







Achhor Chetna ke Naveen Chhor / अछोर चेतना के नवीन छोर
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अनुक्रम
- लोक-मंगल के कवि तुलसीदास के तीन ग्रंथ (रामलला-नहछू, पार्वती-मंगल, जानकी-मंगल)
- रामलला नहछू : लोकरीति का चित्रांकन
- हनुमान बाहुक–तुलसी की अन्त:पीर
- विनय-पत्रिका – आराध्य के प्रति भावोद्गार
- राम-वनगमन पर लक्ष्मण की प्रतिक्रिया
- तुलसी की आपबीती
- लोक-साहित्य में ईश-दृष्टि
- पं. विद्यानिवास मिश्र से जुड़े अविस्मरणीय प्रसंग
- केशव की कविता में इतिहास-बोध
- मरदानी की तेजस्वी गाथा–झाँसी की रानी
- तुलसी रतना-दीप–भावालोक की व्यंजना
- महादेवी के ‘मेरा परिवार’ पर नया आलोक
- माधव-माखन-प्रेरित विजयदत्त श्रीधर
- वैचारिक संघर्ष के बीच श्री पंत
- पीड़ा के अनुताप से उद्भूत रचनाएँ
- अनूठा अनुष्ठान
- भारतीय राजनीतिक इतिहास के अज्ञात पृष्ठों का अनुशीलन
- ईसुरी काव्य-मीमांसा : नयी दृष्टि, नयी स्थापनाएँ
- विलुप्त को उजागर करता शोध-ग्रंथ
- दुखद विडम्बनाओं के बीच संवेदना के स्वर
- सूर्या सावित्री : पौराणिकता-सामाजिकता का समन्वय
- बुन्देली रस-सम्पन्न ज्ञानकोश
- कला-सौन्दर्य का साक्षात्कार कराती रचना
- नरोत्तमदास का सुदामा चरित–नया सम्पादित संस्करण
- जीवन अनुभूति-दर्शन का शब्दांकन
- मन की मनमानी
- डॉ. श्यामसुन्दर दुबे की दृष्टि में डॉ. बरसैंया
- कच्ची भूमि का पैदल यात्री–आत्मकथ्य
- टीकमगढ़-प्रवास के अविस्मरणीय दिन
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Description
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पुस्तक के बारे में
भारतीय वांगमय और जनजीवन में तुलसीदास का स्थान सर्वोपरि है। वे भारतीय मनीषा के प्रतिनिधि कवि होकर भी विश्ववंद्य और विश्व मान्य कवि हैं, जिन्होंने अपनी कृतियों और साधना से भारतीय चेतना को नये आयाम प्रदान किये और भारतीय संस्कृति को नयी प्रतिष्ठा प्राप्त हुई। ‘कीरति भनिति भूति भल सोई। सुरसरि सम सब कहँ हित होई’ के चिन्तन ने उन्हें लोकमंगल का सर्वमान्य कवि बना दिया।
इतनी प्रतिष्ठा और मान्यता के बावजूद विरोधाभास यह है कि उनसे सम्बन्धित प्राय: सभी तथ्य विवादास्पद हैं। जन्म-तिथि, जन्म-स्थान, माता-पिता, वैवाहिक जीवन, निधन-तिथि तथा कृतियों के सम्बन्ध में विद्वानों में मत भिन्नता दुखद और चिन्तनीय है। लगभग पाँच सौ वर्ष व्यतीत होने के बाद भी विद्वान एकमत नहीं हैं। दुराग्रहों ने विवादों को और अधिक उलझाया ही है। जाति-पाँति तक को लेकर वितंडावाद खड़े किये गये। जन्म-तिथि संवत् 1554, संवत् 1583, संवत् 1589 और संवत् 1600 में उलझी है और जन्म-स्थान में राजापुर, सोरो और तारी के आग्रह हैं। फिलहाल अधिकांश विद्वान उनकी जन्म-तिथि संवत् 1554 और जन्म स्थान राजापुर को ही मानते हैं।
तुलसीदास द्वारा रचित कृतियों की खोज आज भी चल रही है। डॉ. माता प्रसाद गुप्त ने तुलसीदास रचित ग्रंथों की संख्या 12 मानी है जबकि डॉ. भगीरथ दीक्षित 14, शिवसिंह सैगर 18, रामनरेश त्रिपाठी 30 और डॉ. उदय भान 51 ग्रंथों का उल्लेख करते हैं। परन्तु अधिकांश विद्वान उनके 12 ग्रंथ ही प्रामाणिक मानते हैं जिनके नाम इस प्रकार हैं–
1. रामचरितमानस, 2. गीतावली, 3. कवितावली, 4. कृष्ण गीतावली, 5. विनय पत्रिका, 6. दोहावली, 7. रामलला नहछू, 8. वैराग्य संदीपनी, 9. समासा प्रश्न, 10. बरवै रामायण, 11. जानकी-मंगल और 12. पार्वती-मंगल।
तुलसीदास और रामचरितमानस की उनके जीवन-काल में ही प्रतिष्ठा और मान्यता शीर्ष पर थी क्योंकि एक ओर जहाँ उनके ‘मानस’ में वेद-पुराण और अनेक संस्कृत ग्रंथों के सूत्र मिलते हैं, वहीं लोकजीवन की पूरी झलक उसमें मिलती है। उन्होंने इस तथ्य को ‘मानस’ के प्रारम्भ में ही स्वीकार किया है–‘नाना पुराण निगमागम संमतंयद्रामायणे निगदन्ति क्वचि दन्यतोपि।’ वेद-पुराण और संस्कृत साहित्य के उद्भट विद्वान होकर भी उन्होंने रामचरितमानस सहित अन्य ग्रंथों की रचना लोकभाषा में की क्योंकि उनका उद्देश्य विद्वानों द्वारा रचित ग्रंथों का सार और आदर्शचरित्रों का जीवन लोक से जोड़ने का था और यह जुड़ाव तभी संभव है जब लोकभाषा अथवा जनभाषा में रचना प्रस्तुत की जाये। लोक तो उसी को स्वीकार करेगा जो उसके लिए सहज बोधगम्य हो। तुलसीदास जनता के मध्य जीवन जीने वाले साधक रचनाकार थे और लोकहित उनकी रचना का उद्देश्य था। तभी उन्होंने लिखा था कि पूर्ववर्तियों ने जो कुछ भी रचा है उसे मैं ‘भाषाबद्ध’ करना चाहता हूँ– ‘भाषाबद्ध करउँ मैं सोई।’ ‘सरल कवित कीरति विमल, सोई आदरहिं सुजान।’ उन्हें ‘ग्राम्य गिरा’ के प्रयोग में कोई संकोच नहीं है। भाषा कोई भी हो, उद्देश्य ऊँचा होना चाहिए ताकि वह ‘सुरसरि सम’ सबके लिए कल्याणकारी हो। उनका लक्ष्य मात्र ज्ञान बधारना नहीं था। कितनी विनम्रता से वे लिखते हैं–‘कवित विवेक एक नहिं मोरे। सत्य कहौं लिखि कागद कोरे।’ ताकि लोक का आमजन पढ़ या सुनकर आतंकित न हो। अपने ‘रघुनाथ’ के माध्यम से ‘कलिमल हरनि, मंगल करनि’ तुलसी कथा रघुनाथ की, ही उन्होंने प्रस्तुति की।
राम के परिजन, पुरजन, जातिजन उनसे आतंकित या भयभीत नहीं हैं अपितु अपनत्व और निकटता का अनुभव करते हैं क्योंकि वे और उनके परिजन महान, अलौकिक ब्रह्म रूप होकर भी लोकजन के साथ जनोचित आचरण-व्यवहार करते हैं। इसके उदाहरण हमें रामचरितमानस, बरवै रामायण, जानकी-मंगल, पार्वती-मंगल और रामलला नहछू में मिलते हैं।
रामलला नहछू लोकभाषा और लोकरीति का पुष्ट उदाहरण है। लोक जीवन में कुछ अवसर ऐसे आते हैं जहाँ नहछू की रीति का निर्वाह किया जाना लोकरीति का अनिवार्य अंग है।
… इसी पुस्तक से…
Additional information
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Weight | 400 g |
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Dimensions | 23 × 16 × 1 in |
Product Options / Binding Type |
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