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Anna Karenina (Vol.-1 & Vol.-2) One of best Leo Tolstoy’s Russian Classical Novel / लेफ़ तलस्तोय कृत आन्ना करेनिना (उपन्यास दो खण्डों में)

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Language: Hindi
Pages: 668
Book Dimension: 6.25″ X 9.25″

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फिर समाज में कोई अन्ना करेनिना बनने की कोशिश न करे इसी दृढ़ निश्चय के साथ तीस पेज तक आते आते, अन्ना शब्दों से निकलकर टॉलस्टॉय की मेज पर एक खूबसूरत छोटी गुड़िया में अवतरित हो गयी, और टॉलस्टॉय लिखने बैठे—
‘टॉलस्टॉय, तुम मेरे प्रति इतने कठोर क्यों हो?’
टॉलस्टॉय का सीधा जवाब था
‘तुमने बेवफ़ाई की है’
‘किससे’?
अपने पति करेनिन से, समाज से.
तुमने तो अपने प्रेमी ब्रोंस्की के लिए
अपने बच्चे को भी छोड़ दिया
और अब तुम मुझसे नरमी की उम्मीद करती हो?
अन्ना जब ज़िंदा थी.
तो यह सब सुनने की उसे आदत हो गयी थी!
लिहाजा उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं आया.
अन्ना ने सीधा सवाल किया
बेवफाई क्या है, प्रेम क्या है, समाज क्या है?
टॉलस्टॉय ने इस पर अपना पूरा बोझिल दर्शन रख दिया.
अन्ना बिना प्रभावित हुए बोली
एक स्त्री को क्या चाहिए
प्यार और सम्मान
ब्रोंस्की ने मुझे दोनों दिया.
इसलिए मैं पति को छोड़ ब्रोंस्की के पास आ गयी
और माँ का दायित्व?
टॉलस्टॉय को लगा कि इस सवाल से अन्ना निरुत्तर हो जाएगी
लेकिन अन्ना का जवाब था
‘केरेनिन ने मेरे बच्चे को मुझसे छीना
और मैं सिर्फ माँ नहीं थी, एक स्त्री भी थी
स्वतंत्र स्त्री
प्यार और सम्मान की आकांक्षी’.
‘लेकिन ब्रोंस्की ने भी तो तुम्हें धोखा दिया,
आखिर तुम्हें मिला क्या?’
यह तो तुम ब्रोंस्की से पूछना
मैंने तो बस प्यार किया था
एक मासूम प्यार!
फिर समाज की नैतिकता का क्या?
नैतिकता के सवाल पर अन्ना भड़क गई,
‘तुम्हारे समाज की नैतिकता
मकड़ी के उस जाले की तरह है
जहाँ स्वतंत्र स्त्री का गला घोंटा जाता है
उसके प्यार, उसके सपनों का गला घोंटा जाता है
जैसे मेरा घोंटा गया
क्या मेरा गला घोंटने से तुम्हारे समाज की नैतिकता बच गयी?
सच कहूँ तो मैंने तो बस प्यार किया था
बहती नदी सा निश्चल प्यार.’
‘अच्छा छोड़ो टॉलस्टॉय
यह बताओ
अगर तुम मेरी जगह होते तो क्या करते?’
टॉलस्टॉय ने सिगार सुलगाई
बेचैनी में कमरे का कई चक्कर लगाया
फिर बेहद धीमी मगर गंभीर आवाज़ में कहा
‘वही करता जो तुमने किया’
यह सुनकर अन्ना करेनिना
पुनः शब्दों में विलीन हो गयी…….**
**कहते हैं कि टालस्टाय पहले अन्ना को नेगेटिव रूप में चित्रित करना चाहते थे. लेकिन वे ईमानदार रचनाकार थे.
इसलिए जैसे जैसे अन्ना के चरित्र में डूबते गए, उनकी अन्ना के प्रति सहानुभूति बढ़ती गयी और अन्ना अंत मे उपन्यास में सकारात्मक पात्र के रूप में उभर कर आई.
साभार–फेसबुक
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Description

पुस्तक के बारे में

लेफ़ तलस्तोय का उपन्यास ‘आन्ना करेनिना’ एक ऐसी भद्र युवा महिला के जीवन पर आधारित है, जो कुलीन घराने की प्रतिनिधि है। आन्ना का विवाह हो चुका है, लेकिन वह सुखी नहीं है। उसका पति भावनाओं और अनुभूतियों से रहित एक ऐसा व्यक्ति है, जिसकी नज़र में रूसी आभिजात्य समाज के पाखण्ड, आडम्बर और ढकोसले ही सबसे ज़्यादा महत्वपूर्ण है। अपनी पत्नी को, उसके मनोभावों और अनुभूतियों को वह कोई महत्व नहीं देता। पति के व्यवहार से परेशान आन्ना को भी अपने पति से प्रेम नहीं होता। उसे एक अन्य व्यक्ति से प्रेम हो जाता है और वह अपने पति को छोड़कर उस व्यक्ति के साथ रहने लगती है। उसकी इस हरकत पर आभिजात्य और भद्र समाज उस पर थू-थू करने लगता है। चारों तरफ़ से उसकी निन्दा की जाती है। समाज की नज़र में उनका यह प्रेम अवांछित है और यह उनके इस अवांछित प्रेम की परीक्षा की घड़ी है। परन्तु उनका प्रेम स्त्री-पुरुष के बीच आपसी सम्बन्धों पर लगी समाज की बन्दिशों की अवहेलना नहीं कर पाता। आन्ना और उसक्रे प्रेमी व्रोनस्की के बीच भी आख़िरकार मतभेद पैदा हो जाते हैं। आन्ना इस बात को समझती है कि वह प्रेम के बिना इस दुनिया में ज़िन्दा नहीं रह पाएगी। जीवन की इस त्रासद स्थिति में अन्तत: वह अपने प्रेम को ज़िन्दा रखने के लिए अपना बलिदान दे देती है।
उपन्यास ‘आन्ना करेनिना’ यूँ तो एक असफल प्रेम कहानी है, लेकिन उसमें आज से डेढ़ सौ साल पहले के तत्कालीन रूसी समाज के जीवन, जीवन-गतिविधियों और जीवन-मूल्यों का विस्तार से वर्णन किया गया है। उपन्यास के लेखक लेफ़ तलस्तोय एक जागीरदार थे और उनका पारिवारिक जीवन भी सुखद था। तलस्तोय की पत्नी सोफ़िया ने कुल तेरह बच्चों को जन्म दिया। पारिवारिक प्रेम, बच्चों की परवरिश, बच्चों की शिक्षा और उन्हें एक अच्छा नागरिक बनाना भी हर मनुष्य का कर्तव्य होता है। हालाँकि हर व्यक्ति के लिए जीवन का अर्थ, ज़िन्दगी के मायने अलग-अलग होते हैं, लेकिन समाज की मान्यताओं पर किसी एक व्यक्ति के जीवन को न्यौछावर नहीं किया जा सकता है। व्यक्ति से समाज बनता है, ना कि समाज व्यक्ति का ठेकेदार होता है। व्यक्ति की अपनी एक अलग महत्ता होती है। लेफ़ तलस्तोय का मानना था कि सामाजिक मान्यताओं को मनुष्य के जीवन में उतना महत्व नहीं देना चाहिए, जितना मनुष्य के निजी संवेगों, आवेगों और प्रेम को देना चाहिए क्योंकि इनके बिना जीवन जीना दुश्वार हो जाता है।

— अनिल जनविजय

 

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