







Katha – Ek Yatra / कथा – एक यात्रा
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कथाकार की रचना दृष्टि और समाज से उसके रिश्ते मिलकर कथा की भूमि का निर्माण करते हैं .इन्हीं रिश्तों के तहत कथाकार अपनी प्राथमिकताएँ तय करता है। अपने समय में सामाजिक न्याय के लिये होने वाले संघर्षों के प्रति कथाकार का नजरिया उसकी सहभागिता, सामाजिक न्याय के प्रति उसकी समझ, यह सभी मिलकर कथाकार के समाज के प्रति रिश्ते के स्वरूप को निर्धारित करते हैं।
कहानी में महत्वपूर्ण है देखना, आप किस बिंदु पर खड़े होकर अपने समय की धड़कनों को देखते हैं। कहानीकार की दृष्टि ही कहानी की दिशा तय करती है। कहानी की समझ, कहानी की परम्परा का बोध, कहानीकार की अपनी विचारधारा, उसके अनुभव, उसका अध्ययन सब मिलकर कहानीकार का विवेक निर्मित करते है और अपने इस विवेक से कहानीकार अपने समय की अनुगूँज को सुनता है।
हरियश राय की यह किताब कृष्ण सोबती, भीष्म साहनी, काशीनाथ सिंह, मुक्तिबोध, दूधनाथ सिंह, संजीव, असग़र वजाहत, राकेश तिवारी, ज्ञानप्रकाश विवेक, स्वयं प्रकाश, सूर्यनाथ सिंह की रचनाओं के माध्यम से हमारे समय के बुनियादी सवालों से हमें रूबरू कराती है।
अनुक्रम
समय की धड़कन है कहानी
लंबे जीवन के सबसे कीमती समय की दास्ताँ : ‘गुजरात पाकिस्तान से गुजरात हिन्दुस्तान’
भीष्म साहनी की कहानियाँ और पंजाबियत
बदहाल लोगों की दास्ताँ : त्रिलोचन की कहानियाँ
होगी जीत उजाले की : मुक्तिबोध की कहानियाँ
जलते हुए रेगिस्तानों पर चलने की कथा : विपात्र
संकीर्णता और कट्टरता के विरोध में ‘आखिरी कलाम’
ले साँस भी आहिस्ता के नाजुक है बहुत काम : हमारे समय में असगर वजाहत की रचनात्मकता
‘दिल चाहता है कि निजाम-ए-कुहन बदल डालूँ’ : काशीनाथ सिंह का उपन्यास ‘रेहन में रग्घू’
ज्ञानप्रकाश विवेक का उपन्यास ‘डरी हुई लड़की’
समय के बदलाव को रेखांकित करती ज्ञानप्रकाश विवेक की कहानियाँ
तुझ में सौ नगमें हैं, भीष्म साहनी की आत्मकथा ‘आज का अतीत’
किसानों की आत्महत्या से उपजे सवालों से जूझता संजीव का उपन्यास फाँस
भीड़ के उन्माद का प्रतिफल : क्या तुमने कभी कोई सरदार भिखारी देखा है?
‘चोरी हुए ख़्वाबों की दास्तान है–सूर्यनाथ सिंह का उपन्यास ‘नींद क्यों रातभर नहीं आती’
हमारे समय की त्रासद गाथा का प्रतिरूप–राकेश तिवारी का उपन्यास ‘फसक’
पढ़ने का सुखद एहसास : दो कदम पीछे भी रचनात्मक जिम्मेदारी का एहसास करती जगदम्बा प्रसाद दीक्षित
की कहानी ‘मोहब्बते’
प्रेमचंद का कथा-साहित्य और किसानों का असंतोष
गाँव और किसान के संदर्भ में आज की हिंदी कहानी
जीवन का उल्लास भी साहित्य में आना चाहिए : विश्वनाथ त्रिपाठी
होरी की भाषा में शेखर की कहानी नहीं िलखी जा सकती : मैनेजर पांडेय
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हरियश राय
उत्तर प्रदेश के फतेहगढ़ में प्रारम्भिक शिक्षा, 1971 के बाद की शिक्षा दिल्ली से।
शुरुआती दौर में व्यंग्य लेखन से थोड़ा बहुत नाता।
दो उपन्यासों ‘नागफनी के जंगल में’ और ‘मुट्ठी में बादल’ के अलावा छ: कहानी संकलन ‘बर्फ होती नदी’, ‘उधर भी सहरा’, ‘अंतिम पड़ाव’, ‘वजूद के लिए’, ‘सुबह- सवेरे’ व ‘किस मुकाम तक’ प्रकाशित।
इसके साथ ही सामयिक विषयों से संबंधित चार अन्य किताबें ‘भारत-विभाजन और हिंदी उपन्यास’, ‘सूचना तकनीक, बाज़ार एवं बैंकिंग’, ‘समय के सरोकार’, ‘शिक्षा,भाषा और औपनिवेशिक दासता’ प्रकाशित।
उद्भावना पत्रिका के भीष्म साहनी अंक का संपादन।
लगभग 32 वर्ष तक बैंक में कार्य करने के उपरांत उप-महाप्रबंधक के पद से सेवा मुक्त।
अब दिल्ली में निवास।
संपर्क : 73, मनोचा एपार्टमैंट, एफ-ब्लाक, विकास-पुरी, नई दिल्ली–110018
ई-मेल : hariyashrai@gmail.com
मो. : 09873225505
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