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Varsha Devi ka Gatha Geet वर्षा देवी का गाथागीत (असम की जनजातियों पर आधारित उपन्याय, मूल असमिया से हिन्दी में)

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Language: Hindi
Book Dimension: 5.5″x8.5″

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Author(s)Ajit Singnar
लेखक — अजित सिंगनर

Assamese to Hindi Translation by Dinkar Kumar
अनुवादक दिनकर कुमार (मूल असमिया से हिन्दी में)

| ANUUGYA BOOKS | HINDI | 126 Pages |

| Availabe in PAPER BACK (2020) & HARD BOUND (2021) both | 6 x 9 Inches |

SKU: N/A

Description

अजित सिंगनर

पुस्तक के लेखक — दिनकर कुमार (मूल. असमिया)
अजित सिंगनर का जन्म वर्ष 1965 में असम के नगाँव जिले के आमसै गांव में हुआ।
1989 में उन्होंने गुवाहाटी के असम इंजीनियरिंग कालेज से सिविल इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की और 1992 से असम सरकार के लोक निर्माण विभाग में नौकरी करने लगे। उन्होंने कार्बी जनजाति को केन्द्र में रखकर कई असमिया उपन्यास लिखे हैं। उनको असम साहित्य सभा की तरफ से उपन्यास ‘लंगरी आतमन’ के लिए पुरस्कृत भी किया जा चुका है। उनके अन्य चर्चित उपन्यास हैं–सेर हंगथम और सन्ध्या बेलार शोकगाथा। सम्पर्क–कार्यकारी अभियन्ता, लोक निर्माण विभाग, डिफू (असम) फोन. 9435396522

दिनकर कुमार

अनुवादक का परिचय — दिनकर कुमार 
अनुवादक का परिचय — दिनकर कुमार का जन्म 5 अक्टूबर, 1967 को दरभंगा जिले के मनीगाछी प्रखंड स्थित ब्रह्मपुरा गाँव में हुआ। तेरह वर्ष की उम्र में वह असम चले गए जहाँ उनकी शिक्षा-दीक्षा हुई और जहाँ 28 वर्षों से पत्रकारिता और लेखन करते रहे हैं। वह 14 वर्षों तक गुवाहाटी से प्रकाशित हिन्दी दैनिक सेंटिनल के सम्पादक रहे। उनके नौ कविता-संग्रह (आत्म-निर्वासन , लोग मेरे लोग, एक हत्यारे, शहर में वसन्त आता है, मैं तुम्हारी भावनाओं का अनुवाद बनना चाहता हूँ, वैशाख प्रिय वैशाख, क्षुधा मेरी जननी, मेरा देश तुम्हारी घृणा की प्रयोगशाला नहीं है, ब्रह्मपुत्र को देखा है और जा सकता तो जरूर जाता), दो उपन्यास (नीहारिका और काली पूजा), दो जीवनी और असमिया से 55 पुस्तकों का अनुवाद प्रकाशित है। उनको सोमदत्त सम्मान, जस्टिस शारदाचरण मित्र स्मृति भाषा सेतु सम्मान, अनुवादश्री सम्मान और अन्तरराष्ट्रीय पुश्किन सम्मान मिल चुके हैं। सम्पर्क–4-बी-1, ग्लोरी अपार्टमेंट, तरुण नगर मेन रोड, गुवाहाटी-781005 (असम)
फोन-9435103755

पुस्तक के बारे में

लोककथा, किंवदन्ती, विशाल पारम्परिक रीति-नीति, लोकगीत, लोकनृत्य आदि के साथ कार्बी एक समृद्ध जाति है। इस जाति के बीच समय-समय पर पैदा हुए लोक-कवियों ने विभिन्न समय जाति के समक्ष घटी विभिन्न घटनाओं को यत्नपूर्वक गीत के जरिए सँजोने की कोशिश की थी। अगर उन्होंने गीतों के जरिए नहीं संजोया होता तो हमलोग उन घटनाओं के बारे में कुछ नहीं जान पाते। उन अनाम सर्जक कवियों ने हमें विभिन्न कथाएँ उपहार के तौर पर दी ही हैं, साथ ही इतिहास के सूत्र भी दिए हैं। इसीलिए लोक-कविगण हमारे लिए चिर पूजनीय हैं। उन लोगों ने जिन कथाओं, किंवदन्तियों को सँजोया है, उनमें हाई की कहानी प्रमुख है। इसे तमाम कार्बी लोग सच्ची घटना ही मानते हैं। स्थान के अनुसार इस कहानी का स्वरूप बदलता रहता है मगर इसका मर्म एक ही है। कुछ शोधपरक दृष्टि से विश्लेषण कर इसकी मूल कथा की खोज करनी होगी। मेरे मामले में भी वैसा ही हुआ। हाई की कथा से सम्बन्धित कई लेख पढ़कर मैं उलझन में पड़ गया। किसी लेख में लंग दिली को राजा दर्शाया गया है और किसी में महामन्त्री, किसी लेख में साई रंगहा को पिनपो पद के लालच में हाई के साथ लंग दिली का ब्याह करवाते हुए दर्शाया गया है, तो किसी लेख में साई पर लंग दिली को दवाब डालते हुए दिखाया गया है, किसी में लंग दिली को मरते हुए नहीं दिखाकर पछताते हुए दिखाया गया है तो किसी में हाई को लंग दिली की हत्या करते हुए दिखाया गया है इत्यादि-इत्यादि। इसीलिए तथ्यों की ठीक से पड़ताल करने की जरूरत महसूस हुई। आखिरकार तथ्यों का ठीक से विश्लेषण कर विश्वसनीय नजर आने वाली एक कहानी का निर्माण किया। मेरा मानना है कि इस कहानी को वास्तविक रूप से सच माना जा सकता है हालाँकि गुणियों को कोई चूक भी दिखाई दे सकती है। त्रुटि की तरफ संकेत करने पर कृतज्ञ रहूँगा।

…इसी पुस्तक से…

लड़की ने हाँफते हुए लड़के की तरफ देखकर कहा–‘लंग, यह बालूचर बहुत अच्छा लगता है, है ना? मुझे तो बहुत अच्छा लगता है।’

‘हाँ हाई, मुझे भी अच्छा लगता है।’ लंग ने तुरन्त जवाब दिया। ‘जूमतली तक आने पर मैं एक बार इधर जरूर आता हूँ।’

‘मैं भी आती हूँ। बहुत अच्छा लगता है। आओ हम घरौंदे बनाते हैं।’

लंग हाई के करीब आ गया। दोनों उत्साह के साथ घरौंदा बनाने में जुट गए। उनके पसीने से भीगे हुए हाथ में रेत चिपकी हुई है, शरीर पर भी रेत है। लेकिन इसकी तरफ उनका ध्यान नहीं है। वे केवल घरौंदा बनाने में जुटे हुए हैं। कुछ रेत एकत्रित करने के बाद लंग ने रेत के ढेर के अन्दर एक बिल का निर्माण किया। उसने कहा– ‘देख रही हो हाई, यह है घर के अन्दर जाने का रास्ता।’

‘इसका मतलब यह घर बन गया है। कुछ मत करना। यह हमारा घर है। ’

‘हमारा घर यानी?’–लंग ने चौंक कर पूछा।

‘क्यों जब हमारा विवाह हो जाएगा तो रहने के लिए घर की जरूरत होगी ना?’

‘तुम्हें कैसे पता चला कि हमारा विवाह होगा?’

‘जानती हूँ, हमारा विवाह होना ही पड़ेगा।’

‘ठीक है, जाने दो जाने दो। चलो अभी नदी के पानी में उतरते हैं।’

लंग और हाई नदी की धारा की तरफ दौड़कर गए। गर्मी का मौसम होने की वजह से नदी के इस तरफ पानी कम है। दूसरे किनारे की तरफ पानी ज्यादा है और कुछ गहराई भी है। घुटने तक पानी में दोनों खुश होकर चलने लगे। लंग की आँखें पानी में मौजूद मछलियों पर भी थीं।

…इसी पुस्तक से…

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