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Bargad van aur Anya kahaniyan / बरगद वन और अन्य कहानियाँ -Hindi Story Book

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Language: Hindi
Pages: 102
Book Dimension: 5.5″ x 8.5″
Format: Hard Back

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पुस्तक के बारे में

प्रत्येक कहानी में कुछ पात्र प्रमुख और कुछ पात्र गौण होते हैं। इन कहानियों में भी ऐसे पात्र हैं। संवेदना की प्रस्तुति के लिए कथाकार जिस वातावरण और परिवेश को माध्यम बनाता है, वे इनमें अभूतपूर्व गहनता के साथ मौजूद हैं। यदि यह कहा जाय कि इनमें से अनेक कहानियों में वातावरण और परिवेश ही प्रमुख भूमिका निभा रहे हैं, तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। प्रमाण स्वरूप ‘पैमाइश’ कहानी को देख सकते हैं। इसमें वे गढ़‌वाल क्षेत्र में प्रचलित कुछ ऐसे शब्दों को बचाने के लिए प्रयत्‍नशील नज़र आते हैं जो बहुत संभव है कि विलुप्त होने के कगार पर हों। कहानी ‘मास्टर वंशीधर’ एक अध्यापक की संघर्ष गाथा मात्र न हो कर विशेषतः पहाड़ के ग्रामीण क्षेत्रों में प्राइमरी और जूनियर स्तर की ध्वस्तप्राय शिक्षा व्यवस्था का ऐसा चिट्ठा है, जिसमें एक परिश्रमी और ईमानदार अध्यापक ताउम्र सुलगता और झुलसता है। इसी कहानी के समांतर ‘कार्रवाई’ और ‘बरगद वन’ कहानियाँ भी हैं। ‘कार्रवाई’ में आम जनता को मिलने वाले राशन की लूट में दुकानदार और राशन इन्स्पेक्टर से ले कर सम्बन्धित उच्च अधिकारियों, यहाँ तक कि मीडिया कर्मियों तक के मिले होने और उनके छल-प्रपंच से प्राप्त होने वाले त्रास को व्यक्त किया गया है। ‘बरगद वन’ उद्यान विभाग और गाँव पंचायत के लोगों की मिली भगत से बरगद वन उद्यान के रख-रखाव और विकास हेतु सरकार से मिलने वाले अनुदान को हजम कर जाने तथा बरगद वन के उजड़ जाने की त्रासद कहानी है। बरगद वन उद्यान का निरीक्षक एक व्यक्ति नहीं, एक प्रवृत्ति है।

राजा खुगशाल की इन कहानियों की एक विशेषता यह भी है कि इनमें मानवीय पात्र बहुत कम बोलते हैं। नैरेटर के माध्यम से अंचल, वातावरण और परिवेश ही अपनी बात पाठक तक पहुँचाते हैं। इससे एक ओर जहाँ कथाकार की आब्ज़र्वेशन क्षमता का पता चलता है, वहीं दूसरी ओर किस्सागोई के अंदाज में सामान्य स्तर के पाठक के लिए लम्बे नैरेशन कहीं-कहीं कहानी के पाठ को बोझिल भी बनाते हैं। ‘पारबती’, ‘एक टुकड़ा ज़मीन’, ‘शिविर’ आदि कहानियों के कथ्य अलग-अलग हैं तथापि सरकार द्वारा ज़मीन अधिग्रहण करने और मुआवज़े के लिए ग्रामीणों को भटकाने के तौर-तरीके एक जैसे हैं, जिनका कहानियों में मार्मिक चित्रण किया गया है। ‘एक टुकड़ा ज़मीन’ में भूमि पर अनाधिकृत कब्जा करने का जो धंधा भू-माफिया करते हैं, ‘शिविर’ कहानी में वही धंधा सन्यासी वेशधारी संत करता है। ‘शिविर’ का संत तो ज़मीन हथियाने के लिए हत्या तक करने में गुरेज नहीं करता। ‘किरायेदार’ कहानी के मूल में अपना मकान न बना पाने का पत्‍नी का उलाहना है लेकिन बेरोजगार रहने से ले कर बारोजगार हो जाने के बाद भी किरायेदार बने रहने के दारुण अनुभव पाठक की समझ को परिपक्‍व बनाते हैं। ‘सेल्समैन’ मनोविश्लेषण की दृष्‍टि से जबरदस्त कहानी है। यह कहानी इस अर्थ में भी सशक्त है कि लोग जहाँ बेरोजगारी आदि चिन्ताओं से त्रस्त हो कर सीज़ोफ्रेनिया सरीखे मानसिक रोग से ग्रसित होते हैं, वहीं इस कहानी का नायक अपने कार्य के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होने के कारण मानसिक बीमारी से ग्रस्त होता है। ‘माँ के दुःख’ और ‘एलम दा’ पौड़ी के आसपास की जन-संस्कृति की शब्द-गंध से परिपूर्ण कहानियाँ हैं।

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Description

राजा खुगशाल

उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जनपद के कंडार गाँव में 7 मार्च, 1951 को जन्मे राजा खुगशाल हिन्दी के प्रतिष्‍ठित कवि-कथाकार एवं अनुवादक हैं। उनकी शिक्षा-दीक्षा जयहरीखाल (गढ़वाल) और दिल्ली में हुई। उनका पहला कविता-संग्रह ‘संवाद के सिलसिले में’ 1983 में प्रकाशित हुआ था। दूसरा कविता-संग्रह ‘सदी के शेष वर्ष’ 1991 में आया। तीसरा कविता-संग्रह ‘पहाड़ शीर्षक हैं पृथ्वी के’ 2012 में प्रकाशित हुआ। उनकी प्रतिनिधि कविताओं का संग्रह और आलोचना पुस्तक ‘समीक्षा संकलन’ 2022 में प्रकाशित हुए। राजा खुगशाल ने बच्चों के लिए भी कविताएँ लिखी हैं। उनका बाल कविता-संग्रह ‘फूलों की ऋतु आई’ 2017 में प्रकाशित हुआ। अनुवाद के क्षेत्र में भी उन्होंने उल्लेखनीय कार्य किया है। 1982 में रूस के प्रसिद्ध कवि येव्गेनी येव्तुशेंको (1933-2017) की लम्बी कविता ‘ज़ीमा ज़ंक्शन’ का उनका अनुवाद पुस्तक रूप में प्रकाशित हुआ। सन् 2012 में अफ्रीकी कविताओं का अनुवाद संग्रह ‘अफ्रीकी कविताएँ’ और 2015 में ‘ज़ीमा ज़ंक्शन और अन्य कविताएँ’ (सह-अनुवादक : अनिल जनविजय) प्रकाशित हुए। अनुवाद संग्रह ‘अन्‍ना अ़ख्मातोवा की कविताएँ’ 2017 में प्रकाशित हुआ। इसके अलावा उन्होंने पाब्लो नेरूदा, वाल्ट ह्विट्मैन, तोजू, वियान ज़िलिन और स्टीफ़न स्पेंडर की कविताओं के अनुवाद भी किये जो समय-समय पर पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैं। उनकी कहानियाँ ‘आजकल’, ‘वागर्थ’, ‘कथ्य-रूप’, ‘आधारशिला’, ‘जनसत्ता’ आदि पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं। ‘बरगद वन और अन्य कहानियाँ’ उनका पहला कहानी-संग्रह है। राजा खुगशाल की कुछ रचनाओं का अनुवाद रूसी, जर्मन व जापानी भाषाओं में हो चुका है। उन्हें हिन्दी अकादमी, दिल्ली का साहित्यिक कृति पुरस्कार, आधारशिला फाउंडेशन का आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी सम्मान व अनेक सामाजिक-सांस्कृतिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित किया जा चुका है। दिल्ली सरकार के कई विभागों में कार्य करने के पश्‍चात वे मार्च, 2011 में सेवा निवृत्त हुए। संप्रति : स्वतंत्र लेखन।
संपर्क : वी-208, आम्रपाली ज़ोडिएक, सेक्टर-120, नोएडा-201301 (उ.प्र.)। मो. 8750484177

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