







Ishwar ke Saath Selfi (Prose Satire) / ईश्वर के साथ सेल्फी
₹599.00
FREE SHIPMENT FOR ORDER ABOVE Rs.149/- FREE BY REGD. BOOK POST
Read eBook in Mobile APP
पुस्तक के बारे में
आज से ठीक दो साल और चार महिने पहले मोदी जी ने लोकसभा चुनावों से पहले बरेली में झुमके का ज़िक्र किया था लेकिन उसे खोजने के बारे में कुछ नहीं कहा था।
आज अचानक अखबार में गोरखपुर का एक समाचार पढ़ा कि एक महिला किसी सुनार की दुकान से एक झुमका चुराने के बाद पकड़े जाने के डर से उसे निगल गई। एक्सरे में झुमका पेट में दिखाई दे गया जिसे एनिमा लगाकर निकाल लिया गया।
जैसे ही तोताराम आया हमने कहा– तोताराम, झुमका मिल गया।
उसने पूछा– कौन-सा झुमका?
हमने कहा– वही ‘बरेली वाला झुमका …’ जिसका ज़िक्र मोदी जी ने फरवरी 2016 में चुनाव सभा में बरेली में किया था।
बोला– मैंने तब भी कहा था कवि बन्धु, कि ये प्रतीकात्मक झुमके हैं। जब तेरे जैसा साहित्यकार की दुम होने का दावा करने वाला तक इसे नहीं समझ सकता तो बेचारे फकीर मोदी जी जो विवाहोपरांत ही देश सेवा के लिए निकल गए थे कैसे समझेंगे?
और योगी जी के समझने का तो सवाल ही नहीं उठता। उन्होंने तो उस रास्ते पर कदम ही नहीं रखा जिस पर मोदी जी सात कदम (सप्तपदी) चलकर ही भाग लिए।
हमने कहा– फिर भी हमारी बधाई तो स्वीकार कर।
बोला– क्यों नहीं। शुभकामनाओं के लिए मोदी जी और योगी जी की ओर से धन्यवाद। अब आगे से यह मत कहना कि हमारी सरकार जुमलों की सरकार है। हम काम करने वाले हैं।
हमने कहा– बिलकुल। साइलेंट वर्कर ऐसे ही होते हैं जैसे इमरजेंसी की तरह रात में गुपचुप नोटबंदी।
बोला– इमरजेंसी की नोटबंदी से क्या तुलना? एक में लोकतंत्र का गला घोंटा गया तो दूसरी में काले धन की कमर तोड़ी गई।
हमने कहा– यह एक गरीब सामान्य महिला थी जिसकी पता नहीं कबसे झुमके की दमित लालसा रही होगी जिसे पूरा करने के लिए वह चोरी के लिए विवश हो गई। इसे तो ज्वेलर के दबाव में एनिमा लगा दिया गया लेकिन हजारों करोड़ ले भागने वाले जौहरियों पर तो कोई जोर नहीं चला। अस्पताल में ऑक्सीजन का बिल समय पर पास न करने वालों को भी तो एनिमा लगाया जाना चाहिए।
बोला– क्या बताएँ हम कानून का सम्मान भी तो करते हैं। बिना प्रमाण के किसी को क्या कहा जा सकता है। और फिर ऑक्सीजन तो ऐसी चीज है जो पता नहीं कब हवा में मिलकर विलीन हो गई। हाँ, हजारों करोड़ ले भागने वाले का पासपोर्ट ज़ब्त तो कर लिया।
हमने कहा– पासपोर्ट के लिए सामान्य आदमी को कोसों दौड़ाते हो, आधार कार्ड के बिना सब्सिडी का अनाज नहीं देते हो, शौचालय के बिना तनख्वाह नहीं देते हो, खुले में शौच करने वाले किसी गरीब की लुंगी उतार लेते हो। तुम्हारी इस अतिसक्रियता की पोल नीरव मोदी ने छह-छह पासपोर्ट बनवाकर खोल तो दी।
…इसी पुस्तक से…
- Description
- Additional information
Description
Description
रमेश जोशी
18 अगस्त 1942 को शेखावाटी के शिक्षा और संस्कृति की दृष्टि से समृद्ध कस्बे चिड़ावा (झुंझुनू-राजस्थान) में जन्म।
राजस्थान विश्वविद्यालय से एम. ए. हिंदी और रीजनल कॉलेज ऑफ़ एजुकेशन, भोपाल से बी.एड.।
40 वर्षों तक प्राथमिक विद्यालयों से महाविद्यालय तक भाषा-शिक्षण के बाद 2002 में केंद्रीय विद्यालय संगठन से सेवा-निवृत्त।
शिक्षण के दौरान पोरबंदर से पोर्टब्लेयर तक देश के विभिन्न भागों की संस्कृति और जीवन से जीवंत परिचय ने सोच को विस्तार और उदारता प्रदान की।
1958 में साप्ताहिक हिंदुस्तान में प्रकाशन से छपने का सिलसिला शुरू हुआ जो कमोबेश नियमित-अनियमित रूप से 1990 तक चलता रहा। इसके बाद नियमित लेखन।
अपने समय की लगभग सभी प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित, अब भी कई समाचार पत्रों में कॉलम लेखन।
अब तक व्यंग्य विधा में गद्य-पद्य की दर्जनों पुस्तकें प्रकाशित।
अनेक सम्मानों और पुरस्कारों से अलंकृत।
दो शोधार्थी व्यंग्य साहित्य पर शोधरत।
पिछले 22 वर्षों से अमरीका में आवास-प्रवास।
2012 से अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति अमरीका की त्रैमासिक पत्रिका ‘विश्वा’ का संपादन।
ब्लॉग : jhoothasach.blogspot.com
संपर्क : भारत : दुर्गादास कॉलोनी, कृषि उपज मंडी के पास, सीकर-332-001 (राजस्थान) # 094601-55700
अमरीका : 10046, PARKLAND DRIVE, TWINSBURG, O.H., U.S.A. 44087 # 330-989-8115
E-MAIL : joshikavirai@gmail.com
Additional information
Additional information
Product Options / Binding Type |
---|
Related Products
-
Select options This product has multiple variants. The options may be chosen on the product pageQuick View
-
Select options This product has multiple variants. The options may be chosen on the product pageQuick View