







Corona ke Saath Bhi : Corona ke Baad Bhi (Prose Satire) / कोरोना के साथ भी : कोरोना के बाद भी
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पुस्तक के बारे में
जब से कोरोना का यह चक्कर चला है, लोग चेहरा छुपाने लगे हैं। कारण पता नहीं, चेहरा दिखाने लायक नहीं रहा या फिर चेहरा छुपा कर कुछ गड़बड़ करने का इरादा है या फिर यमराज को ही चरका देना है कि हमारे भ्रम में किसी और को उठा ले जाए।
शुरू-शुरू में बच्चों ने मुँह पर बाँधने की पट्टी-सी जिसे आजकल मास्क कहा जाता है लाकर दिया। आजकल के कैरी बैग जैसे मेटीरियल से बना था; हलके नीले रंग का। पाँच-सात दिन में ही उसकी हालत कमलनाथ की सरकार जैसी हो गई। कान से लिपटने वाली एक पट्टी सिंधिया की तरह विद्रोह कर गई। हमने स्मृति ईरानी की तरह अपनी मास्क मेकिंग कला का सहारा लेते हुए पुराने कपड़े का एक मास्क बना लिया। आज सुबह लगा कि मास्क कुछ मैला हो गया है सो धोकर बरामदे में ही लटका दिया। उसके सूखने तक एक हैदराबादी ‘अंगवस्त्रम’ नाक और मुँह को ढंकते हुए गले में डाल लिया।
वैसे ‘अंगवस्त्रम’ ही गरीब होते-होते ‘अंगौछा’ बन गया लेकिन अब भी देवभाषा का शब्द होने के कारण ‘अंगवस्त्रम’ में सत्ता की सुगंध आती है और ‘अंगौछे’ में किसी मेहनतकश के पसीने की बू। बद बू भी कह सकते हैं।
यहाँ हमने जो ‘अंगवस्त्रम’ गले में लपेटा था उसे कीमत और स्तर के हिसाब से ‘अंगौछा’ ही समझिए। यह हमें हैदराबाद में एक अंतर्राष्ट्रीय सेमीनार में भाग लेने पर सम्मान स्वरूप भेंट किया गया था। वैसे ही जैसे नवग्रह पूजन में कलावे के एक छोटे से धागे से ही पाँचों वस्त्रों का संस्कार पूर्ण कर दिया जाता है।
तोताराम ने आते ही ‘अच्छा’ को कुछ अधिक ही लम्बा खींचते हुए कहा– अच्छा…! मोदी-गमछा?
हमने कहा– ठीक है तोताराम कि मोदी जी किसी भी चीज को हाईजेक करने में बड़े उस्ताद हैं। हम दोनों पिछले पचास-साठ साल से ‘चाय पर चर्चा’ कर रहे हैं लेकिन 2014 में मोदी जी ने आते ही हमारी ‘चाय पर चर्चा’ का अपहरण कर लिया। फिर नेहरू जी की जैकेट, उसके बाद गाँधी जी का चरखा और अब हम गरीबों का गमछा।
‘अंगौछे’ के इस तत्सम रूप ‘अंगवस्त्रं’ पर मोदी जी का कोई अधिकार या आभार नहीं है। यह हमारा है। कहो तो बंगारू लक्ष्मण जी के हाथों यह अंगवस्त्रम ग्रहण करते हुए फोटो दिखा दें। और फिर मोदी जी ने कहीं ‘मोदी-गमछा’ शब्द का प्रयोग नहीं किया।
बोला– मैंने तो कल बनारस के अखिल भारतीय केशरवानी वैश्य युवा सभा के अध्यक्ष संदीप केशरी का, बनारस में एक व्यक्ति को ‘कमल का निशान बना हुआ ‘मोदी गमछा’ छपा हुआ कपड़ा ओढ़ाते हुए फोटो देखा था, सो तेरे इस गमछे उर्फ़ अंगवस्त्रम को ‘मोदी-गमछा’ कह दिया। यह मज़ाक नहीं बल्कि तेरे इस अंगौछे का सम्मान है।
हमने कहा– तोताराम, तुझे नहीं लगता कि किसी गरीब का बीस रुपए का एक गमछा लेते हुए फोटो खींचना उसके आत्मसम्मान को ठेस पहुँचाना है। तिस पर उस गमछे पर पार्टी का चुनाव-चिह्न और मोदी-गमछा! दान की महिमा गिराने का यह एक बहुत टुच्चा उदाहरण है? हमारे यहाँ तो ‘गुप्त-दान’ को सर्वश्रेष्ठ माना गया है।
बोला– इसमें मोदी जी क्या करें? यह तो भक्तों की श्रद्धा है।
हमने कहा– लेकिन इससे दुष्प्रभाव तो मोदी जी पर पड़ता है। ये भक्त श्रद्धालु नहीं महाचतुर हैं। सस्ते में मोदी जी की गुड बुक्स में आना चाहते हैं। मोदी जी को इनसे बचना चाहिए। तुझे पता होना चाहिए इन्हीं लोगों ने ‘लॉक डाउन-2’ लिखी पूडियाँ भी लोगों में बँटवाई हैं।
हमारे हिसाब से तो इससे हजार दर्ज़ा अच्छा काम वह अनाम व्यक्ति कर रहा है जो एम्स भुवनेश्वर के पास की झुग्गी-झोंपड़ियों में गांघी के वेश में तिरंगा लिए मास्क और सेनेटाईज़र बाँट रहा है।
16-04-2020
…इसी पुस्तक से…
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Description
Description
रमेश जोशी
18 अगस्त 1942 को शेखावाटी के शिक्षा और संस्कृति की दृष्टि से समृद्ध कस्बे चिड़ावा (झुंझुनू-राजस्थान) में जन्म।
राजस्थान विश्वविद्यालय से एम. ए. हिंदी और रीजनल कॉलेज ऑफ़ एजुकेशन, भोपाल से बी.एड.।
40 वर्षों तक प्राथमिक विद्यालयों से महाविद्यालय तक भाषा-शिक्षण के बाद 2002 में केंद्रीय विद्यालय संगठन से सेवा-निवृत्त।
शिक्षण के दौरान पोरबंदर से पोर्टब्लेयर तक देश के विभिन्न भागों की संस्कृति और जीवन से जीवंत परिचय ने सोच को विस्तार और उदारता प्रदान की।
1958 में साप्ताहिक हिंदुस्तान में प्रकाशन से छपने का सिलसिला शुरू हुआ जो कमोबेश नियमित-अनियमित रूप से 1990 तक चलता रहा। इसके बाद नियमित लेखन।
अपने समय की लगभग सभी प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित, अब भी कई समाचार पत्रों में कॉलम लेखन।
अब तक व्यंग्य विधा में गद्य-पद्य की दर्जनों पुस्तकें प्रकाशित।
अनेक सम्मानों और पुरस्कारों से अलंकृत।
दो शोधार्थी व्यंग्य साहित्य पर शोधरत।
पिछले 22 वर्षों से अमरीका में आवास-प्रवास।
2012 से अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति अमरीका की त्रैमासिक पत्रिका ‘विश्वा’ का संपादन।
ब्लॉग : jhoothasach.blogspot.com
संपर्क : भारत : दुर्गादास कॉलोनी, कृषि उपज मंडी के पास, सीकर-332-001 (राजस्थान) # 094601-55700
अमरीका : 10046, PARKLAND DRIVE, TWINSBURG, O.H., U.S.A. 44087 # 330-989-8115
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