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GANDHI : Bhavishya ka Mahanayak <br> गाँधी : भविष्य का महानायक

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Language: Hindi
Book Dimension: 5.5″x8.5″

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Author(s) — Saroj Kumar Verma
लेखक — सरोज कुमार वर्मा

| ANUUGYA BOOKS | HINDI | 152 Pages | 2021 |
| 5.5 x 8.5 inches |

| available in HARD BOUND & PAPER BACK |

SKU: N/A
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Description

पुस्तक के बारे में

इस सभ्यता के शैतानी होने में यन्त्र की बड़ी भूमिका है। इसलिए गाँधी यन्त्र का भी कड़ा विरोध करते हैं। वे कहते हैं–“यन्त्र आज की सभ्यता की मुख्य निशानी है और वह महापाप है, ऐसा मैं तो साफ देख सकता हूँ।”12 गाँधी ऐसा इस वजह से कहते हैं कि अतिरिक्त धन कमाने से लेकर शोषण करने और वर्चस्व जमाने तक में यन्त्र सहयोगी है। बड़े-बड़े कारखाने यन्त्रों के बल पर ही चलते हैं, जिनमें काम करने वाले मजदूरों का काम करने के अधिक घंटे से लेकर कम मजदूरी देने तक के रूप में निरन्तर बेरहमी से शोषण होता रहता है। फिर इन कारखानों में उत्पादित माल अधिक मुनाफे पर बेचकर भी लोगों का शोषण किया जाता है तथा अधिक धन कमाया जाता है। यन्त्र की भूमिका विज्ञापन में भी होती है। इन कारखानों में जो भोग की नित नयी-नयी वस्तुएँ बनती हैं, उन्हें खरीदने के लिए विज्ञापन के द्वारा ही लोगों को उकसाया जाता है। इस उकसावे में आकर ही वे उन चीजों को खरीदने के लिए बेचैन हो जाते हैं, जो उनके लिए जरूरी नहीं होतीं। यहाँ भी यन्त्र शोषण के तन्त्र के रूप में उपस्थित होता है। फिर यन्त्र के द्वारा ही बड़ी मात्रा में ऐसे-ऐसे हथियार बनाए जाते हैं, जिनसे कहीं से भी एक बटन दबाकर हजारों-लाखों किलोमीटर दूर किसी व्यक्ति तथा बड़े समूह को मारा जा सकता है। अर्नाल्ड टॉयनबी भी इस सम्बन्ध में कहता है– “पश्चिम की यन्त्र-विज्ञान की शक्ति ने, जैसा कि हम काव्यमय भाषा में कहते हैं, ‘अन्तर का सर्वथा अन्त कर दिया है’, साथ ही इस शक्ति ने मानव-इतिहास में पहली बार मानव के हाथों को ऐसे शस्त्रास्त्रों से सज्ज कर दिया है, जो मानव-जाति का सर्वनाश कर सकते हैं।”13 इस कारण यन्त्र थोड़े से समर्थ लोगों द्वारा बहुत सारे असमर्थ लोगों पर आधिपत्य कायम करने का साधन बन गया है।
गाँधी रेल का विरोध भी इसीलिए करते हैं कि यह भी एक यन्त्र है और इसके द्वारा आसानी से शोषण किया जा सकता है। अँग्रेजों द्वारा हिन्दुस्तान की सम्पदा लूटने में रेल सर्वाधिक सहयोगी रही है।

इसी पुस्तक से

यद्यपि गाँधी को तकनीकी अर्थ में दार्शनिक नहीं माना जाता, क्योंकि उन्होंने स्पष्ट रूप से दर्शन की तत्त्वमीमांसीय अथवा ज्ञानमीमांसीय शब्दावली में अपने विचार व्यक्त नहीं किए हैं, परन्तु उनमें सैकड़ों वर्ष पूर्व भविष्य को देख लेने की जो दूरदृष्टि थी, वह उन्हें व्यावहारिक दार्शनिक के रूप में मजबूती से स्थापित कर देती है। यह स्थापना देश और दुनिया के लिए जितनी उपयोगी है, उतनी तकनीकी दार्शनिकों की सैद्धान्तिक स्थापनाएँ नहीं, क्योंकि ये सैद्धान्तिक स्थापनाएँ इतनी सूक्ष्म होती हैं कि उन्हें स्थूल व्यवहार तक उतरने में कई परतों से गुजरना पड़ता है और इस क्रम में वे अक्सर धुँधली हो जाती हैं। मगर गाँधी धुँधले नहीं होते। इसीलिए समाज उन्हें सहजता से समझ लेता है और वे लोकप्रिय तथा प्रेरक सिद्ध होते हैं।

…इसी पुस्तक से

स्वामी विवेकानन्द और महात्मा गाँधी दोनों आधुनिक भारत के आकाश में जगमगाते हुए ऐसे दो नक्षत्र हैं जिनके प्रकाश में भारतीयता आगे की यात्रा तय करती है। इन दोनों ने रास्ते का जो नक्शा निर्मित किया उसी पर चलकर आधुनिक भारत का निर्माण हो सका। इस मायने में ये दोनों आधुनिक भारत के निर्माता हैं। यद्यपि कि उनकी निर्माण की परिकल्पित योजना के एकदम मुताबिक भारत निर्मित नहीं हो पाया, परन्तु आज भारत जिस रूप में जैसा है उसका बहुत सारा श्रेय इन्हीं दोनों को जाता है। आज भारत में यदि सर उठाकर खड़ा होने का हौसला है और भारतवासी स्वतन्त्र फिजा में साँस ले रहे हैं तो यह इन दोनों के ही प्रतिबद्ध प्रयास से हो पाया है। विवेकानन्द सांस्कृतिक जागरण के उन्नायक थे तो गाँधी राजनैतिक स्वतन्त्रता के पुरोधा।

…इसी पुस्तक से

डेढ़ सौ साल पहले हुए गाँधी भारतीय स्वतन्त्रता-संग्राम के सिपहसालार थे। मूलत: एक आध्यात्मिक व्यक्ति होने के बावजूद वे जिन्दगी-भर राजनीति में सक्रिय रहे। यह सक्रियता दक्षिण अफ्रीका में हिन्दुस्तानियों के हक की सफल लड़ाई से शुुरू हुई जो भारत में आकर और सघन और व्यापक हो गई। वहाँ उन्होंने हिन्दुस्तानियों के खिलाफ अँग्रेजों द्वारा लाए गए खूनी कानून को निरस्त करवा के अपना वृत्त खींचा था, यहाँ चम्पारण में नील की अनिवार्य खेती वाला तीन कठिया कानून रद्द करवाकर वे स्वतन्त्रता-संग्राम के केन्द्र में स्थापित हो गए। इसलिए बाद में आजादी की जितनी भी लड़ाइयाँ लड़ी गईं, इसी केन्द्र की परिधि पर लड़ी गईं, उसकी धुरी गाँधी ही रहे। इसकी वजह गाँधी का वह कहना था, जो उनके पहले किसी ने नहीं कहा; वह करना था, जो उनके पहले किसी ने नहीं किया। उनका यह कहा, सार-सूत्र में, ‘हिन्द स्वराज’ में दर्ज है।

अनुक्रम

भूमिका
स्वतन्त्र खण्ड
l ‘हिन्द स्वराज्य’ : गाँधी का सभ्यता-दर्शन
l भूमंडलीकरण के युग में गाँधी का सर्वोदय : औचित्य की तलाश
l गाँधी-चिन्तन में पर्यावरण-चिन्ता
l गाँधी का सत्याग्रह : मानवाधिकारों के मात्रात्मक संरक्षण की प्रविधि
तुलनात्मक खंड
l महावीर और गाँधी की अहिंसा : एक तुलनात्मक अध्ययन
l विवेकानन्द और गाँधी का सभ्यता-चिंतन : एक तुलनात्मक अध्ययन
l टैगोर और गाँधी का ईश्वर-विचार : एक तुलनात्मक अध्ययन
l श्री अरविन्द और गाँधी का शिक्षा-दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन

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