







Jugesar <br> जुगेसर
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Author(s) — Harendra Pandey
लेखक – हरेन्द्र पाण्डेय
| ANUUGYA BOOKS | BHOJPURI | 112 Pages | 2021 |
| 5 x 8 Inches | avaibale in PAPER BACK & HARD BOUND |
- Description
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Description
Description
हरेन्द्र कुमार पाण्डेय
हरेन्द्र कुमार पांडेय के जन्म 1955 में सारण जिला के बनियापुर प्रखंड कें नदौआ गाँव में भइल। छपरा के राजेन्द्र महाविद्यालय से 1976 में भौतिकशास्त्र में प्रथम श्रेणी से स्नातक (प्रतिष्ठा) के उपाधि प्राप्त कइला के बाद कोलकता विश्वविद्यालय से एल.एल.बी. कइनी। इहाँ कस्टम पदाधिकारी के रूप में नौकरी शुरू कइनी आ केन्द्रीय उत्पाद शुल्क आ सीमा शुल्क विभाग से सायहक आयुक्त के पद से सेवानिवृत्त भइनी। सरकारी सेवा से सेविनवृत्त के बाद इहाँ के कोलकाता उच्च न्यायलय में टैक्स मामला के केस देख रहल बानी। इहाँ के अध्ययन व्यापक बा, मिथक, कथा साहित्य, इतिहास के समाजशास्त्र जइसन विषय के असर इहाँ के लेखन पर साफ लउकेला।
भौजपुरी के अलावा इहाँ के अँग्रेजी, हिन्दी आ बंगला में साधिकार पठन आ लेखन करीले। इहाँ के लेखन में जिनगी के विभिन्न पक्ष के जानकारी मिलेला।
लेखन इहाँ के सवख हवे। इहाँ के कर-निर्धारण के विषय पर कानून जगत के जर्नल जइसे इक्सी लॉ, आइम टाइम्स में लिखिले। सम-सामियक विषय पर स्थानीय पत्रन में इहाँ के रचना छपत रहेला। भोजपुरी सिहत्य के आधिनक स्वरूप देबे में इहाँ के लेखन के बड़का योगदान बावे। गाँव-देहात के परम्परागत छवि से मुक्त क के इहाँ के शहरी जीवन के जटिलता से भोजपुरी साहित्य के समृद्ध कइनी। अखिल भारतीय भोजपुरी सिहत्य सम्मेलन 2009 में सर्वश्रेष्ठ भोजपुरी उपन्यास खितर इहाँ के उपन्यास ‘सुष्मिता सन्याल क डायरी’ के चयन कईलस आ अभ्यासनन्द उपन्यास पुरुस्कार अर्पित कईलस। ‘भोजपुरी सम्मेलन पत्रिका’ (पटना) इहाँ कई गो कहानी प्रकाशित होके चर्चित हो चुकल बाड़ी सन। इहाँ के दूसरका उपन्यास ‘जुगेसर’ बंगाल के प्रसिद्ध हिन्दी दैनिक ‘सन्मार्ग’ में हरेक एतबार के धारावाहिक रूप से छपल आ फेर एही प्रकाशन से पुस्तककार के रूप में छपल।
पुस्तक के बारे में
जुगेसर का जइसे साफ-साफ दीखे लागल सब लड़कियन के चेहरा-बमनटोली के लड़की, हजाम के एगो लड़की, बढ़ईटोला के दूगो। एही तरे परिचय देब सब लड़कियन के बारे में। नाम त शायदे केहू जाने। उनका चेहरा पर एगो शान्त मुस्कान फइलल रहे। तबही पूजा चाय लेके अइली। उनका काँध पर हाथ रखके हिलावत कहली–‘का भइल सूत गइनी का? चाय लेके आइल बानी।’
ऊ अचकचा के उठलन। फिर कहे लगलन–‘देख ना नींद आ गइल रल। सपना देखे लागल रहनीह।’
–‘कवनो लड़की के सपना रहल ह का?’ पूजा हँसी कहली। बरसात के मौसम रहे आ एमें त सबकर मन रससिक्त हो जाला। जुगेसर के जइसे चोरी पकड़ा गइल।
कहलन–‘अरे हमरा जिन्दगी में पूजा रानी छोड़ के दोसर लड़की कहाँ मिलल।’ पूजा भी पास का कुर्सी पर बइठ गइली। जुगेसर का दिमाग से अभी तक गाँव गइल ना रहे। कहलन–‘देख ना बरसात में गाँव याद आ जाला। लड़िकाई के 16-17 साल के उमिर भुलाव ना।’
–‘कवनो खबर मिलल बा का?’
–‘कहाँ मिल ता। सुनाता कि गाँवन में फोन लागी। तब कहीं बातचीत कइल जा सक ता लेकिन का होई? के बा जे हमनी के खबर ली।’
–‘काहें रउरो त क सकीले। आउर ना त जगमोहन भैया के चिट्ठी लिख के हालचाल ले ही सकीले।’
तबही फोन के घंटी बाजल। पूजा का उठावे के पहिलहीं सोनी उठा लेले रहे। ऊ चिल्लाइल– ‘मम्मी नानी का फोन है।’
पूजा जाके फोन लिहली।
… इसी पुस्तक से …
जुगेसर हरेन्द्र कुमार पांडेय का दूसरा उपन्यास है। इसमें पाठक की संवेदना को जगाने और कई बार एक झकझोरनेवाली ताकत दिखाई पड़ती है। उपन्यास का नायक जुगेसर तमाम समस्याओं से जूझता है। अंतर्जातीय विवाह से लेकर शिक्षा और राजनित तक के क्षेत्रों के संकट इस उपन्यास में देखे जा सकते हैं। उपन्यासकार उन कोनों-अंतरों में भी झाँकता है, जहाँ अभी रोशनी नहीं पहुँची। इस तरह इस उपन्यास का फलक व्यापक है। मुझे इस उपन्यास के जिस पक्ष ने सर्वाधिक आकृष्ट किया, वह है भोजपुरी माटी की सोंधी गंध। मैं सामाजिक संदर्भों को तलाशते इस उपन्यास के लिए हरेन्द्र कुमार पांडेय को बधाई देता हूँ और उम्मीद करता हूँ कि पाठक इसे पसन्द करेंगे।
–डॉ. केदारनाथ सिंह
–“कहाँ-कहाँ घूमत रनीहऽ सारा दिन। हाथ-मुँह धोई हम खाना ले आवतानी।”
जुगेसर कमरा में जाके कपड़ा बदललन। हाथ-मुँह धोके अभी पायजामा ही पहिनले रहस कि पूजा खाना लेके पहुँच गइल। अपना खाली बदन पर बड़ा शर्म लागत रहे। शर्ट बैग में रहे। जवना के निकाले जाये का जगह पूजा खड़ा रहे। उनकर शर्माइल देख के पूजा खिलखिला के निकल गइल। तब जाके उनका साँस में साँस आइल।
तीसरका दिन शाम के ही बैकुंठ जी के बता दिहलन जुगेसर, जे कल सुबह ऊ निकल जइहन। रात में नींद ना आवत रहे। ऊ उठ के पीछे की ओर रहस। तभी कोई आहट महसूस भइल। देखलन पूजा हई। धीरे-धीरे फुसफुसाहट– “नींद नइखे आवत।”
जुगेसर निरुत्तर। ऊ अउर पास अइली। धीमा आवाज आइल– “आप त चल जाइब। हमरा के भुला ना नू जाइब?”
जुगेसर चुपचाप निहारत रहलन। टहटह अँजोरिया के प्रकाश में खुलल बाल का बीच चेहरा साफ-साफ देखाई देत रहे।
ऊ आगे बढ़के एकदम सामने आ गइल। दूनों हाथ पकड़ के कहली–
“का भइल, कुछ बोलत काहे नइखी?”
जुगेसर के होंठ हिलल। दूनों हाथ से पूजा के सर पकड़लन। पूजा के चेहरा अपने-आप ऊपर उठ गइल। दूनो के होंठ सट गइल। दूनो के साँस रुक गइल रहे। आ साथ में हवा भी ठहर गइल जइसे। चाँद के मुस्कुराहल देख के कहीं कहवनो आवारा चिड़िया शांति भंग क दिहलस। पूजा चिहुँक के अपना के उनका बाहुपाश से अलग कइलस आ तेज पैर नीचे चल गइल। जुगेसर का पैर पर जोर ना मिलत रहे। ऊ धीरे-धीरे कमरा में अइलन। बिछावन पर लेटत-लेटत कब नींद के गोद में समा गइलन, पता ना चलल।
अबकी बार समस्तीपुर एगो नया अनुभूति लेके अइले जुगेसर। दिन त स्कूल में निकल जाव बाकिर रात में उहे अनुभूति तरह-तरह से याद आवे। ई अइसन बात रहे जवना के कोई से कहलो ना जा सके। एक तरह के कसक, जवना के अनुभव उनका पहिला बार भइल रहे। बीच-बीच में विनोद पांडेय जी से कॉलेज में मिल आवस। एक दिन विनोद जी क्लास लेत रहस। जुगेसर का सब लेक्चरर लोग से परिचय हो गइल रहे। डॉ. ठाकुर अकेले ही बइठल रहस। उहे समस्तीपुर कॉलेज में एकमात्र पी-एच.डी. रहस। स्वाभाविक रूप में थोड़ा अकड़ रहे। आज उहे बात उठवलन– “कब तक रिजल्ट आ रहा है आप लोगों योगेश्वर बाबू?”
… इसी पुस्तक से …
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