







Laghukatha — Aakar aur Prakar <br> लघुकथा — आकार और प्रकार
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Editor(s) – Ashok Bhatia
संपादक — अशोक भाटिया
| ANUUGYA BOOKS | HINDI | 264 Pages | 6 x 9 Inches |
| available in PAPER BACK & HARD BOUND | 2021 |
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Description
Description
पुस्तक के बारे में
लघुकथाओं के आकार को लेकर सीमा बताने बनाने वाले दो प्रकार के लेखक-आलोचक हैं। एक का मत है कि भला पाँच-सात पंक्तियों में लघुकथा थोड़े न हो सकती है। उनके विमर्श के लिए पुस्तक का पहला लेख है। दूसरे प्रकार के लेखक इसकी अधिकतम शब्द-संख्या निर्धारित करते हैं। विशुद्ध अकादमिक किस्म के आलोचक व लेखक इसमें व्यास शैली (विस्तृत वर्णन, विवरण) को निषिद्ध मानते हैं। लघुकथा की बीजभूमियों में नये सिरे से उतरने की ज़रूरत है। हिन्दी लघुकथा के क्षेत्र में इसके आकार पर अक्सर चर्चा होती है। यह चिन्ता भी रहती है कि यह कहीं चार-छह पंक्तियों तक न रहे, न ही इतनी बड़ी हो जाए कि कहानी में शामिल हो जाने का खतरा आन पड़े। यह सब लघुकथा के बाह्य आकार को ध्यान में रखकर कहा जाता रहा है। लेकिन यह वास्तविकता से दूर का निष्कर्ष और रचना-विरोधी चिन्ता है। लघुकथा की लघुता उसके विषय की ज़रूरत और लेखकीय निर्वाह का परिणाम है। इसलिए लघुकथा के आकार की अपेक्षा उसके प्रकार, उसकी संरचना का महत्त्व अधिक है। जगदीश कश्यप ने ‘आतंक’ संकलन (1983 सं. नन्दल हितैषी) में छपे अपने लेख ‘लघुकथा की रचना-प्रक्रिया और नया लेखक’ में लिखा है–“कुछ लोग समझते हैं कि लघुकथा को कम-से-कम शब्दों में समाप्त करके पाठक में चमत्कार पैदा किया जाए। ऐसी रचनाएँ प्राय: रिपोर्टिंग या गद्यांश बनकर रह जाती हैं।•” लेख में वे आगे लिखते हैं–“इसका अर्थ यह नहीं है कि बहुत छोटी रचनाएँ लघुकथाएँ नहीं हो सकतीं। लेकिन यह देखना आवश्यक है कि मूल्यांकन ऐसी रचनाओं का होता है, जिनमें कथ्य, शिल्प और पूर्ण अर्थ की प्रतीति हो सके।” (पृ. 82) यहाँ हमारा अत्यन्त लघु आकार में आई कुछ श्रेष्ठ लघुकथाओं का डाइसेक्शन करके उसके मार्मिक स्थलों, कलात्मक घुमावों, सौन्दर्य के स्रोतों को सामने लाना है। इस प्रकार यह लघुकथा में सम्भावनाओं की तलाश करने का एक उपक्रम है।
…इसी पुस्तक से
इस घृणा का जवाब और भी हो सकता है। क्लासिक अमेरिकी कवि-कथाकार कार्ल सैंडबर्ग (1878-1967) की कथा-रचना ‘रंगभेद’ हमें सही परिप्रेक्ष्य में सोचने की प्रेरणा देती उत्कृष्ट रचना है। यहाँ भी घृणा करने वाला ही पहल करता है। गोरे आदमी की क्रियाएँ–‘छोटा-सा वृत्त’ खींचने, ‘काले आदमी की ओर घृणा की दृष्टि से’ देखने से उसकी संकीर्ण सोच स्पष्ट हो जाती है, साथ ही अपने लिए ‘बड़ा वृत्त’ खींचने से उसकी अहम्मन्यता स्पष्ट हो जाती है, बेशक वह सीना फुलाकर नहीं कहता। लेकिन काला आदमी अपना विवेक और सन्तुलन कायम रखता है तथा अपनी बात रखने के लिए गोरे आदमी की तरफ़ देखने की ज़रूरत नहीं समझता। क्या काले आदमी का अपनी बात रखते हुए गोरे आदमी की ओर न देखना उसकी अहम्मन्यता या गोरे आदमी की उपेक्षा को दर्शाता है? नहीं। उसका ध्यान तो अप्राप्त ज्ञान को खोजने और पाने की ओर गोरे का ध्यान दिलाने में डूबा है। उसकी एक क्रिया और एक वाक्य के समक्ष गोरे आदमी की भंगिमाएँ और विचार कितने क्षुद्र और संकीर्ण हैं–यह अपने-आप स्पष्ट हो जाता है। यही बड़े रचनाकार की खूबी होती है। ‘रंगभेद’ रचनात्मक कल्पना का अचरज भरा विस्फोट है। वस्तु और ट्रीटमेंट-दोनों ही आकर्षक।
…इसी पुस्तक से
अनुक्रम
दो शब्द आपसे
लघुकथा का विचार पक्ष
लघुकथा के लघु आकार में संरचनाएँ
लम्बी लघुकथाएँ : आकार और प्रकार
हिन्दी लघुकथा : बुनावट और प्रयोगशीलता
लघुकथा : लघुता में प्रभुता (नए लघुकथा-लेखकों के लिए)
संकलित लघुकथाएँ
1. तर्क का बोझ –विष्णु प्रभाकर
2. बदचलन –हरिशंकर परसाई
3. पाठ –चित्रा मुद्गल
4. बाजार –चित्रा मुद्गल
5. आ लड़ाई आ, मेरे आँगन में से जा! –उपेन्द्रनाथ अश्क
6. शेर –असग़र वज़ाहत
7. दिल्ली में लँगोट –रवीन्द्र वर्मा
8. आग –मुकेश वर्मा
9. मुक्त करो –मुकेश वर्मा
10. बाबाजी का भोग –प्रेमचन्द
11. एक घटना –लू शुन
12. मुआवजा –कुँवर नारायण
13. पानी –काशीनाथ सिंह
14. ताराबाई चाल –सुधा अरोड़ा
15. आखिरी स्टेशन –सर्गी पैमीस
16. दीक्षा –एतगार केरेत
17. पंडित जी –जानकीवल्लभ शास्त्री
18. विचित्र इलाज –स्वयं प्रकाश
19. गरीबी-अमीरी –जगदीशचन्द्र मिश्र
20. चादर –सिमर सदोष
21. शहर और आदमी –बलराम अग्रवाल
22. रुकी हुई हंसिनी –बलराम
23. महिला विमर्श –उमेश महादोषी
24. प्रेम कथा –उमेश महादोषी
25. लगा हुआ स्कूल –अशोक भाटिया
26. मारा किसने –कमल चोपड़ा
27. कत्ल में शामिल –कमल चोपड़ा
28. झूठा अहम् –सतीशराज पुष्करणा
29. दाहिना हाथ –सुकेश साहनी
30. डूबते को किनारा –सुभाष नीरव
31. वजूद अपना-अपना –मार्टिन जॉन
32. काश! तूने झूठ बोला होता –रामकुमार आत्रेय
33. चुप –रामकुमार आत्रेय
34. एजेण्डा –रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
35. ख़ज़ाना –प्रताप सिंह सोढ़ी
36. धरोहर –आनन्द
37. जन्म-जन्मान्तर –सन्ध्या तिवारी
38. लिहाफ –छवि निगम
39. जमूरे –योगराज प्रभाकर
40. केंचुल –कान्ता रॉय
41. जब तक कविता बाक़ी है –इन्दिरा दांगी
42. पावर विंडो –अरुण मिश्र
43. वैज्ञानिक दृष्टिकोण –अर्चना वर्मा
44. कठघरे –रवि प्रभाकर
45. वह जो नहीं कहा –स्नेह गोस्वामी
46. गिद्ध –उपमा शर्मा
47. नंगा –संजीव शर्मा
48. विचार और भावना –कान्ता रॉय
49. आचार-संहिता –विकेश निझावन
50. उद्धार –सूरजपाल चौहान
51. राम-राज्य –अशोक भाटिया
52. अमानत –प्रेम सिंह बरनालवी
53. शीशा –श्याम सुन्दर दीप्ति
54. ईश्वर की इच्छा –मार्टिन जॉन
55. काठ –सुदर्शन प्रियदर्शिनी
56. यथार्थ –पुष्पा चिले
57. हुनर –फरीदा जमाल
58. अनोखे हेड –प्रमोद कुमार दुबे
59. मैडम! चलता है ये सब –ऋचा शर्मा
60. चेहरा –मालचंद तिवाड़ी
61. दया की माया –मुरलीधर वैष्णव
62. चील –विनायक
63. तो क्या…? –कुमार शर्मा ‘अनिल’
64. पराजय –विजय अग्रवाल
65. पागल हाथी –कमल गुप्त
66. वे तीन –राजेश उत्साही
67. किसके लिए जीते हैं…? –सत्यदेव त्रिपाठी
68. जगह –गजेन्द्र नामदेव
69. दोजख –युगल
70. पढ़े-लिखे –भगवान वैद्य ‘प्रखर’
71. संग-तराश –भरत कुमार चंदानी
72. रक्षा-गृह –युगल
73. पहाड़ पर कटहल –सुदर्शन वशिष्ठ
74. जरूरी चर्चा –भगीरथ
75. भय –राजनारायण बोहरे
76. सितम्बर में रात –सत्यनारायण
77. आधुनिकता –अनुपमा सरकार
78. हनीमून –राजेंद्र यादव
79. एक और दंगा –रतीलाल शाहीन
80. गाली –अरुण कुमार
81. बॉलीवुड डेज –सुकेश साहनी
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