







3-Natak (Collection of three plays)<br> 3 नाटक (तीन नाटकों का संकलन)
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पुस्तक के बारे में
भाषा, व्याकरण और तमामविद्याओं के दाता भगवान शिव ने सप्त ऋषियों को ज्ञान देते समय नाट्य शास्त्र को पाँचवाँ वेद करार दिया था। काव्य यदि कला का उत्कृष्ट रूप है तो नाटक कला का उत्कृष्टतम रूप है। नाटक में अभिव्यक्ति की सम्पूर्णता है–रस है, भाव है, भंगिमाएँ हैं, नृत्य है, शब्द है, नाद है, संगीत है, शिल्प है और ये ललित कलाओं से ओतप्रोत है। इतने सहस्त्र युगों के बाद और इतने बर्बर आक्रान्ताओं के बाद भी अगर नाट्य शास्त्र उपलब्ध है तो इसकी दो ही प्रमुख वजह हो सकती हैं–एक हमारी पुरातन श्रुति-स्मृति वाली परम्परानुगत चली आ रही शिक्षा पद्धति और दूसरे हमारे पूर्वजों की हिम्मत और संरक्षण क्षमता।
भरत मुनि द्वारा नाट्य शास्त्र की प्रतियाँ संस्कृत और हिन्दी में उपलब्ध हैं और जैसे गोरों ने हमारी तमाम विद्याओं को ‘हज्म’ करके उसे अपनी कहकर हमें ही सिखाने की कोशिश की है उस कड़ी में नाट्य शास्त्र कई विदेशी भाषाओं में अनुवादित हुआ और उस पर कई प्रकार के शोध भी हुए। ग्रीक दार्शनिक एिरस्टोटल ने शायद अपने मौलिक विचार लिखे हों लेकिन नाटक/कहानी की संरचना/ढाँचे पर उसने अपनी पुस्तक ‘पोएिटक्स’ में भी लिखा है।
मैंने जब लेखन और सिनेमा की शिक्षा प्राप्त की तब, जैसा के आम होता है, मुझे भी केवल पाश्चात्य लोगों के काम के द्वारा ही सिखाया गया। हमें सिखाया गया कि जो-जो कुछ महान है वह केवल बाहर के लोगों ने ही किया है, हमने केवल उन्हीं से सीख कर उन्हीं का अनुसरण किया है। जब से मेरी समझ में यह आया है तब से मैं अपने क्लासेज में लेखन और फिल्म एप्प्रेसिअशन के लेक्चर्स में नाट्य शास्त्र और लेखन/नाटक/सिनेमा जगत में भारतीयों के योगदान का जिक्र करता हूँ।
…इसी पुस्तक से…
विनय : आई। सी। …अच्छा …अच्छा …आई आम सॉरी अबाउट व्हाट हैपेंड ।
अमीता : (केवल शिष्टाचार के नाते) एक्चुअली रोशन इज़ आल्सो सॉरी अबाउट दिस।
रीटा : रोशन?
अमीता : हमारा बेटा!…हमारे बेटे का नाम रोशन है…। रोशन कपूर।
विनय : जो भी हुआ इज़ वेरी अनफॉर्चुनेट!
के. पी. : (ऐसे जैसे के इसको ये बोलकर अपनी हाज़िरी दर्ज कराना ज़रूरी है।) हमारी बेटी का एक्सीडेंट हुआ है भाई…कुछ ऊँच-नीच हो गई तो उसकी तो शादी में…
अमीता : (बेवक़ूफ़ी न बर्दाश्त करते हुए) और हमारा लड़का कुछ नहीं…
विनय हाथ दिखाकर दोनों को शांत करवाता है। अमीता से कहता है।
विनय : ये घर आए मेहमान हैं भाई…मेरा ख्याल है इनको कुछ चाय वाय…(सिन्हा से)…आप लोग चाय पिएँगे?
के.पी. : अरे आप तकलीफ़ न करें…
अमीता : (अमीता अपने नौकर सुन्दर को बुलाती है। इन लोगों से कहती है।) तकलीफ़ कैसी…आ ही गए हैं तो…अरे सुन्दर!… ज़रा चाय बनाना सब के लिए…
विनय फ़ोन काटकर अब आराम से सोफे पर बैठता है।
विनय : हाँ तो आप मिलना चाहते थे हमसे…
रीटा और के.पी. आपस में एक-दूसरे की तरफ़ देखते हैं। फिर सोचकर के.पी. बोलता है।
के.पी. : पहले असल में लग रहा था कि प्रिया को काफी खतरनाक चोट लगी है। बहुत देर तक वो सड़क पर बेहोश ही पड़ी थी…लोगों ने उठाया…हमें खबर दी…हम तो समझे वो कोमा में चली गई…लेकिन खैर भगवान का शुक्र है कि ऐसा कुछ नहीं हुआ…
…इसी पुस्तक से…
विषय सूची
खेल
लव
जिसकी लाठी उसकी भैंस औ भैंस खड़ी पगुराय!
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अशोक कुमार
1951 में जन्में, झाँसी में पले बढे, अशोक कुमार ने बी.एससी. के बाद लन्दन जा कर टीवी प्रोडक्शन/ डायरेक्शन के कोर्स किये और उसी दौरान बीबीसी के लिए भी काम किया। लन्दन में इनका मन नहीं लगा। 1974 में ये वापस आ गए और दिल्ली टीवी (तब दूरदर्शन नहीं था) में प्रोडूसर हो गए। वहां से ये पूना फिल्म संस्थान में फैकल्टी के बतौर बुला लिए गए। वहां से दो साल बाद 1977 में ये बंबई आ गए जहाँ ये बीआर एड्स में जनरल मैनेजर हो गए। 1984 में इन्होने अपनी प्रोड्कशन कंपनी-इनकॉम-शुरू की। इस कंपनी में इन्होने पैराशूट, ओनिडा, गुड नाईट, कैडबरी’स जैसी जानी मानी कंपनियों के एड्स बनाये और तमाम वृत्त चित्र भी बनाये। भारत में महारानी लक्ष्मीबाई पर एक घंटे की फिल्म बनाने वाले अशोक कुमार एकमात्र प्रोडूसर/डायरेक्टर हैं।
अशोक कुमार टीवी चैनलों में वरिष्ठ पदों पर कार्यरत रहे हैं। माइका अहमदाबाद में मीडिया के प्रोफेसर रहे हैं तथा रामोजी यूनिवर्स में एडवरटाइजिंग क्रिएटिविटी के प्रोफेसर रह चुके हैं।
ये टाइम्स ऑफ़ इंडिया तथा जनसत्ता के मीडिया कलुमनिस्ट रहे हैं तथा दो बार अंतर्राष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल में सिलेक्शन समिति मेंबर रह चुके हैं।
इनके दो उपन्यास-‘दुनिया फिल्मों की’ तथा ‘इंस्टिट्यूट’ प्रकाशित हो चुके हैं तथा हिंदी-उर्दू और इंग्लिश में ये सामान रूप से लिख रहे हैं। इनकी कहानियां , कवितायें तमाम पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं। ई-मेल : kumar_incomm@ yahoo.co.uk
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