

Boudhik Vimarsh ke Pehlu / बौद्धिक विमर्श के पहलू
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अनुक्रम
- परिवर्तन के प्रत्ययों में वैचारिक प्रभाव
- महापंडित राहुल सांकृत्यायन–जिनमें ज्ञान और कर्म की अविरल बहती धाराएँ
- राहुल जी के जीवन के कुछ दिलचस्प प्रसंग
- भारत में सामाजिक बदलाव के सन्दर्भ : कुछ सिद्धान्त, कुछ इतिहास और कुछ व्यवहार
- सामाजिक बदलाव के पचहत्तर वर्ष
- आधुनिक दुनिया में विचारधारा का संकट
- संकटों से घिरी दुनिया पर उमड़ता विनाश का बादल
- जाति-प्रथा : विनाश के कगार पर
- मास्टर अजीज एक दुर्लभ व्यक्तित्व
- विविधताओं में बसती है भारत की आत्मा
- माटी कहे कुम्हार से : अन्तिम स्त्री का अन्याय के विरुद्ध संघर्ष
- फासीवादी षड्यंत्रों के खिलाफ लेखकों का दायित्व
- इतिहास का सच
- आधार-पत्र
- अच्छी रचना के लिए समय-समाज को जानना जरूरी
- लेखकीय प्रतिबद्धता बनाम स्वायत्तता
- बांदा प्रगतिशील हिन्दी साहित्यकार सम्मेलन : एक समीक्षा
- बांदा प्रगतिशील हिन्दी साहित्य सम्मेलन की समीक्षा परलेखकों का मतभेद
…इसी पुस्तक से…
अमवारी के जमींदार की चर्चा करते हुए राहुल जी ने लिखा है– “पाँच साल से होने वाली बाढ़ के सताये इस अमवारी गाँव को बाबू चन्देश्वर सिंह जैसे जमींदार मिले हैं। इनके चचेरे दादा बाबू नन्दकुमार सिंह जिन्होंने कि यह सब धन अर्जित किया, के बारे में श्री आर.सी. चक्रवर्ती, असिस्टेंट सेटलमेंट ऑफिसर ने सर्वे तनाजा में ता. 15.1.1918 में लिखा था–“मालूम होता है यह गाँव नन्दकुमार सिंह के जुल्म से भरा हुआ है। वे कल के जमींदार और बहुत से जमींदारों की ओर से तहसीलदार की तरह से गाँव पर कब्जा रखते हैं। नन्दकुमार सिंह के डर के मारे इस गाँव के किसान उनके खिलाफ कुछ नहीं कर सकते।
चन्देश्वर सिंह की स्थिति का उल्लेख करते हए राहुल जी ने बतलाया है कि चन्देश्वर सिंह, गुफ्तार सिंह, सुदेश्वर सिंह सगे भाई हैं। वे अँग्रेजी सरकार की अवैतनिक खुफिया पुलिस का काम करते चले आये हैं। बहुत से राजनैतिक मुकदमों में उन्होंने खिलाफ में गवाही दी है। उनकी इस अवैतनिक सेवा का हाकिमों पर प्रभाव होना जरूरी है। काँग्रेसी सरकार होने के बाद भी पुलिस और हाकिमों के रुख में विशेष परिवर्तन नहीं हुआ और यह बात अमवारी गाँव में हाल में जो किसानों के खिलाफ दफा 144 हुआ है, इससे स्पष्ट हो जाती है।
अमवारी के जमींदार के क्रूर और हृदयहीन व्यवहार से तंग आकर राहुल जी ने सत्याग्रह करने का निर्णय लिया। 24 फरवरी, 1939 को राहुल के नेतृत्व में सत्याग्रह का कार्यक्रम निर्धारित किया गया। जमींदार की ओर से काफी तैयारी थी। गाँव के पास दो हाथी खड़े थे और उनके पीछे सैकड़ों लट्ठधारी आदमी थे। इधर लाल जी भगत के बगान में सैकड़ों किसान जमा हो गये थे। 10-10 आदमी और एक-एक नायक की पाँच टोलियाँ, बारी-बारी से एक किसान के खेत में ऊँख काटने का निश्चय किया गया। 10 बजे राहुल जी के नेतृत्व में 11 व्यक्ति हसुवा लेकर खेतों पर पहुँच गये। उन्होंने 2 ऊँख काटी। इस पर थानेदार ने उन्हें तथा 10 जनों को गिरफ्तार कर लिया। उसी समय औचक जमींदार के पिलवान कुर्बान ने राहुल जी के सिर पर लाठी से वार किया। सिर पर चोट से खून बहने लगा। वहाँ से डिप्टी मजिस्ट्रेट के कैम्प में लाये गये। थानेदार ने कुर्बान को गिरफ्तार कर लिया, किन्तु जमींदार के कहने पर इंस्पेक्टर ने छोड़ दिया। उस दिन 52 व्यक्ति गिरफ्तार हुए, लेकिन पुलिस ने 28 को छोड़ दिया। शाम में 14 व्यक्तियों को मोटर में भरकर सीवान के लिए रवाना किया।
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