शहीद चंद्रशेखर प्रसाद (20 सितम्बर 1964-31 मार्च 1997) की शिक्षा-दीक्षा सैनिक स्कूल तिलैया (अब झारखंड में), पुणे स्थित राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (एनडीए), बिहार यूनिवर्सिटी (एम.ए. राजनीति विज्ञान), जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (एम.फिल. राजनीति विज्ञान तथा पीएच.डी. (अपूर्ण) से हुई। शहीद ने सीपीआई (एमएल) के नए गठित छात्र संगठन एआईएसए के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। शहीद एआईएसए से 1991-92 और 1992-93 के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्र-संघ चुनावों में महासचिव पद के उम्मीदवार थे। लेकिन एआईएसए और उनकी पहली जीत 1993-94 के छात्र-संघ चुनावों में हुई जब उन्हें उपाध्यक्ष चुना गया। वे 1994-95 और फिर 1995-96 में इस छात्र-संघ के अध्यक्ष थे। 1995 में, उन्हें दक्षिण कोरिया की राजधानी सियोल में संयुक्त राष्ट्र द्वारा आयोजित अंतर्राष्ट्रीय युवा सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व करने का अवसर मिला। यहाँ उन्होंने अमेरिका और पश्चिम के पक्ष में प्रस्तावों के खिलाफ तीसरी दुनिया के छात्रों को संगठित करने की कोशिश की। जेएनयू में अपने लक्ष्य को स्पष्ट करते हुए, शहीद पहले ही घोषणा कर चुके थे : अगर हम कहीं जाएँगे, तो हमारे कंधों पर उन दबे हुए स्वरों की ताकत होगी, जिनकी रक्षा के बारे में हम सड़कों पर बात करते हैं। इसलिए, यदि कोई व्यक्तिगत महत्त्वाकांक्षा है, तो वह भगत सिंह की तरह शहीद बनने की होगी, न कि जेएनयू में चुनावों में हेरफेर करके जीतने या हारने की। चंद्रशेखर प्रसाद और श्यामनारायण यादव, जो सिवान के एक स्थानीय नेता और सीपीआई (एमएल) के कार्यकर्ता थे, बिहार के लोगों से न्याय और लोकतंत्र के लिए आन्दोलन को तेज करने और 2 अप्रैल 1997 को बिहार बन्द करने का आह्वान कर रहे थे।19 सिवान में सीपीआई (एमएल) की गतिविधियों में तीन महीने की सक्रिय भागीदारी के भीतर, 31 मार्च 1997 को लगभग 04.30 बजे शाम को, सीपीआई (एमएल) लिबरेशन समूह के एक अन्य सदस्य कार्यकर्ता श्यामनारायण यादव, जो जिला समिति के सदस्य थे, के साथ, चंदू की हत्या कर दी गयी।
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