Author(s) — Ahok Saxena
लेखक – अशोक सक्सेना
| ANUUGYA BOOKS | HINDI | 188 Pages | Hard BOUND | 2020 |
| 5.5 x 8.5 Inches | 400 grams | ISBN : 978-93-89341-21-8 |
पुस्तक के बारे में
विकास की भी विसंगतियाँ होती हैं। आज की विकसित कहानी में बड़े स्तर पर भाषाई दाँव-पेंच तथा रूपवाद देखा जा सकता है। इनके कारण कहानी का सहजात गुण क्षतिग्रस्त हुआ है। यह सुखद है कि अशोक सक्सेना की कहानियाँ इस सीमा से मुक्त हैं। अशोक जी शिल्प के अनेक प्रकार के कौशल जानते हैं पर उन्हें उतना ही बरतते हैं जितना संवेदना के संप्रेषण के लिए अनिवार्य है। इस संग्रह में कहने का वह विशिष्ट ढंग है जो पाठकों के बहुत बड़े समूह को आकर्षित करने की क्षमता रखता है। ये कहानियाँ पठनीय इसलिए भी हैं कि जिज्ञासा के गुण के कारण पाठक को बाँधे रखती हैं। सांप्रदायिकता की समस्या और मध्यवर्ग के जीवन को आधार बनाकर अशोक सक्सेना ने कई बेहतरीन कहानियाँ लिखी हैं। उन्होंने बहुत अच्छी प्रेम कहनियाँ भी लिखी हैं। वे मध्यवर्गीय जीवन के विविध रूपों के रचनाकार हैं। उन्होंने इन कहानियों के माध्यम से मध्यवर्ग की उन अनेक समस्याओं, विसंगतियों, विडंबनाओं को मार्मिक-दारुण रूप में अभिव्यक्त किया है जो अब तक अछूती रही हैं। ये कहानियाँ जिस वातावरण में रचित हुई हैं वह वातावरण सामाजिक, ऐतिहासिक, आर्थिक स्थितियों से बना है और लेखक उस वातावरण के भीतर स्थित होकर उनका गहराई से अनुभव करता है। जब आप इन कहानियों को पढ़ेंगे तो सूक्ष्म ब्यौरों, भाषा-बोलचाल, स्थानीयता आदि में आपको वह अनुभव नज़र आएगा। इनमें वह निस्संगता नहीं है जो आजकल की कहानियों में मिलती है। ये वैज्ञानिक दृष्टि, वैचारिकता एवं नई नैतिकता से पुष्ट हैं, इनकी उपलब्धि तब होती है जब हम पारिवारिक संबंधों, परंपराओं, रूढ़ियों तथा अंधविश्वास के प्रति पात्रों के रवैये से उपजी दृष्टि को अनुभूत करते हैं। कहा जा सकता है कि ये कहानियाँ मध्यवर्गीय जीवन के चित्रण के माध्यम से प्रगतिशीलता का विस्तार करती हैं। इनमें श्रमिक वर्ग के प्रति भी एक विशिष्ट दृष्टिकोण व्यक्त हुआ है जो सहानुभूतिपूर्ण तो है पर रूढ़ ढंग का नहीं है, न ही निरी भावुकता से भरा है। कुल मिलाकर इन कहानियों को पढ़ना अपनी समकालीनता को पढ़ना है। विश्वास है कि इन कहानियों को विस्तृत पाठक समाज की प्रशंसा मिलेगी।
बेहद अफसोसनाक बात थी कि मेरे एक अजीज का जवान बेटा दंगाइयों के हाथों मारा गया था। इस भयानक हादसे के बाद उसने पुराने शहर के ऐशबाग मुहल्ले का अपना पुराना पुश्तैनी मकान छोड़ दिया था। रातों-रात किसी तरह बच-बचाकर वे लोग रेलवे स्टेशन के पास एक किराये के मकान में शिफ्ट कर गये थे। उसने फोन पर बताया था – ‘स्टेशन के सामने मीनाक्षी गेस्ट हाउस है। इसके बाजूवाली लेन में बायीं ओर तीसरा मकान है। पता है – आर-ट्वेंटी फाइव, विवेक नगर। किसी से पूछने की जरूरत नहीं है। सीधे चले आना। मुश्किल से पन्द्रह मिनट का पैदल रास्ता है।’
इस हादसे के बाद से मेरा दिल भोपाल जाने के लिए तड़प रहा था मगर दुश्वारी यह थी कि रास्ते बंद थे। अभी कर्फ्यू हटे दो दिन हुए थे कि मैं यहाँ चला आया था। स्टेशन से निकलकर मैं सामने वाली सड़क पर आ गया। दस मिनिट बाद मैं मीनाक्षी गेस्ट हाउस के सामने खड़ा था। बाजूवाली लेन का रास्ता बंद था। शायद सीवर लाइन का काम चल रहा था। गहरे और चौड़े नाले को पार कर लेन में जाना नामुमकिन था। रास्ता पूछने की गरज से मैं गेस्ट हाउस में चला आया। काउंटर पर बैठे स्टाफ से बताया, लेन में जाने के लिए आगे सड़क पर करीब एक किलोमीटर चलना पड़ेगा। वहाँ एक सर्किल है, जहाँ से पहले दायीं ओर फिर बायीं ओर मुड़कर इस लेन के लिए रास्ता है। पता पूछकर मैं गेस्ट हाउस से बाहर निकल आया।
आसमान में रह-रहकर बिजली चमकने लगी थी। मैं बताये गये रास्ते पर तेजी से बढ़ लिया। सर्किल तक पहुँचने में मुझे पन्द्रह-बीस मिनट लगे होंगे। अब बादलों की गरज के साथ बारिश शुरू हो गई थी। मैं सड़क के किनारे एक छोटे-से पेड़ के नीचे खड़ा हो गया। सर्किल की सभी सड़कें खाली और सुनसान थीं। दूर-दूर तक चिड़िया का बच्चा नज़र नहीं आ रहा थ। सड़कों के दोनों तरफ खड़े आलीशान मकानों में सन्नाटा पसरा था। पेड़ के पत्तों से छनकर आ रही बूंदों से मैं भीग रहा था। बैग से तौलिया निकालकर मैंने सर पर रख लिया। सिर को भीगने से बचाने के लिए मैंने बैग से तौलिया निकाल लिया। अकस्मात एक स्कूटर मेरे पास आकर ठहर गया। स्कूटर सवार ने बरसाती पहन रखी थी। उसने कहा – ‘आप यहाँ कैसे खड़े हैं? कुछ परेशानी है क्या?’
… इसी पुस्तक से …
अनुक्रम
- एक चुटकी नमक
- आखिरी दाँव
- दो प्रतिज्ञाएँ
- फरिश्ता
- फर्स्ट एण्ड लास्ट लव
- फ़ितरत
- हरामी के पिल्ले
- कौआ-कांड
- लाश
- माई का लाल
- मास्टरजी
- मृत्यु-दंश
- पुनर्जन्म
- सदा सुहागिन 161
- वास्तु-दोष