शालिग्राम — जन्म 21 मई, 1934 ई. – बिहार का प्रलयंकारी भूकंप का साल – मुंगेर (अब खगड़िया) जिला अंतर्गत पचौत गाँव में। किन्तु साहित्यिक विरासत सहरसा की धरती पर मिली; जहाँ साहित्यिक गोष्ठी में बाबा नागार्जुन, रेणु, राजकमल चौधरी इत्यादि वरिष्ठ कथाकारों का प्रायः समागम होता था; जहाँ से 1963 ई. में ‘पाही आदमी’ कहानी संग्रह का प्रकाशन हुआ। ‘पाही आदमी’ के सम्बन्ध में रेणु ने लिखा, “हिन्दी साहित्य में आंचलिक लेखन और आंचलिकता एक विवाद का विषय बना हुआ है। शालिग्राम का कथा संग्रह ‘पाही आदमी’ इस चर्चा-परिचर्चा के लिए प्रचुर सामग्री लेकर प्रकाशित हो रहा है। एक-एक कहानी रस और वैचित्र्य से परिपूर्ण है। नवागत लेखक की प्रथम रचना में आंतरिकता का तनिक भी अभाव नहीं है। इसलिए सभी कहानियाँ हृदयाग्राही हैं।” जनकवि नागार्जुन ने भी उस संग्रह पर टिप्पणी दी थी, “कोसी तटबंधों से लगे अंचलों में नया संसार आबाद होता जा रहा है। तरूण कथा-शिल्पी शालिग्राम की पैनी निगाहों से छनकर उन अंचलों का जीवन-रस हमें अनूठा स्वाद देता है।”
शालिग्राम की पहली कहानी ‘इजोतिया’ है जो 1963 ई. में ‘धर्मयुग’ में छपी थी। तदन्तर ‘नई कहानियाँ’, ‘सारिका’ आदि प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में भी इनकी कहानियाँ छपने लगीं। कहानी के साथ ही इनके लिखे रिपोर्ताज भी ‘धर्मयुग’, ‘साप्ताहिक हिन्दुस्तान’ एवं ‘दिनमान’ में छपने लगे। ‘अटपट बैन मोरंगिया रैन’, शीर्षक इनका रिपोर्ताज 21 नवंबर 1971 ई. को ‘धर्मयुग’ में प्रकाशित हुआ था। कुछ दिनों बाद ही यह रिपोर्ताज राजस्थान के अजमेर माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की दसवीं कक्षा के पाठ्यक्रम में स्वीकृत कर ली गई थी।
‘पाही आदमी’, ‘सात आंचलिक कहानियाँ’, ‘नई शुरुआत’ तथा ‘शालिग्राम की आंचलिक कहानियाँ’ (कहानी संग्रह), ‘किनारे के लोग’, ‘कित आऊँ कित जाऊँ’ तथा ‘मैलो नीर भरो’ (उपन्यास), ‘सांघाटिका’ तथा ‘आँगन में झुका आसमान’ (कविता-संग्रह), ‘देखा दर्पण अपना तर्पण’ (आत्मकथा), ‘अटपट बैन’ (रिपोर्ताज-संग्रह), ‘घोघो रानी कित्ता पानी’ (कोसी अंचलीय लोक जीवन का चित्रण) तथा ‘पत्रों के द्वीप में’ (साहित्यकारों के पत्र) उनकी प्रकाशित कृतियाँ हैं।

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