), 2015। संपर्क–हनीफ मंजील, कोयली पोखर, पुलिस लाइन, गयवाल बिगहा, गया (बिहार) मोबाईल नं./ई-मेल : 9931421834] ahmadsagheer59@gmail.com
पुस्तक के बारे में
अहमद सगीर ने एक ऐसे विषय को अपने काँधे पर रख लिया है जो हर-हर कदम पर उनकी साँस फुला देता है, क्योंकि ये सारी समस्या उपन्यास के फ्रेम में गालबन पहली बार आये हैं मगर मीडिया ने नमक-मिर्च लगाकर इन समस्याओं को बार-बार पाठक के सामने परोसा है। मतलब ये है कि अहमद सगीर ने सामने की सच्चाई में उपन्यास का विषय ढूँढ़ा है यानी Crude Realism से काम लिया है तथापि “जंग जारी है” एक ऐसा उपन्यास है जो हवाले के तौर पर पढ़ा जायेगा और किसी भी तरह से इतिहास में अपना नाम दर्ज़ करायेगा।
प्रो. मौला बख़्श
उर्दू विभाग, अलीगढ़ विश्वविद्यालय
उपन्यास “जंग जारी है” में वर्तमान दिशाहीन राष्ट्र के दाव-पेंच, मुस्लिम समाज का पिछड़ापन और उसके साथ देश की राजनीति के अन्याय की प्रस्तुती और अभिव्यक्ति को ख़ासे बोल्ड ढंग से प्रस्तुत किया गया है। अपने विषय के ट्रीटमेंट में लेखक ने बहुत ही हिम्मत से काम लिया है। अहमद सगीर ने अपनी प्रस्तुति में प्रभाव पर ख़ास नज़र रखी है जो उपन्यास के हर मोड़ (Turn) से व्यक्त है और सबसे अच्छी बात ये नज़र आयी कि छोटे फ्रेमवर्क में भी उपन्यास के मवाद सिमटने के बज़ाये ख़ासे फैले हुए हैं। तथ्य के मुशाहदात खासे गहरे और Convincing है। मंजुला और इरफान की दोस्ती के उतार-चढ़ाव ख़ासी तर्ज़बाकारी, ज़िन्दगी के बरताव और सलीकों का पता देते हैं। उपन्यासकार का खुलूस न ख़ालिस जज़्बाती है, न ही आक्रामक, बल्कि हालात और वाकयात की बाहमी क़शिश और परिणाम की आहट (Fore shadow) पाठक को झँझोड़कर रख देते हैं। इसका भी अन्दाज़ा हो जाता है कि हिन्दुस्तान की आईंदा राजनीति क्या होने जा रही है जिसके लिए अल्पसंख्यकों को तैयार रहना चाहिए। ये एक चेतावनी से ज़्यादा Alertness का दामन थामे हुए है।
प्रो. मो. अक़ील रिज़्वी
भूतपूर्व अध्यक्ष, उर्दू विभाग
इलाहाबाद विश्वविद्यालय
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