अफ़रा बुख़ारी – पाकिस्तान की सुप्रसिद्ध कहानीकार हैं। मध्यवर्गीय जीवन के यथार्थ को अत्यंत सहजता से अभिव्यक्त करने की जो कला इनके पास है, वैसी कम ही लेखकों को नसीब होती है। 14 मार्च 1938 को अमृतसर में जन्मी अफ़रा बुख़ारी 1947 को पाकिस्तान चले जाने तक अमृतसर और लुधियाना, जहाँ उनका ननिहाल था, आती-जाती रहीं। आजीवन वे इन दो शहरों को न भूल पाईं। 1953 को लाहौर में मैट्रिक के बाद बी.ए. पास किया। कुछ समय एक निजी स्कूल में प्रधानाचार्य रहीं। 1952 में बच्चों के कहानी लेखन से उनकी लेखन यात्रा शुरू होती है जो 1958 में नियमित लेखन का रूप ग्रहण कर लेती है। ये यात्रा, बीच के कुछ अंतराल को छोड़कर, उनके निधन जनवरी 2022 तक जारी रही। उन्होंने 1992 में एक प्रकाशन और प्रेस भी खोला जिसे वे 2011 तक चलाती रहीं। अफ़रा जी के पाँच कहानी-संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं– फ़ासले (1964), नजात (1998), रेत में पाँव (2003), आँख और अँधेरा (2009) और संगे स्याह (2021)। उनकी सम्पूर्ण रचनाएँ ‘उसकी दुनिया’ नाम से उनके बेटे और प्रसिद्ध कहानीकार जनाब ‘आमिर फ़राज़’ के सम्पादकत्व में प्रकाशित होने जा रही हैं। इस बीच उनकी कहानियाँ विभिन्न स्तरीय साहित्यिक पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहीं, मगर प्रशंसा के बावजूद ख़ुद साहित्यिक सरगर्मियों से दूर रहीं। उनकी कहानियों के बारे में प्रोफ़ेसर जिलानी कामरान का कथन महत्वपूर्ण है, “अफ़रा बुख़ारी की कहानी लेखन कला काफी परिष्कृत है। वह विषय की सामग्री को एक दूरी से देखती हैं और पात्रों को उनके मनोवैज्ञानिक एवं सामाजिक आयामों में देखती हैं। नारी पात्रों की मानवीयता और ईर्द-गिर्द के समाज की विमुखता की प्रवृत्ति के बीच की टकराहट से करुणा उत्पन्न होती है।” ये कहानियाँ उनके समाज का ही नहीं, हमारे समाज का भी आईना हैं। अफ़रा बुख़ारी का हिन्दी में यह पहला कहानी-संग्रह है।

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