![F-Rajbhasha-web](https://anuugyabooks.com/wp-content/uploads/2024/07/F-Rajbhasha-web.jpg)
![](https://anuugyabooks.com/wp-content/uploads/2020/08/Shyambabu-Sharma-G.jpg)
![F-Rajbhasha-web](https://anuugyabooks.com/wp-content/uploads/2024/07/F-Rajbhasha-web.jpg)
![Shyambabu Sharma G](https://anuugyabooks.com/wp-content/uploads/2020/08/Shyambabu-Sharma-G-100x100.jpg)
Rajbhasha avam Anuprayog / राजभाषा एवं अनुप्रयोग – Official Language, OL, Administrative Language
₹220.00 – ₹325.00
FREE SHIPMENT BY REGD. BOOK POST / निःशुल्क रजि. डाक सेवा
Read eBook in Mobile APP
Amazon : Buy Link
Flipkart : Buy Link
Kindle : Buy Link
NotNul : Buy Link
दो शब्द
हमारे पूर्वजों ने आजादी का जो स्वप्न देखा था वह महज राजनीतिक आजादी तक सीमित नहीं था। उसमें लोक और सांस्कृतिक गुलामी की गम्भीर चिन्ता भी थी। संस्कृति के मेरुदंड भाषा की चिन्ता से राष्ट्र नायकों ने काफी चिन्तन-मनन के पश्चात हिन्दी को संघ की राजभाषा के रूप में स्वीकार किया। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 343 में राजभाषा, और देवनागरी लिपि के प्रयोग की विधिवत व्यवस्था दी गयी। निस्सन्देह हम अपनी मातृभाषा में तो दक्ष हैं परन्तु अँग्रेजी में तंग हैं। महात्मा कबीर ने कभी कहा था– कबिरा संस्कृत कूप जल भाषा बहता नीर। भाषा बहती रहे, छलकती रहे तभी तक वह भाषा रहती है। हिन्दी गंगा के नीर की तरह सब कुछ समेटती हुई सदियों से भारत के लोक-वर्ग में बहती चली आ रही है। भारतीय जनमानस में औपनिवेशिक मानसिकता की वजह से अँग्रेजी को बौद्धिकता का पर्याय माना गया, साथ ही कुछ हद तक बौद्धिक ईमानदारी का भी।
जनतन्त्र को मजबूत और निरन्तर बनाये रखने में भाषा की भूमिका को कोई नकार तो नहीं सकता। हिन्दी आज विश्व की तीन बड़ी भाषाओं में से एक है। सरकारी कामकाज में हिन्दी का प्रयोग करना हमारा संवैधानिक दायित्व है और इस दायित्व की पूर्ति हमारी निष्ठा पर निर्भर करती है। राजभाषा स्वीकारने का मुख्य उद्देश्य है कि जनता का काम जनता की भाषा में सम्पन्न हो। प्रशासन की भाषा एक अलग तरह की भाषा होती है जो सीधे विषय पर बात करती है। व्याकरण-सम्मत होने के कारण यह मानक भाषा है। हिन्दी ध्वन्यात्मक भाषा है, जहाँ अँग्रेजी के उच्चारण के लिए भी शब्दकोश देखने की आवश्यकता पड़ती है वहीं हिन्दी के लिए सिर्फ अर्थ देखने के लिए ही शब्दकोश की जरूरत होती है। अँग्रेजी शब्दों की स्पेलिंग याद करनी पड़ती है, जबकि हिन्दी के शब्दों की वर्णमाला– स्वर व व्यंजन तथा बारह खड़ी को हृदयंगम कर लेने से हिन्दी के किसी भी शब्द को पढ़ना-लिखना सहज हो जाता है। यही कारण है कि हिन्दी में किसी भी भाषा को लिखना या उसका उच्चारण करना सरल होता है।
मौजूदा पीढ़ी तकनीक की गोद में सेयी गयी है। तकनीक की ऐसी छाया पहले कभी नहीं देखी गयी। और यह सत्य है कि जीवन अब इन्सानी सत्संग से अधिक मशीनी सोहबत में है। मौजूदा समय में हिन्दी ‘ग्लोबल हिन्दी’ में परिवर्तित हो रही है, आज तकनीकी विकास के युग में दूसरे देशों के लोग भी, भले कि विपणन के लिए ही सही, हिन्दी भाषा सीख रहे हैं। निस्सन्देह, संचार क्रान्ति के इस युग में हिन्दी को एक नया उत्साह और आयाम मिला है। जो युवा-वर्ग पहले अँग्रेज़ी की तरफ़ ही झुका नज़र आता था, अब हिन्दी का प्रयोग करने लगा है। भारतीय समाज में हिन्दी की भूमिका में उत्तरोत्तर वृद्धि हो रही है। सरकारी फाइलों और कागज़ी दस्तावेज़ों से निकल-कर अब यह आम लोगों के मोबाइल और पर्सनल कम्प्यूटरों तक पहुँच रही है।
सरकार के विभिन्न विभागों एवं संस्थानों में कार्यरत राजभाषा सेवियों को समय-समय पर पृथक-पृथक विषयों के प्रशिक्षण दिये जाते हैं। राजभाषा के विविध पक्षों पर एकमुश्त सामग्री का समावेश इस पुस्तक का प्रतिपाद्य है। इसके विभिन्न सोपान जहाँ राष्ट्रभाषा-राजभाषा की अवधारणा इसके संवैधानिक स्वरूप, अधिनियमों, नियमों, निदेशों, आदेशों, अनुपालनों व प्रोत्साहनों पर केन्द्रित हैं तो वहीं देवनागरी लिपि के मानकीकरण की समस्याओं-समाधानों, प्रशासनिक पत्र-व्यवहार, नोटिंग-ड्राफ्टिंग, संक्षेपण-पल्लवन, प्रशासनिक शब्दावली व टिप्पणियों, कार्यालयों में आमतौर पर प्रयोग होने वाली अभिव्यक्तियों, अनुवाद की शुद्धता और संचार क्रान्ति में जिस हिन्दी की आहट सुनाई दे रही है उसके भविष्य इत्यादि को समाविष्ट करते हैं। इस विषय पर सम्पूर्णता की बात करना अतिशयोक्ति ही कही जायेगी। विकास व अनुसन्धान के फलस्वरूप रोज़ नयी संकल्पनाएँ जन्म ले रही हैं, नये शब्द गढ़े जा रहे हैं। इसके फलस्वरूप, बदलते वैश्विक परिदृश्य में राजभाषा सेवियों की भूमिका अति महत्त्वपूर्ण हो गयी है।
निश्चित ही सरकारी काम-काज में हिन्दी के प्रगामी प्रयोग के क्षेत्र में प्रगति हो रही है, तथापि बहुत कुछ करना शेष है। सरकारी कार्यालयों में हिन्दी का प्रयोग बढ़ा है किन्तु अभी भी बहुत-सा काम अँग्रेजी में हो रहा है। इस बात पर परदा न डाला जाय तो आज भी सरकारी कार्यालयों में राजभाषा हिन्दी का कार्य अनुवाद के सहारे चल रहा है। राजभाषा विभाग का लक्ष्य है कि सरकारी कामकाज में हिन्दी का ही प्रयोग हो। यही संविधान की मूल भावना के अनुरूप भी होगा। कार्यालयी भाषा की दृष्टि से सफल राजभाषा सेवी वही है जो सूचना क्रान्ति के बदलते परिवेश में राजभाषा हिन्दी से तारतम्य बिठाकर चल सके। हिन्दी का महत्त्व राष्ट्रभाषा और राजभाषा तक ही सीमित नहीं किया जा सकता बल्कि यह हमारी संस्कृति की पहचान भी है। वस्तुतः यह भारत की आत्मा है। भारतीयता की अभिव्यक्ति का आधार है।
अनुक्रम
- दो शब्द
- राष्ट्रभाषा और राजभाषा
- राजभाषा : संवैधानिक स्वरूप
- राजभाषायी समितियाँ एवं संगठन
- राजभाषा नीति एवं निदेश-आदेश
- राजभाषा परिपालन और प्रोत्साहन योजनाएँ
- राजभाषायी कार्यों का पर्यवेक्षण
- देवनागरी लिपि और मानकीकरण
- कार्यालयीन पत्र-व्यवहार
- संक्षेपण और पल्लवन
- प्रशासनिक शब्दावली
- प्रशासनिक टिप्पणियाँ
- कार्यालयीन वाक्यांश/अभिव्यक्तियाँ
- अनुवाद और पारिभाषिक शब्दावली
- संचार क्रान्ति और हिन्दी
- आधार-ग्रन्थ
- Description
- Additional information
Description
डॉ श्यामबाबू शर्मा
रायबरेली के बैसवारा क्षेत्र में गढ़ी मुरारमऊ रियासत के साधारण परिवार में पिता श्री बच्चालाल व माँ श्रीमती रामदुलारी के यहाँ जन्म। शिक्षा : प्राथमिक शिक्षा गाँव के प्राइमरी स्कूल से। एम.ए. (हिंदी) प्रथम श्रेणी-प्रथम स्थान, एम.फिल, पीएच.डी., स्लेट (यू.जी.सी.), अनुवाद में स्नातकोत्तर डिप्लोमा। प्रकाशन : 1.भूमंडलीकरण और समकालीन हिन्दी कविता 2. रघुवीर सहाय और उनका काव्य 3. नयी शती और हिन्दी कविता 4. दलित हिन्दी कविता का वैचारिक पक्ष 5. वैश्वीकरण के आयाम 6. पूर्वोत्तर की लोक-संस्कृति 7. ‘मुर्दों से डर नहीं लगता’(लघु कथा संग्रह) 8. राजभाषा एवं अनुप्रयोग 9. अभिव्यक्ति के नए प्रतिमान सहित 14 पुस्तकें। भाषा, वसुधा, पहल, अक्षरा, वीणा सहित अनेक प्रतिष्ठित राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में सत्तर से अधिक आलेख-समीक्षाएं व अनेक लघु कथाएँ-कविताएँ निरंतर प्रकाशित। विशेष : गुरुघासीदास सेवादार संघ बिलासपुर की कैडर पाठ्य पुस्तक में ‘प्राण प्रतिष्ठा’ कहानी समाविष्ट। हंस में प्रकाशित कई कहानियों का आडियो रूपांतरण। प्रसार भारती मेघालय से चील्हा अजिया कहानी का नाट्य रूप प्रसारित। अनेक राष्ट्रीय संगोष्ठियों में सत्र अध्यक्षता-पत्र प्रस्तुति एवं राजभाषा कार्यशालाओं में आमंत्रित व्याख्यान। दूरदर्शन एवं आकाशवाणी से भूमंडलीकरण, लोक संस्कृति एवं राजभाषा पर कई साक्षात्कार एवं परिचर्चायें प्रसारित। सम्मान : राष्ट्रभाषा भूषण सम्मान। संप्रति : राजभाषा सेवी (भारत सरकार) व एकेडमिक काउंसलर (स्नातकोत्तर हिन्दी एवं अनुवाद डिप्लोमा), इग्नू, क्षेत्रीय केंद्र शिलांग (मेघालय)। संपर्क : 85/1 अंजलि कॉम्प्लेक्स अधिकारी आवास, शिलांग-793001 (मेघालय)। मोबाइल : 9863531572 ई-मेल : lekhakshyam@gmail.com
Additional information
Weight | 450 g |
---|---|
Dimensions | 23 × 16 × 2 in |
Product Options / Binding Type |
Related Products
-
-20%Select optionsQuick ViewAngregi Me / अंग्रेजी में (English Language), Fiction / कपोल -कल्पित, Hard Bound / सजिल्द, Kala avam Sanskriti / कला एवं संस्कृति (Art and Culture), New Releases / नवीनतम, North East ka Sahitya / उत्तर पूर्व का सााहित्य, Novel / उपन्यास, Panchayat / Gramin / पंचायत / ग्रामीण परिप्रेक्ष्य (Village Milieu), Paperback / पेपरबैक, Stri Vimarsh / स्त्री विमर्श (Women Discourse), Translation (from Indian Languages) / भारतीय भाषाओं से अनुदित, Tribal Literature / आदिवासी साहित्य
JUNGLEE PHOOL (A Novel based on the Abotani Tribes of Arunachal Pradesh)
₹160.00 – ₹400.00 -
-31%Add to cartQuick ViewAalochana / आलोचना (Criticism), Hard Bound / सजिल्द, Kala avam Sanskriti / कला एवं संस्कृति (Art and Culture), Linguistics / Grammer / Dictionary / भाषा / व्याकरण / शब्दकोश, Stri Vimarsh / स्त्री विमर्श (Women Discourse)
Arthat (Literary Contemplation/Discussion) अर्थात (चिंतन और विमर्श)
₹600.00₹415.00 -
-38%Select optionsQuick View