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Raja Bandariya (Kundaliya Sanklan) / राजा बंदरिया (आज़ादी के अमृत महोत्सव पर प्रकाशित)

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Language: Hindi
Pages: 136
Book Dimension: 5.5″x8.5″

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पुस्तक के बारे में

वीरप्पन वध
(अक्टूबर 2004)

नवरात्रा में सब करें माता का गुणगान।
अम्मा करती रही हैं सबका ही कल्याण।
सबका ही कल्याण, तीक्ष्ण तिरशूल घुमाया।
चन्दन तस्कर वीरप्पन का किया सफाया।
कह जोशी कविराय मगर यह समझ न आया।
बीस साल तक किसकी साजिश से बच पाया।

राजा और रंक
(वे (सोनिया परिवार) राजा हैं और हम रंक, दोस्ती करना और तोड़ना राजा की मर्जी पर निर्भर है–2004 में एक चुनावी रैली में अमिताभ)

राजा एवं रंक का समझ न आया राज़।
एक पहनता ताज औ’ इक राजा बिन ताज।
इक राजा बिन ताज, रोज के लाख कमाए।
फिर भी देखो वह अपने को रंक बताए।
कह जोशी कविराय काश ऐसा हो पाता।
हर मानव ही रंक आप जैसा हो जाता।

रंक ऐसे तो राजा कैसे
(सन्दर्भ : वही)

‘राजा एवं रंक’ हैं जीवन का चलचित्र।
को राजा को रंक है समझ न आता मित्र।
समझ न आता मित्र, मज़े में दोनों रहते।
मगर स्वयं को रंक और जन सेवक कहते।
कह जोशी कविराय रंक ’गर होते ऐसे।
तो फिर सोचो राजा होते होंगे कैसे।

बिग बी की रेल
(सन्दर्भ : वही)

कोका कोला पेप्सी और नवरतन तेल।
भर कर भागी जा रही है बिग बी की रेल।
है बिग बी की रेल, ट्रेक्टर खूब चलाते।
खेती कैसे करें किसानों को समझाते।
कह जोशी कविराय रंक इतने है भाई।
चौथेपन में नाच-नाच कर रहे कमाई।

गंगा -स्नान
(गंगा -स्नान करेंगे अडवानी- एक समाचार, 1-11-2004)

अडवानी जी करेंगे अब गंगा-स्नान।
सौ चूहे खाकर करे बिल्ली हज प्रस्थान।
बिल्ली हज प्रस्थान, लगा जनमत का रद्दा।
याद आगया फिर उनको मंदिर का मुद्दा।
कह जोशी कविराय पाप की गठरी भारी।
मैली होने से डरती गंगा बेचारी।

आतंक फैलाओ : गरीबी हटाओ
(मनमोहन सिंह द्वारा कश्मीर को 24 हज़ार करोड़ का विशेष पैकेज)

काश्मीर में चल रहे बम, गोली, बंदूक।
उनके खातिर खोलते मनमोहन संदूक।
मनमोहन संदूक, भटकते फिरते पंडित।
लेकिन सूख गया मन उन बेचारों के हित।
कह जोशी कविराय मौज ’गर करना चाहो।
फैलाओ आतंक, नोट बोरी भर पाओ।

…इसी पुस्तक से…

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Description

रमेश जोशी

18 अगस्त 1942 को शेखावाटी के शिक्षा और संस्कृति की द‍ृष्‍टि से समृद्ध कस्बे चिड़ावा (झुंझुनू-राजस्थान) में जन्म।
राजस्थान विश्‍वविद्यालय से एम. ए. हिंदी और रीजनल कॉलेज ऑफ़ एजुकेशन, भोपाल से बी.एड.।
40 वर्षों तक प्राथमिक विद्यालयों से महाविद्यालय तक भाषा-शिक्षण के बाद 2002 में केंद्रीय विद्यालय संगठन से सेवा-निवृत्त।
शिक्षण के दौरान पोरबंदर से पोर्टब्लेयर तक देश के विभिन्‍न भागों की संस्कृति और जीवन से जीवंत परिचय ने सोच को विस्तार और उदारता प्रदान की।
1958 में साप्ताहिक हिंदुस्तान में प्रकाशन से छपने का सिलसिला शुरू हुआ जो कमोबेश नियमित-अनियमित रूप से 1990 तक चलता रहा। इसके बाद नियमित लेखन।
अपने समय की लगभग सभी प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित, अब भी कई समाचार पत्रों में कॉलम लेखन।
अब तक व्यंग्य विधा में गद्य-पद्य की दर्जनों पुस्तकें प्रकाशित।
अनेक सम्मानों और पुरस्कारों से अलंकृत।
दो शोधार्थी व्यंग्य साहित्य पर शोधरत।
पिछले 22 वर्षों से अमरीका में आवास-प्रवास।
2012 से अंतर्राष्‍ट्रीय हिंदी समिति अमरीका की त्रैमासिक पत्रिका ‘विश्‍वा’ का संपादन।
ब्लॉग : jhoothasach.blogspot.com
संपर्क : भारत : दुर्गादास कॉलोनी, कृषि उपज मंडी के पास, सीकर-332-001 (राजस्थान) # 094601-55700
अमरीका : 10046, PARKLAND DRIVE, TWINSBURG, O.H., U.S.A. 44087 # 330-989-8115
E-MAIL : joshikavirai@gmail.com

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