







Ishq ka Encyclopaedia (Prose Satire) / इश्क का एन्साइक्लोपीडिया
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पुस्तक के बारे में
(‘यदि यह काम किसी पुरुष ने किया होता तो इतना बवाल नहीं मचता’–किरण शॉ वाले तथाकथित लिप लॉक प्रकरण पर वसुंधरा जी की प्रतिक्रिया)
श्रीमंत् वसुंधरा जी,
आशीर्वाद। आपके कैट वाक पर लोग खुसर-फुसर कर रहे थे और अब लिपलॉक पर तो छाती ही कूटने लग गए हैं। थोड़ा सा भी इंतज़ार नहीं किया। ये सब कुंठित लोग हैं। बाद में तो पता भी चल गया कि यह ऐसा-वैसा कुछ भी नहीं था जैसा कि लोगों ने समझा था। जब भगवान राम सीता-स्वयम्वर में पधारे तो वे लोगों को अलग-अलग रूपों में दिखाई दिए। इसी प्रकार आपके चुम्बन या स्नेह को विकृत-बुद्धि लोगों ने अपनी दृष्टि से देखा। इसलिए यह ध्यान देने का विषय भी नहीं था। आपने ठीक ही किया कि उस विषय को तूल नहीं दिया।
सारे मामले पर शांत रह कर भी आप प्रतिक्रिया दे ही गईं। आपने जो कहा उसका भाव कुछ इस प्रकार था कि यदि यह काम किसी पुरुष ने किया होता तो इतना बवाल नहीं मचता। इससे पता चलता है कि आप कहीं न कहीं पुरुष को श्रेष्ठ समझती हैं या यह सोचती हैं कि काश…। पर बात ऐसी नहीं है। पहली बात तो यह कि ईश्वर ने जिसे जिस रूप में बनाया है वह उसी रूप में खुश रहे। और आप तो माशा अल्लाह! वैसे भी आपके नाम से पूर्व ‘श्रीमंत’ जुड़ता ही है। जो गद्दी पर बैठता है वह राजा होता है। राजा सभी प्रकार से पुल्लिंग होता है। रज़िया को भी सुलताना या सुलाताननी या सुलातानण नहीं कहा गया। सुलतान ही कहा गया।
अपने देश में तो धन की देवी लक्ष्मी, ज्ञान की देवी सरस्वती और शक्ति की देवी दुर्गा तीनों ही स्त्रियाँ हैं। धन, ज्ञान और बल तीनों मिल जाएँ तो फिर क्या कहना। हमने 12 दिसंबर 2006 को आपको पहली बार और निकट से जयपुर में एक शादी में देखा था। हमें तो आप एक अच्छी सी, प्यारी सी, मासूम सी लड़की लगीं। भगवान की दया से आपके पास तीनों ही बल हैं। तभी देखिए ना, कलेक्टर और उच्चाधिकारी हमें मिलने तक का वक्त नहीं देते, सुनना तो दूर की बात है पर आपके सामने इनकी सिट्टी-पिट्टी गुम हो जाती है। पिछले वर्ष कलेक्टर्स कांफ्रेंस में जोधपुर के कलेक्टर बीमार हो गए और अबकी बार ऊर्जा सचिव माथुर में तो इतनी भी ऊर्जा नहीं बची कि आपके तेज का सामना कर सकें और बीमार हो गए। आज तक किसी पुरुष मंत्री की कांफ्रेंस में ऐसा नहीं हुआ। अब तो पुरुष न होने का गम नहीं होना चाहिए।
आपको पता होना चाहिए कि शेरनी शिकार करके लाती है तथा शेर और बच्चे खाते हैं। आपके मनोरंजन के लिए दो चुटकुले सुनाते हैं। एक अध्यापक ने बच्चे से पूछा–शेर किससे डरता है? बच्चे ने उत्तर दिया–शेरनी से। दूसरा चुटकुला इस प्रकार से है–एक व्यक्ति ने कठोर तपस्या की। भगवान प्रकट हुए और मनचाहा वरदान माँगने की पेशकश की। भक्त ने कहा–प्रभु, मुझे चूहा बना दीजिए। भगवान को बहुत अचम्भा हुआ। पूछा–चूहा क्यों बनना चाहते हो? भक्त बोला–मेरी पत्नी चूहे से डरती है सो मैं चूहा बनकर उसे डराना चाहता हूँ।
इन दो चुटकुलों से नर की बजाय मादा होने का महत्व स्पष्ट हो गया होगा? इसके अलावा सभी जानते हैं कि घर से बाहर का सारा काम प्रायः पुरुष को ही करना पड़ता है। कोई भारी-भरकम सामान उठाना हो तो पुरुष को ही सुपात्र माना गया है। पत्नियों को डाँटने का काम प्राचीन काल में होता होगा पर आजकल तो नए कानून के अनुसार वह अधिकार भी पुरुषों से छिन गया है। एक कविता का मूल भाव भी मादाओं के महत्व को ही बताता है। कवि कहता है कि तबला कूटा जाता है और बाँसुरी को ओठों पर स्थान दिया जाता है। देवताओं के नामों में भी महिलाओं को ही अधिक महत्व दिया जाता है जैसे–सीताराम, राधाकृष्ण, गौरीशंकर।
रही बात पुरुष द्वारा चुम्बन लेने पर हल्ला न मचाने की सो दुनिया हल्ला मचाए या न मचाए पर घर पहुँचने पर घरवाली उस पुरुष की क्या हालत कर देगी, इसकी कल्पना कोई पुरुष ही कर सकता है। उत्तर प्रदेश के एक पुलिस अधिकारी के स्त्री रूप धारण करने के पीछे अवश्य ही उसकी पत्नी की दादागीरी ही रही होगी, भक्ति-वक्ति जैसा कुछ नहीं था। दुनिया के सबसे ताकतवर मुल्क अमरीका के राष्ट्रपति क्लिंटन संसद में रो पड़े थे तो उसका कारण संसद का भय नहीं बल्कि हिलेरी क्लिंटन द्वारा की जाने वाली धुलाई, धुनाई, खिंचाई और पिटाई की कल्पना ही रही होगी।
25-12-2006
…इसी पुस्तक से…
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रमेश जोशी
18 अगस्त 1942 को शेखावाटी के शिक्षा और संस्कृति की दृष्टि से समृद्ध कस्बे चिड़ावा (झुंझुनू-राजस्थान) में जन्म।
राजस्थान विश्वविद्यालय से एम. ए. हिंदी और रीजनल कॉलेज ऑफ़ एजुकेशन, भोपाल से बी.एड.।
40 वर्षों तक प्राथमिक विद्यालयों से महाविद्यालय तक भाषा-शिक्षण के बाद 2002 में केंद्रीय विद्यालय संगठन से सेवा-निवृत्त।
शिक्षण के दौरान पोरबंदर से पोर्टब्लेयर तक देश के विभिन्न भागों की संस्कृति और जीवन से जीवंत परिचय ने सोच को विस्तार और उदारता प्रदान की।
1958 में साप्ताहिक हिंदुस्तान में प्रकाशन से छपने का सिलसिला शुरू हुआ जो कमोबेश नियमित-अनियमित रूप से 1990 तक चलता रहा। इसके बाद नियमित लेखन।
अपने समय की लगभग सभी प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित, अब भी कई समाचार पत्रों में कॉलम लेखन।
अब तक व्यंग्य विधा में गद्य-पद्य की दर्जनों पुस्तकें प्रकाशित।
अनेक सम्मानों और पुरस्कारों से अलंकृत।
दो शोधार्थी व्यंग्य साहित्य पर शोधरत।
पिछले 22 वर्षों से अमरीका में आवास-प्रवास।
2012 से अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति अमरीका की त्रैमासिक पत्रिका ‘विश्वा’ का संपादन।
ब्लॉग : jhoothasach.blogspot.com
संपर्क : भारत : दुर्गादास कॉलोनी, कृषि उपज मंडी के पास, सीकर-332-001 (राजस्थान) # 094601-55700
अमरीका : 10046, PARKLAND DRIVE, TWINSBURG, O.H., U.S.A. 44087 # 330-989-8115
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