







Emergency main Kavita / इमरजेन्सी में कविता
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कविता मानवीय संवेदनाओं को व्यक्त करने वाली साहित्य की एक सशक्त विधा है। उसकी इस विलक्षणता ने विभिन्न युगों-परिस्थितियों में मानव-समाज के लिए रचना, प्रेरणा और संघर्ष की भूमिका निभायी है। उसकी यह भूमिका ही समय और समाज के लिए उसे जरूरी भी सिद्ध करती है। किन्तु आधुनिक युग में कविता के साथ यह विडम्बना की स्थिति रही है कि वह उत्तरोत्तर आधुनिक मानवीय समाज के साथ अपने सरोकारों को विकसित करने के बजाय तथाकथित वैचारिकता–बौद्धिकता के दायरे में सिमटती गयी है। आधुनिक हिन्दी कविता के विभिन्न वादों-धाराओं का विकास एवं सम्बद्ध विशिष्टताओं का अध्ययन इस तथ्य को पुष्ट करते हैं। विडम्बना की स्थिति तो यहाँ तक पहुँची है कि पाठक और श्रोताओं के साथ सम्बन्ध विकास के माध्यम रहे हिन्दी काव्य-मंचों को हल्की और सतही कविता से जोड़कर मंचीय और मंचेतर-कविता को अलग-अलग कर देखने का आग्रह एक रूढ़ प्रवृत्ति बन चुकी है। ताज्जुब तो ये कि इन दोनों ही श्रेणी की कविताएँ एक-दूसरे की पूरक हो सकने वाली क्षमताओं-विशिष्टताओं को अपनी सीमा मानती हैं। वर्तमान में जबकि सूचना-प्रौद्योगिकी के विकास ने साहित्य के प्रकाशन और पाठकीयता की समस्या को एक गम्भीर विमर्श के घेरे में ला दिया है, काव्य-रचना की प्रतिबद्धता और प्रासंगिकता से जुड़े इन प्रश्नों की गम्भीरता और बढ़ जाती है।
स्वाधीनोत्तर भारत की सबसे व्यापक और ऐतिहासिक परिणतियों को प्राप्त करने वाले ‘जयप्रकाश आन्दोलन’ को चार दशक बीत चुके हैं। इस ऐतिहासिक आन्दोलन से जुड़े अहिंसक समाज-रचना के प्रश्न व लोकतन्त्र में लोकशक्ति की केन्द्रीय और नियामक भूमिका, हित संघर्ष आदि मुद्दे आज की सामाजिक-राजनीतिक परिस्थिति में और भी तीखे यथार्थों-सन्दर्भों के साथ प्रासंगिक महसूस होते हैं। जयप्रकाश आन्दोलन के ऐतिहासिक महत्त्व के पीछे एक कारण यह भी रहा कि इसने कला और साहित्य से जुड़ी कई छोटी-बड़ी प्रतिभाओं को अपनी तरफ आकर्षित किया था। काव्य-क्षेत्र में तो नुक्कड़-काव्यान्दोलन का जन्म ही इसके प्रभाव-छाया में हुआ। सचमुच यह एक नया अनुभव और काव्य की नयी भूमिका थी। मुख्यधारा से सम्बद्ध युग-मानकों, प्रतिबद्धताओं और रचना-शैली से अलग समय और समाज की जरूरत के मुताबिक व उनकी भावनाओं के साथ प्रेरणा और शिक्षण के अन्योन्याश्रित सम्बन्धों के बीच नुक्कड़-कविताओं ने एक जनान्दोलन के साथ प्रत्यक्ष हिस्सेदारी की भूमिका निभाते हुए रचना-धर्म की एक नयी प्रतिबद्ध श्रेणी का विकल्प सामने रखा। किन्तुृ दुर्भाग्य कि हिन्दी आलोचकों और इतिहासकारों ने न तो इस अप्रतिम रचनात्मक-पहल का समय से समुचित अध्ययन-मूल्यांकन किया और न ही आगे इस पहल के आधारों को विकसित करने वाले प्रयासों की मजबूती ही सार्थक तरीके से प्रकट हुई।
आज जबकि युग और परिस्थिति के जटिल यथार्थ ने कविता जैसी साहित्य की एक सशक्त विधा के समय और समाज के प्रति दायित्व-निर्वाह के प्रश्न को नयी और गहरी चुनौती के सामने खड़ा कर दिया है, वहीं बुद्धिवाद और शुष्क वैचारिकता की शिकार समकालीन काव्य-प्रवृत्ति जन-सरोकारों से जुडऩे की तमाम सम्भावनाओं को निरस्त करती प्रतीत होती है। ऐसी स्थिति में बेहद दिलचस्प होगा यह देखना कि आज से तकरीबन चार दशक पूर्व किन परिस्थितियों में रेणु और नागार्जुन से लेकर धर्मवीर भारती, रघुवीर सहाय और भवानी प्रसाद मिश्र सदृश साहित्यकारों ने ‘जयप्रकाश आन्दोलन’ के नाम से मुखर हुई और आगे बढ़ी समाज-निर्माण और संघर्ष की शक्तियों को अपना रचनात्मक समर्थन खुले तौर पर दिया तथा किस प्रकार सड़कों पर उतर आये कई छोटे-बड़े कवियों ने नुक्कड़ काव्यान्दोलन के माध्यम से इस जनान्दोलन का सक्रिय हिस्सा बनते हुए काफी हौसले और लगन के साथ प्रतिकूल परिस्थितियों के बीच अपने रचनात्मक-पुरुषार्थ के दीये जलाये। समकालीन हिन्दी कविता की मुख्यधारा के प्रवाह-पतित मानकों-मान्यताओं और प्रतिबद्धताओं एवं तथाकथित युग-बोध से निर्धारित होती रचना-शैली और कथ्य की औपचारिकताओं को नजरअन्दाज कर एक आपद धर्म का पालन करती इन अनौपचारिक प्रकृति की रचनाओं की मौलिक विशिष्टताओं का अध्ययन एवं तत्कालीन परिस्थिति में इनकी भूमिका का मूल्यांकन कई सार्थक निष्पत्तियों-निष्कर्षों को जाहिर करते हैं। जयप्रकाश आन्दोलन में अनौपचारिक हिन्दी कविताओं की भूमिका की पड़ताल का यही औचित्य भी है। कहना नहीं होगा कि इस शोध-अध्ययन से प्राप्त निष्कर्षों के आधार पर समकालीन हिन्दी काव्यधारा की प्रवृत्ति और उसके सामाजिक दायित्व का भी मूल्यांकन-अध्ययन एक नितान्त नये आलोचकीय विवेक के साथ हो सकता है।
–प्रेम प्रकाश
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प्रेम प्रकाश : 1971, पटना
शिक्षा–एम.फिल (हिन्दी), कुरुक्षेत्र विश्व-विद्यालय
रचनात्मक सफर– ‘शिक्षा परीक्षा और प्रधानमंत्री’ (संपादित पुस्तक); ‘खिलौना या आईना’ और ‘चनार’ नाम से दो काव्य-संकलन प्रकाशित। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कविताओं और आलोचनात्मक आलेखों का प्रकाशन।
सम्मान–विष्णु प्रभाकर पत्रकारिता सम्मान (2017); इंडियन प्लान अवार्ड (2016); शोध कार्य के लिए वाई.एस. रिसर्च फाउंडेशन, देहरादून द्वारा एक्सीलेंस अवार्ड (2016); प्रभाष जोशी स्मृति पत्रकारिता सम्मान (2020)।
व्याख्यान– कई महत्त्वपूर्ण राष्ट्रीय संस्थानों और विश्वविद्यालयों में विभिन्न विषयों पर व्याख्यान और परिसंवाद में शामिल।
सम्पर्क– 17 जी, 511, ग्रीनव्यू अपार्टमेंट, वसुन्धरा, गाजियाबाद-201012
ईमेल– ppgulshan@gmail.com
दूरभाष– 09891437469, 0120-4374604
संप्रति– जनसत्त्ता के संपादकीय विभाग में कार्यरत।
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Weight | 400 g |
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Dimensions | 23 × 16 × 2 in |
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