







Amrit Mahotasav / अमृत महोत्सव – Hindi Prose Satire, (A)mrit, (अ)मृत
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पुस्तक के बारे में
कई दिन से हमारा ट्रिमर हुआ, न हुआ बराबर हो गया है। उसके दाँते इतने भोथरे हो गए हैं कि बाल कटते ही नहीं। ज्यादा कोशिश करो तो बाल खिंचने लगते हैं जो बहुत पीड़ादायक होता है। 1800 रुपए में ख़रीदा था। कंपनी भी प्रसिद्ध है। लेकिन हो सकता है नकली हो। आजकल बदमाश नकली इन्स्पेक्टर और पुलिस बनकर लोगों को ठगते फिरते हैं तो यह तो एक छोटी सी मशीन है। हमने सोचा था कि कोरोना के बहाने कैसी भी कटिंग और दाढ़ी चलेगी। ट्रिमर से खुद ही दाढ़ी और कटिंग बनाकर हजारों की बचत कर लेंगे लेकिन संभव नहीं हुआ।
इसी चक्कर में दाढ़ी मोदी जी की युवावस्था वाली दाढ़ी जितनी बड़ी हो गई है। आज तोताराम ने आते ही कहा– दाढ़ी हिला।
हमने कहा– अभी बोलते समय हिलने वाली मुल्ला जी की दाढ़ी जितनी बड़ी नहीं हुई है। यदि तुझे नहीं सुहाती तो जितनी है उसी को पकड़ कर हिला दे। हम कौन दशकों बाद स्पष्ट बहुमत से बनी सरकार हैं जिसे मनमानी करने पर भी कोई हिला ही नहीं सकता।
बोला– भाई जान, नाराज़ न हों। मैं ऐसी धृष्टता कैसे कर सकता हूँ। मैं तो देखना चाहता हूँ कि आपकी दाढ़ी हिलने से क्या टपकता है?
हमने कहा– यह कोई झाड़ी है जो आंकड़ा डालकर झड़काने से बेर टपकेंगे। इसमें कोई तिनका भी नहीं है जो झटकने से गिर पड़े।
बोला– चमत्कारी दाढ़ी हो तो तिनका ही क्या, लाखों आवास टपक सकते हैं।
हमने कहा– कुछ सनकी लोग अपनी दाढ़ी में मधुमक्खियाँ बैठाकर चर्चित हो जाते हैं। कुछ ऐसे की करानामों से गिनीज बुक में नाम लिखवा लेते हैं। यदि कोई सफाई नहीं करे तो उसकी दाढ़ी में जूएँ तो पाई जा सकती हैं लेकिन लाखों आवास! फालतू बात।
बोला– मैं कुछ नहीं कह रहा हूँ। यह तो रीवां मध्यप्रदेश से भाजपा के सांसद जनार्दन मिश्र की खोज है। वे 3 नवम्बर को भाषण दे रहे थे जो अब वाइरल हो रहा है। कहते हैं– मोदी की दाढ़ी में घर ही घर हैं। एक बार दाढ़ी हिलाते हैं तो 50 लाख घर टपकते हैं। इसलिए आप मोदी की दाढ़ी देखा करो। जब देखना बंद कर दोगे तो आवास मिलना भी बंद हो जायेंगे।
हमने कहा– अगर हमें पता होता तो ‘मन की बात’ सुनने में समय ख़राब नहीं करते, नित्य प्रति दाढ़ी-दर्शन ही करते रहते। कम से कम वास्तविक ‘गृहस्वामी’ तो बन जाते। तोताराम, यह लोकतंत्र का बकवासी युग है। छोटे से छोटे नेता से लेकर बड़े से बड़े नेताओं तक में भांडों और विदूषकों की तरह मजाकिया बयान देने की होड़ लगी हुई है। सोचते हैं जितना बचकाना बयान देंगे उतना ही लोगों का मनोरंजन होगा और वे वोट देंगे। और देश का दुर्भाग्य देख, ऐसे लोग चुनाव जीत भी रहे हैं। ये नेताजी भी उसी बीमारी से ग्रसित हैं।
हाँ, शरीर पर जीवों की उपस्थिति की एक कथा तो मिलती है कि तपस्या में लीन वाल्मीकि जी के शरीर पर दीमकों ने अपना आवास बना लिया था,
आवास की समस्या सदैव रही है, लोगों ने अपने अपने हिसाब से उनके हल भी तलाशे हैं। कुछ फिल्मों में कई गीत आये थे जो आवास समस्या के बारे में हमारा मार्गदर्शन कर सकते हैं। किशोर कुमार और लता का गाया ‘जोरू का गुलाम’ फिल्म का एक दोगाना है–
– नैनों में
– निंदिया है
– माथे पे
– बिंदिया है
– आँखों में
– कजरा है
– बालों में
– गजरा है
– तो कौन सी जगह है खाली,
ओ मतवाली, मैं कहाँ रहूँगा?
मतलब बालों में केवल जूएँ ही नहीं, कई अन्य प्राणी भी अपना आवास बना सकते हैं। ऐसे में दाढ़ी में भी आवास की संभावना बन तो सकती है।
खैर, दाढ़ी की बात चली है तो एक किस्सा भी सुन ले। एक मुल्ला जी थे। उनके पास लोग तरह-तरह की समस्याएँ लेकर आते थे। चूंकि मुल्ला जी मातबर आदमी थे। जैसा कुछ समझ में आता, वैसा हाथ का उत्तर दे देते थे। एक बार एक व्यक्ति को बुखार हो गया। मुल्ला जी ने पीपल के पत्ते पर कुछ लिखकर दिया और कहा इसे पानी में घुमाकर पी लेना, ठीक हो जाओगे। लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ।
अबकी बार उन्होंने एक और टोटका किया। अपनी दाढ़ी का एक बाल उस व्यक्ति को देते हुआ कहा– इसे ताबीज में मँढ़वाकर दायीं बांह पर बांध लेना। अल्ला ने चाहा तो फायदा हो जाएगा। संयोग से वह व्यक्ति ठीक हो गया। लोगों में बात वाइरल हो गई। कुछ दिनों बाद गाँव में बुखार महामारी की तरह फ़ैल गया। लोग मुल्ला जी के पास बाल माँगने आने लगे। मुल्ला जी ने बाल वितरण से मना कर दिया तो लोग जबरदस्ती मुल्ला जी की दाढ़ी उखाड़ ले गए।
तभी से यह कहावत प्रचलित है– मुल्ला जी की दाढ़ी ताबीजों में काम आई।
25-11-2021
…इसी पुस्तक से…
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Description
Description
रमेश जोशी
18 अगस्त 1942 को शेखावाटी के शिक्षा और संस्कृति की दृष्टि से समृद्ध कस्बे चिड़ावा (झुंझुनू-राजस्थान) में जन्म।
राजस्थान विश्वविद्यालय से एम. ए. हिंदी और रीजनल कॉलेज ऑफ़ एजुकेशन, भोपाल से बी.एड.।
40 वर्षों तक प्राथमिक विद्यालयों से महाविद्यालय तक भाषा-शिक्षण के बाद 2002 में केंद्रीय विद्यालय संगठन से सेवा-निवृत्त।
शिक्षण के दौरान पोरबंदर से पोर्टब्लेयर तक देश के विभिन्न भागों की संस्कृति और जीवन से जीवंत परिचय ने सोच को विस्तार और उदारता प्रदान की।
1958 में साप्ताहिक हिंदुस्तान में प्रकाशन से छपने का सिलसिला शुरू हुआ जो कमोबेश नियमित-अनियमित रूप से 1990 तक चलता रहा। इसके बाद नियमित लेखन।
अपने समय की लगभग सभी प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित, अब भी कई समाचार पत्रों में कॉलम लेखन।
अब तक व्यंग्य विधा में गद्य-पद्य की दर्जनों पुस्तकें प्रकाशित।
अनेक सम्मानों और पुरस्कारों से अलंकृत।
दो शोधार्थी व्यंग्य साहित्य पर शोधरत।
पिछले 22 वर्षों से अमरीका में आवास-प्रवास।
2012 से अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति अमरीका की त्रैमासिक पत्रिका ‘विश्वा’ का संपादन।
ब्लॉग : jhoothasach.blogspot.com
संपर्क : भारत : दुर्गादास कॉलोनी, कृषि उपज मंडी के पास, सीकर-332-001 (राजस्थान) # 094601-55700
अमरीका : 10046, PARKLAND DRIVE, TWINSBURG, O.H., U.S.A. 44087 # 330-989-8115
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